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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4 manushyata

Manushyata (मनुष्यता) Class 10 Hindi Chapter 4 – कक्षा 10   हिंदी पाठ 4 मनुष्यता

Manushyata ‘मनुष्यता’ Explanation, Summary, Question and Answers and Difficult word meaning

Manushyata (मनुष्यता) – CBSE Class 10 Hindi Lesson summary with detailed explanation of the lesson ‘Manushyata’ by Maithlisharan Gupt along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary and all the exercises, Question and Answers

Author Intro – कवि परिचय

कवि – मैथिलीशरण गुप्त
जन्म – 1886( चिरगाँव )
मृत्यु – 1964Manushyata (मनुष्यता) Chapter Introduction – पाठ परिचय

प्रकृति के अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य में सोचने की शक्ति अधिक होती है। वह अपने ही नहीं दूसरों के सुख – दुःख का भी ख्याल रखता है और दूसरों के लिए कुछ करने में समर्थ होता है। जानवर जब चरागाह में जाते हैं तो केवल अपने लिए चर कर आते हैं, परन्तु मनुष्य ऐसा नहीं है। वह जो कुछ भी कमाता है ,जो कुछ भी बनाता  है ,वह दूसरों के लिए भी करता है और दूसरों की सहायता से भी करता है।

प्रस्तुत पाठ का कवि अपनों के सुख – दुःख की चिंता करने वालों को मनुष्य तो मानता है परन्तु यह मानने को तैयार नहीं है कि उन मनुष्यों में मनुष्यता के सारे गुण होते हैं। कवि केवल उन मनुष्यों को महान मानता है जो अपनों के सुख – दुःख से पहले दूसरों की चिंता करते हैं। वह मनुष्यों में ऐसे गुण चाहता है जिसके कारण कोई भी मनुष्य इस मृत्युलोक से चले जाने के बाद भी सदियों तक दूसरों की यादों में रहता है अर्थात वह मृत्यु के बाद भी अमर रहता है। आखिर क्या है वे गुण ? यह इस पाठ में जानेंगे –

Manushyata (मनुष्यता) Chapter Summary – पाठ सार

इस कविता में कवि मनुष्यता का सही अर्थ समझाने का प्रयास कर रहा है। पहले भाग में कवि कहता है कि मृत्यु से नहीं डरना चाहिए क्योंकि मृत्यु तो निश्चित है पर हमें ऐसा कुछ करना चाहिए कि लोग हमें मृत्यु के बाद भी याद रखें। असली मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए जीना व मरना सीख ले। दूसरे भाग में कवि कहता है कि हमें उदार बनना चाहिए क्योंकि उदार मनुष्यों का हर जगह गुण गान होता है। मनुष्य वही कहलाता है जो दूसरों की चिंता करे। तीसरे भाग में कवि कहता है कि पुराणों में  उन लोगों के बहुत उदाहरण हैं जिन्हे उनकी  त्याग भाव के लिए आज भी याद किया जाता है। सच्चा मनुष्य वही है जो त्याग भाव जान ले। चौथे भाग में कवि कहता है कि मनुष्यों के मन में दया और करुणा का भाव होना चाहिए, मनुष्य वही कहलाता है जो दूसरों के लिए मरता और जीता है। पांचवें भाग में कवि कहना चाहता है कि यहाँ  कोई अनाथ नहीं है क्योंकि हम सब उस एक ईश्वर की संतान हैं। हमें भेदभाव से ऊपर उठ कर सोचना चाहिए।छठे भाग में कवि कहना चाहता है कि हमें दयालु बनना चाहिए क्योंकि दयालु और परोपकारी मनुष्यों का देवता भी स्वागत करते हैं। अतः हमें दूसरों का परोपकार व कल्याण करना चाहिए।सातवें भाग में कवि कहता है कि मनुष्यों के बाहरी कर्म अलग अलग हो परन्तु हमारे वेद साक्षी है की सभी की आत्मा एक है ,हम सब एक ही ईश्वर की संतान है अतः सभी मनुष्य भाई -बंधु हैं और मनुष्य वही है जो दुःख में दूसरे मनुष्यों के काम आये।अंतिम भाग में कवि कहना चाहता है कि विपत्ति और विघ्न को हटाते हुए मनुष्य को अपने चुने हुए रास्तों पर चलना चाहिए ,आपसी समझ को बनाये रखना चाहिए और भेदभाव को नहीं बढ़ाना चाहिए ऐसी सोच वाला मनुष्य ही अपना और दूसरों का कल्याण और उद्धार कर सकता है।

 

Manushyata (मनुष्यता) Chapter Explanation – पाठ व्याख्या

विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,
                       मरो, परंतु यों मरो कि याद जो करें सभी।
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,
                       मारा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।
वही पशु- प्रवृति  है कि आप आप ही चरे,
                       वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

मर्त्य – मृत्यु

यों – ऐसे

वृथा – बेकार

प्रवृनि – प्रवृति  

प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि बताना चाहता है कि मनुष्यों को कैसा जीवन जीना चाहिए।

व्याख्या -: कवि कहता है कि हमें यह जान लेना चाहिए कि मृत्यु का होना निश्चित है, हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। कवि कहता है कि हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि लोग हमें मरने के बाद भी याद रखे। जो मनुष्य दूसरों के लिए कुछ भी ना कर सकें, उनका जीना और मरना दोनों बेकार है । मर कर भी वह मनुष्य कभी नहीं मरता जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीता है, क्योंकि अपने लिए तो जानवर भी जीते हैं। कवि के अनुसार मनुष्य वही है जो दूसरे मनुष्यों के लिए मरे अर्थात जो मनुष्य दूसरों की चिंता करे वही असली मनुष्य कहलाता है।

उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,

                 उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।
उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती;
                  तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।
अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,
                  वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

उदार – महान ,श्रेष्ठ  

बखानती – गुण गान करना

धरा – धरती

कृतघ्न – ऋणी , आभारी

सजीव – जीवित  
कूजती – करना

अखण्ड – जिसके टुकड़े न किए जा सकें

असीम – पूरा

प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि बताना चाहता है कि जो मनुष्य दूसरों के लिए जीते हैं उनका गुणगान युगों – युगों तक किया जाता है।

व्याख्या -: कवि कहता है कि जो मनुष्य अपने पूरे जीवन में दूसरों की चिंता करता है उस महान व्यक्ति की कथा का गुण गान सरस्वती अर्थात पुस्तकों में किया जाता है। पूरी धरती उस महान व्यक्ति की आभारी रहती है। उस व्यक्ति की बातचीत हमेशा जीवित व्यक्ति की तरह की जाती है और पूरी सृष्टि उसकी पूजा करती है। कवि कहता है कि जो व्यक्ति पुरे संसार को अखण्ड भाव और भाईचारे की भावना में बाँधता है वह व्यक्ति सही मायने में मनुष्य कहलाने योग्य होता है।

क्षुधार्त रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,
                         तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी।
उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,
                        सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर-चर्म भी दिया।
अनित्य देह के  लिए अनादि जीव क्या डरे?
                         वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के  लिए मरे।।

क्षुधार्त – भूख से परेशान

करस्थ – हाथ की
परार्थ – पूरा
अस्थिजाल – हड्डियों का समूह
उशीनर क्षितीश – उशीनर देश के राजा शिबि
सहर्ष – ख़ुशी से
शरीर चर्म – शरीर का कवच

प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि ने महान पुरुषों के उदाहरण दिए हैं जिनकी महानता के कारण उन्हें याद किया जाता है।

व्याख्या -: कवि कहता है कि पौराणिक कथाएं ऐसे व्यक्तिओं के उदाहरणों से भरी पड़ी हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों के लिए त्याग दिया जिस कारण उन्हें आज तक याद किया जाता है। भूख से परेशान रतिदेव ने अपने हाथ की आखरी थाली भी दान कर दी थी और महर्षि दधीचि ने तो अपने पूरे  शरीर की हड्डियाँ वज्र बनाने के लिए दान कर दी थी। उशीनर देश के राजा शिबि ने कबूतर की जान बचाने  के लिए अपना पूरा मांस दान कर दिया था। वीर कर्ण ने अपनी ख़ुशी से अपने शरीर का कवच दान कर दिया था। कवि कहना चाहता है कि मनुष्य इस नश्वर शरीर के लिए क्यों डरता है क्योंकि मनुष्य वही कहलाता है जो दूसरों के लिए अपने आप को त्याग देता है।

सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
              वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धभाव बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
                              विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा ?
अहा ! वही उदार है परोपकार जो करे,
                              वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

सहानुभूति – दया,करुणा

महाविभूति – सब से बड़ी सम्पति

वशीकृता – वश में करने वाला

मही – ईश्वर

विरुद्धवाद – खिलाफ होना

प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि ने महात्मा बुद्ध का उदाहरण देते हुए दया ,करुणा को सबसे बड़ा धन बताया है।

व्याख्या -: कवि कहता है कि मनुष्यों के मन में दया व करुणा का भाव होना चाहिए ,यही सबसे बड़ा धन है। स्वयं ईश्वर भी ऐसे लोगों के साथ रहते हैं । इसका सबसे बड़ा उदाहरण महात्मा बुद्ध हैं जिनसे लोगों का दुःख नहीं देखा गया तो वे लोक कल्याण के लिए दुनिया के नियमों के विरुद्ध चले गए। इसके लिए क्या पूरा संसार उनके सामने नहीं झुकता अर्थात उनके दया भाव व परोपकार के कारण आज भी उनको याद किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। महान उस को कहा जाता है जो परोपकार करता है वही मनुष्य ,मनुष्य कहलाता है जो मनुष्यों के लिए जीता है और मरता है।

रहो न भूल के कभी मदांघ तुच्छ वित्त में,
                      सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
                    दयालु दीन बन्धु के बड़े विशाल हाथ हैं।
अतीव भाग्यहीन है अधीर भाव जो करे,
                  वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

मदांघ – घमण्ड
तुच्छ – बेकार
सनाथ – जिसके पास अपनों का साथ हो
अनाथ – जिसका कोई न हो
चित्त – मन में
त्रिलोकनाथ – ईश्वर
दीनबंधु – ईश्वर
अधीर – उतावलापन

प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि कहता है कि सम्पति पर कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए और किसी को अनाथ नहीं समझना चाहिए क्योंकि ईश्वर सबके साथ हैं।

व्याख्या -: कवि कहता है कि भूल कर भी कभी संपत्ति या यश पर घमंड नहीं करना चाहिए। इस बात पर कभी गर्व नहीं करना चाहिए कि हमारे साथ हमारे अपनों का साथ है क्योंकि कवि कहता है कि यहाँ कौन सा व्यक्ति अनाथ है ,उस ईश्वर का साथ सब के साथ है। वह बहुत दयावान है उसका हाथ सबके ऊपर रहता है। कवि कहता है कि वह व्यक्ति भाग्यहीन है जो इस प्रकार का उतावलापन रखता है क्योंकि मनुष्य वही व्यक्ति कहलाता है जो इन सब चीजों से ऊपर उठ कर सोचता है।

अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े,

                        समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े।
परस्परावलंब से उठो तथा बढ़ो सभी,
                       अभी अमर्त्य-अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।
रहो न यां कि एक से न काम और का सरे,
                       वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

अनंत – जिसका कोई अंत न हो

अंतरिक्ष – आकाश

समक्ष – सामने

परस्परावलंब – एक दूसरे का सहारा

अमर्त्य -अंक — देवता की गोद

अपंक – कलंक रहित

प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि कहता है कि कलंक रहित रहने व दूसरों का सहारा बनने वाले मवषयों का देवता भी स्वागत करते हैं।

व्याख्या -: कवि कहता है कि उस कभी न समाप्त होने वाले आकाश में असंख्य देवता खड़े हैं, जो परोपकारी व दयालु मनुष्यों का सामने से खड़े होकर अपनी भुजाओं को फैलाकर स्वागत करते हैं। इसलिए दूसरों का सहारा बनो और  सभी को साथ में लेकर आगे बड़ो। कवि कहता है कि सभी कलंक रहित हो कर देवताओं की गोद में बैठो अर्थात यदि कोई बुरा काम नहीं करोगे तो देवता तुम्हे अपनी गोद में ले लेंगे। अपने मतलब के लिए नहीं जीना चाहिए अपना और दूसरों का कल्याण व उद्धार करना चाहिए क्योंकि इस मरणशील संसार में मनुष्य वही है जो मनुष्यों का कल्याण करे व परोपकार करे।

‘मनुष्य मात्रा बन्धु हैं’ यही बड़ा विवेक है,
           पुराणपुरुष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।
फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद हैं,

                       परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।

अनर्थ है कि बन्धु ही न बन्धु की व्यथा हरे,
                        वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

बन्धु – भाई बंधु

विवेक – समझ
स्वयंभू – परमात्मा,स्वयं उत्पन्न होने वाला

अंतरैक्य – आत्मा की एकत, अंतःकरण की एकता

प्रमाणभूत – साक्षी

व्यथा – दुःख,कष्ट

प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि कहता है कि हम सब एक ईश्वर की संतान हैं। अतः हम सभी मनुष्य एक – दूसरे के भाई – बन्धु हैं।

व्याख्या -: कवि कहता है कि प्रत्येक मनुष्य एक दूसरे के भाई – बन्धु हैं ।यह सबसे बड़ी समझ है। पुराणों में जिसे स्वयं उत्पन्न पुरुष मना गया है, वह परमात्मा या ईश्वर हम सभी का पिता है, अर्थात सभी मनुष्य उस एक ईश्वर की संतान हैं। बाहरी  कारणों के फल अनुसार प्रत्येक मनुष्य के कर्म भले ही अलग अलग हों परन्तु हमारे वेद इस बात के साक्षी है कि सभी की आत्मा एक है। कवि कहता है कि यदि भाई ही भाई के दुःख व कष्टों का नाश नहीं करेगा तो उसका जीना व्यर्थ है क्योंकि मनुष्य वही कहलाता है जो बुरे समय में दूसरे मनुष्यों के काम आता है।

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,

                  विपत्ति,विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।

घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
                   अतर्क  एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे,
                        वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

अभीष्ट – इच्छित

मार्ग – रास्ता
सहर्ष -अपनी खुशी से
विपत्ति,विघ्न – संकट ,बाधाएँ
अतर्क – तर्क से परे
सतर्क – सावधान यात्री

प्रसंग -: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तिओं में कवि कहता है कि यदि हम ख़ुशी से,सारे कष्टों को हटते हुए ,भेदभाव रहित रहेंगे तभी संभव है की समाज की उन्नति होगी।

व्याख्या -: कवि कहता है कि मनुष्यों को अपनी इच्छा से चुने हुए मार्ग में ख़ुशी ख़ुशी चलना चाहिए,रास्ते में कोई भी संकट या बाधाएं आये, उन्हें हटाते  चले जाना चाहिए। मनुष्यों को यह ध्यान रखना चाहिए कि आपसी समझ न बिगड़े और भेद भाव न बड़े। बिना किसी तर्क वितर्क के सभी को एक साथ ले कर आगे बढ़ना चाहिए तभी यह संभव होगा कि मनुष्य दूसरों की उन्नति और कल्याण के साथ अपनी समृद्धि भी कायम करे

Manushyata (मनुष्यता) Chapter Question Answers – प्रश्न अभ्यास

क)निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये –

प्रश्न 1 -: कवि ने कैसी मृत्यु को समृत्यु कहा है?

उत्तर-: कवि ने ऐसी मृत्यु को समृत्यु कहा है जिसमें मनुष्य अपने से पहले दूसरे की चिंता करता है और परोपकार की राह को चुनता है जिससे उसे मरने के बाद भी याद किया जाता है।

प्रश्न 2 -: उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?

उत्तर -: उदार व्यक्ति परोपकारी होता है, वह अपने से पहले दूसरों की चिंता करता है और लोक कल्याण के लिए अपना जीवन त्याग देता है।

प्रश्न 3 -: कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तिओं के उदाहरण दे कर ‘मनुष्यता ‘ के लिए क्या उदाहरण दिया है?

उत्तर -: कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तिओं के उदाहरण दे कर ‘मनुष्यता ‘ के लिए यह सन्देश दिया है कि परोपकार करने वाला ही असली मनुष्य कहलाने योग्य होता है। मानवता की रक्षा के लिए दधीचि ने अपने शरीर की सारी अस्थियां दान कर दी थी,कर्ण ने अपनी जान की परवाह किये बिना अपना कवच दे दिया था जिस कारण उन्हें आज तक याद किया जाता है। कवि  इन उदाहरणों के द्वारा यह समझाना चाहता है कि परोपकार ही सच्ची मनुष्यता है।

प्रश्न 4 -: कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व – रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?

उत्तर -: कवि ने निम्नलिखित पंक्तियों में गर्व रहित जीवन व्यतीत करने की बात कही है-:
रहो न भूल के कभी मगांघ तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अर्थात सम्पति के घमंड में कभी नहीं रहना चाहिए और न ही इस बात पर गर्व करना चाहिए कि आपके पास आपके अपनों का साथ है क्योंकि इस दुनिया में कोई भी अनाथ नहीं है सब उस परम पिता परमेश्वर की संतान हैं।

प्रश्न 5 -: ‘ मनुष्य मात्र बन्धु है ‘ से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -: ‘ मनुष्य मात्र बन्धु है ‘ अर्थात हम सब मनुष्य एक ईश्वर की संतान हैं अतः हम सब भाई – बन्धु हैं। भाई -बन्धु होने के नाते हमें भाईचारे के साथ रहना चाहिए और एक दूसरे का बुरे समय में साथ देना चाहिए।

प्रश्न 6 -: कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है ?

उत्तर -: कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है ताकि आपसी समझ न बिगड़े और न ही भेदभाव बड़े। सब एक साथ एक होकर चलेंगे तो सारी बाधाएं मिट जाएगी और सबका कल्याण और समृद्धि होगी।

प्रश्न 7 -: व्यक्ति को किस तरह का जीवन व्यतीत करना चाहिए ?इस कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर -: मनुष्य को परोपकार का जीवन जीना चाहिए ,अपने से पहले दूसरों के दुखों की चिंता करनी चाहिए। केवल अपने बारे में तो जानवर भी सोचते हैं, कवि के अनुसार मनुष्य वही कहलाता है जो अपने से पहले दूसरों की चिंता करे।

प्रश्न 8 -: ‘ मनुष्यता ‘ कविता के द्वारा कवि क्या सन्देश देना चाहता है ?

उत्तर -: ‘मनुष्यता ‘ कविता के माध्यम से कवि यह सन्देश देना चाहता है कि परोपकार ही सच्ची मनुष्यता है। परोपकार ही एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से हम युगों तक लोगो के दिल में अपनी जगह बना सकते है और परोपकार के द्वारा ही समाज का कल्याण व समृद्धि संभव है। अतः हमें परोपकारी बनना चाहिए ताकि हम सही मायने में मनुष्य कहलाये।

ख )निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये-

1)सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
             वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धभाव बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
                विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा ?

उत्तर -: कवि इन पंक्तियों में कहना चाहता है कि मनुष्यों के मन में दया व करुणा का भाव होना चाहिए, यही सबसे बड़ा धन है। स्वयं ईश्वर भी ऐसे लोगों के साथ रहते हैं । इसका सबसे बड़ा उदाहरण महात्मा बुद्ध हैं जिनसे लोगों का दुःख नहीं देखा गया तो वे लोक कल्याण के लिए दुनिया के नियमों के विरुद्ध चले गए। इसके लिए क्या पूरा संसार उनके सामने नहीं झुकता अर्थात उनके दया भाव व परोपकार के कारण आज भी उनको याद किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।

2) रहो न भूल के कभी मदांघ तुच्छ वित्त में,
                     सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
                   दयालु दीन बन्धु के बड़े विशाल हाथ हैं।

उत्तर -: कवि इन पंक्तियों में कवि  कहना चाहता है कि भूल कर भी कभी संपत्ति या यश पर घमंड नहीं करना चाहिए। इस बात पर कभी गर्व नहीं करना चाहिए कि हमारे साथ हमारे अपनों का साथ है क्योंकि कवि कहता है कि यहाँ कौन सा व्यक्ति अनाथ है ,उस ईश्वर का साथ सब के साथ है। वह बहुत दयावान है उसका हाथ सबके ऊपर रहता है।

3) चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
                 विपत्ति,विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
                  अतर्क  एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

उत्तर -: कवि इन पंक्तियों में कहना चाहता है कि मनुष्यों को अपनी इच्छा से चुने हुए मार्ग में ख़ुशी ख़ुशी चलना चाहिए,रास्ते में कोई भी संकट या बाधाएं आये उन्हें हटाते  चले जाना चाहिए। मनुष्यों को यह ध्यान रखना चाहिए कि आपसी समझ न बिगड़े और भेद भाव न बड़े। बिना किसी तर्क वितर्क के सभी को एक साथ ले कर आगे बढ़ना चाहिए तभी यह संभव होगा कि मनुष्य दूसरों की उन्नति और कल्याण के साथ अपनी समृद्धि भी कायम करे।

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4 मनुष्यता

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1.
कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?
उत्तर-
जिस मनुष्य में अपने और अपनों के हित-चिंतन से पहले और सर्वोपरि दूसरों का हित चिंतन होता है और उसमें वे गुण हों, जिनके कारण कोई मनुष्य मृत्युलोक से गमन कर जाने के बावजूद युगों तक दुनिया की यादों में बना रहे, | ऐसे मनुष्य की मृत्यु को ही कवि ने सुमृत्यु कहा है।

प्रश्न 2.
उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?
उत्तर-
उदार व्यक्ति की पहचान यह है कि वह इस असीम संसार में आत्मीयता का भाव भरता है। सभी प्राणियों के साथ अपनेपन का व्यवहार करता है, नित्य परोपकार के कार्य करता है, जिसके हृदय में दूसरों के प्रति सहानुभूति और करुणा का भाव होता है। उदार व्यक्ति दूसरों की सहायता के लिए अपने तन, मन और धन को किसी भी क्षण त्याग सकता है, जो दूसरों की प्राणरक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर रहता है। वह जाति, देश, रंग-रूप आदि का भेद किए बिना सभी को अपना मानता है। वह स्वयं हानि उठाकर भी दूसरों का हित करता है। प्रेम, भाईचारा और उदारता ही उसकी पहचान है।

प्रश्न 3.
कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के लिए क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए यह संदेश दिया है कि प्रत्येक मनुष्य को परोपकार करते हुए अपना सर्वस्व त्यागने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। इन व्यक्तियों ने दूसरों की भलाई हेतु अपना सर्वस्व दान कर दिया था। दधीचि ने अपनी अस्थियों का तथा कर्ण ने कुंडल और कवच का दान कर दिया था। हमारा शरीर नश्वर है इसलिए इससे मोह को त्याग कर दूसरों के हित-चिंतन में लगा देने में ही इसकी सार्थकता है। यही कवि ने संदेश दिया है।

प्रश्न 4.
कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?
उत्तर-
कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर सारी मनुष्यता को त्याग और बलिदान का संदेश दिया है। अपने लिए तो सभी जीते हैं पर जो परोपकार के लिए जीता और मरता है उसका जीवन धन्य हो जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार दधीचि ऋषि ने वृत्रासुर से देवताओं की रक्षा करने के लिए अपनी अस्थियों तक का दान कर दिया। इसी प्रकार कर्ण ने अपने जीवन-रक्षक, कवच-कुंडल को अपने शरीर से अलग करके दान में दिया था। रंतिदेव नामक दानी राजा ने भूख से व्याकुल ब्राह्मण को अपने हिस्से का भोजन दे दिया था। राजा शिवि ने कबूतर के प्राणों की रक्षा हेतु अपने शरीर का मांस काटकर दे दिया। ये कथाएँ हमें परोपकार का संदेश देती हैं। ऐसे महान लोगों के त्याग के कारण ही मनुष्य जाति का कल्याण संभव हो सकता है। कवि के अनुसार मनुष्य को इस नश्वर शरीर के लिए मोह का त्याग कर देना चाहिए। उसे केवल परोपकार करना चाहिए। वास्तव में सच्चा मनुष्य वही होता है, जो दूसरे मनुष्य के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दे।

प्रश्न 5.
‘मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस कथन का अर्थ है कि संसार के सभी मनुष्य आपस में भाई-भाई हैं इसलिए हमें किसी से भी भेद-भाव नहीं करना | चाहिए। सभी एक ईश्वर की ही संतान हैं। अगर कुछ भेद दिखाई देते भी हैं, तो वे सभी बाहरी भेद हैं और वे भी अपने-अपने कर्मों के अनुसार दिखाई पड़ते हैं। मनुष्य मात्र बंधु हैं इसलिए ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का नारा बुलंद किया जाता है। प्रत्येक मनुष्य को हर निर्बल मनुष्य की पीड़ा दूर करने का प्रयास करना चाहिए। सभी आपस में भाई-चारे की भावना से रहें तथा सभी में प्रेम एवं एकता का संचार हो।

प्रश्न 6.
कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?
उत्तर-
कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है क्योंकि इससे आपसी मेल-भाव बढ़ता है तथा हमारे सभी काम सफल हो जाते हैं। यदि हम सभी एक होकर चलेंगे तो जीवन मार्ग में आने वाली हर विघ्न-बाधा पर विजय पा लेंगे। जब सबके द्वारा एक साथ प्रयास किया जाता है तो वह सार्थक सिद्ध होता है। सबके हित में ही हर एक का हित निहित होता है। आपस में एक-दूसरे का सहारा बनकर आगे बढ़ने से प्रेम व सहानुभूति के संबंध बनते हैं तथा परस्पर शत्रुता एवं भिन्नता दूर होती है। इससे मनुष्यता को बल मिलता है। कवि के अनुसार यदि हम एक-दूसरे का साथ देंगे तो, हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकेंगे।

प्रश्न 7.
व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर-
व्यक्ति को सदा दूसरों की भलाई करते हुए, मनुष्य मात्र को बंधु मानते हुए तथा दूसरों के हित-चिंतन के लिए अपना सर्वस्व त्यागकर अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसे अपने अभीष्ट मार्ग की ओर निरंतर सहर्ष बढ़ते रहना चाहिए।

प्रश्न 8.
‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर-
मानव जीवन एक विशिष्ट जीवन है क्योंकि मनुष्य के मन में प्रेम, त्याग, बलिदान, परोपकार का भाव होता है। अपने से पहले दूसरों की चिंता करते हुए अपनी शक्ति, अपनी बुधि और अपनी वैचारिक शक्ति का सदुपयोग करना मानव का कर्तव्य है। प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि मानवीय एकता, सहानुभूति, सद्भाव, उदारता और करुणा का संदेश देना चाहता है। वह चाहता है कि मनुष्य समस्त संसार में अपनत्व की अनुभूति करे। वह दीन-दुखियों, जरूरतमंदों के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहे। वह पौराणिक कथाओं के माध्यम से विभिन्न महापुरुषों जैसे दधीचि, कर्ण, रंतिदेव के अतुलनीय त्याग से प्रेरणा ले। ऐसे सत्कर्म करे जिससे मृत्यु उपरांत भी लोग उसे याद करें। उसका यश रूपी शरीर सदैव जीवित रहे। निःस्वार्थ भाव से जीवन जीना, दूसरों के काम आना व स्वयं ऊँचा उठने के साथ-साथ दूसरों को भी ऊँचा उठाना ही मनुष्यता’ का वास्तविक अर्थ है।

(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
प्रश्न 1.
सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
उत्तर-
इन पंक्तियों का भाव है कि प्रत्येक मनुष्य को प्रत्येक मनुष्य के जीवन में समय-असमय आने वाले हर दुख-दर्द में सहानुभूति होनी चाहिए, क्योंकि एक-दूसरे के दुख-दर्द का बोझ सहानुभूति की प्रवृत्ति होने से कम हो जाता है। वास्तव में सहानुभूति दर्शाने का गुण महान पूँजी है। पृथ्वी भी सदा से अपनी सहानुभूति तथा दया के कारण वशीकृता । बनी हुई है। भगवान बुद्ध ने भी करुणावश उस समय की पारंपरिक मान्यताओं का विरोध किया। विनम्र होकर ही किसी को झुकाया जा सकता है। उदाहरणार्थ-फलदार पेड़ तथा संत-महात्मा हमेशा अपनी विनम्रता से ही मनुष्य जाति का उपकार करते हैं।

प्रश्न 2.
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
उत्तर
कवि के अनुसार समृद्धशाली होने पर भी कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। यहाँ कोई भी अनाथ नहीं है क्योंकि ईश्वर ही परमपिता है। धन और परिजनों से घिरा हुआ मनुष्य स्वयं को सनाथ अनुभव करता है। इसका परिणाम यह होता है कि वह स्वयं को सुरक्षित समझने लगता है। इस कारण वह अभिमानी हो जाता है। कवि कहता है कि सच्चा मनुष्य वही है जो संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए मरता और जीता है। वह आवश्यकता पड़ने पर दूसरों के लिए अपना शरीर भी बलिदान कर देता है। भगवान सारी सृष्टि के नाथ हैं, संरक्षक हैं, उनकी शक्ति अपरंपार है। वे अपने अपार साधनों से सबकी रक्षा और पालन करने में समर्थ हैं। वह प्राणी भाग्यहीन है जो मन में अधीर, अशांत, असंतुष्ट और अतृप्त रहता है और अधिक पाने की ललक में मारा-मारा फिरता है। अतः व्यक्ति को समृद्धि में कभी अहंकार नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 3.
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़े उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
उत्तर-
इन पंक्तियों का अर्थ है कि मनुष्य को अपने निर्धारित उद्देश्य रूपी मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक विघ्न-बाधाओं से जूझते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। इस मार्ग पर चलते हुए परस्पर भाई-चारे की भावना उत्पन्न करो, जिससे आपसी भेद-भाव दूर हो जाए। इसके अतिरिक्त बिना किसी तर्क के सतर्क होकर इस मार्ग पर चलना चाहिए।

योग्यता विस्तार
प्रश्न 1.
अपने अध्यापक की सहायता से रंतिदेव, दधीचि, कर्ण आदि पौराणिक पात्रों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर-
रंतिदेव- भारत के प्रसिद्ध राजा थे। एक बार भीषण अकाल पड़ गया। उस अकाल से तालाब और कुएँ सूख गए। फ़सलें
सूख गईं। राजकोष में अनाज का भंडार समाप्त हो गया। दयालु राजा रतिदेव से अपनी प्रजा का दुख देखा न गया। आखिर प्रजा के सुख-दुख को वे अपना दुख जो समझते थे। उन्होंने प्रजा को अनाज देना शुरू कर दिया। प्रजा की भारी भरकम संख्या के आगे अनाज कम पड़ने लगा, जो बाद में समाप्त हो गया। राज-परिवार को भी अब अकाल के कारण आधा पेट खाकर गुजारा करना पड़ रहा था। ऐसी स्थिति आ गई कि राजा को भी कई दिनों से भोजन न मिला था। ऐसी स्थिति में जब राजा को कई दिनों बाद खाने को कुछ रोटियाँ मिलीं तभी एक भूखा व्यक्ति दरवाजे पर आ गया। राजा से उसकी भूख न देखी गई और उसे खिला दिया। ऐसी मान्यता है कि उनके कृत्य से प्रभावित होकर ईश्वर ने उनका भंडार अन्न-धन से भर दिया।

दधीचि- इनकी गणना भारत के परमदानी एवं ज्ञानी ऋषियों में की जाती है। दधीचि अत्यंत परोपकारी थे। वे तप में लीन रहते थे। उन्हीं दिनों देवराज इंद्र उनके पास आए। साधना पूर्ण होते ही दधीचि ने इंद्र से आने का कारण पूछा। इंद्र ने बताया कि ऋषिवर! आप तो जानते ही हैं कि देवता और दानवों में युद्ध छिड़ा हुआ है। इस युद्ध में दानव, देवों पर भारी साबित हो रहे हैं। देवगण हारने की कगार पर हैं। यदि कुछ उपाय न किया गया तो स्वर्गलोक के अलावा पृथ्वी पर भी दानवों का कब्जा हो जाएगा। ऋषि ने कहा, “देवराज इसमें मैं क्या कर सकता हूँ? मैं तो लोगों की भलाई की कामना लिए हुए तप ही कर सकता हूँ।” इंद्र ने कहा, “मुनिवर, यदि आप अपनी हड्डियाँ दे दो तो इनसे बज्र बनाकर असुरराज वृत्तासुर को पराजित किया जा सकेगा और देवगण युद्ध जीत सकेंगे। इंद्र की बातें सुनकर दधीचि ने साँस ऊपर खींची जिससे उनका शरीर निर्जीव हो गया। उनकी हड्डियों से बने वज्र से असुर मारे गए और देवताओं की विजय हुई। अपने इस अद्भुत त्याग से दधीचि का नाम अमर हो गया।

कर्ण- यह अत्यंत पराक्रमी, वीर और दानी राजकुमार था। वह कुंती का पुत्र और अर्जुन का भाई था जो सूर्य के वरदान से पैदा हुआ था। सूर्य ने उसकी रक्षा हेतु जन्मजात कवच-कुंडल प्रदान किया था जिसके कारण उसे मारना या हराना कठिन था। कर्ण इतना दानी था कि द्वार पर आए किसी व्यक्ति को खाली हाथ नहीं लौटने देता था। महाभारत युद्ध में कर्ण ने दुर्योधन का साथ दिया। कर्ण को पराजित करने के लिए कृष्ण और इंद्र ने ब्राह्मण का रूप धारण कर उससे कवच और कुंडल माँगा। कर्ण समझ गया कि यह उसे मारने के लिए रची गई एक चाल है फिर भी उसने कवच-कुंडल दान दे दिया
और अपनी मृत्यु की परवाह किए बिना अपना वचन निभाया।

प्रश्न 2.
‘परोपकार’ विषय पर आधारित दो कविताओं और दो दोहों का संकलन कीजिए। उन्हें कक्षा में सुनाइए।
उत्तर-
‘परोपकार’ विषय पर आधारित कविताएँ और दोहे-
कविता- औरों को हसते देखो मनु, हँसो और सुख पाओ।
अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ।
छात्र पुस्तकालय से ‘कामायनी’ लेकर कविता पढ़ें। (जयशंकर प्रसाद कृत ‘कामायनी’ से)

दोहे- यों रहीम सुख होत है, उपकारी के संग ।
बाँटन वारे को लगै, ज्यो मेहदी को रंग ।।
तरुवर फल नहिं खात है, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।

परियोजना कार्य
प्रश्न 1.
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ की कविता ‘कर्मवीर’ तथा अन्य कविताओं को पढ़िए तथा कक्षा में सुनाइए।
उत्तर-
देखकर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं।
रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं।
काम कितना ही कठिन हो किंतु उकताते नहीं।
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं।
हो गए इक आन में उनके बुरे दिन भी भले।
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।
आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही।
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही।
हो गए इक आन में उनके बुरे दिन भी भले।
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले-फले ।।
(‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध”)

प्रश्न 2.
भवानी प्रसाद मिश्र की ‘प्राणी वही प्राणी है’ कविता पढ़िए तथा दोनों कविताओं के भावों में व्यक्त हुई समानता को लिखिए।
उत्तर-
भवानी प्रसाद मिश्र की कविता ‘प्राणी वही प्राणी है’ छात्र पुस्तकालय से या इंटरनेट से प्राप्त करें और दोनों कविताओं के भावों की तुलना स्वयं करें।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘विचार लो कि मर्त्य हो’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है? इसे सुमृत्यु कैसे बनाया जा सकता है?
उत्तर
कवि ने मनुष्य से मर्त्य होने की बात इसलिए कही है क्योंकि-

  • मानव शरीर नश्वर है। इस संसार में जिसका भी जन्म हुआ उसे एक न एक दिन अवश्य मरना है।
  • मनुष्य चाहकर भी अपनी मृत्यु को नहीं टाल सकता है।

मनुष्य अच्छे-अच्छे कर्म करके और दूसरों के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए परोपकार करके अपनी मृत्यु को सुमृत्यु बना सकता है।

प्रश्न 2.
कवि किसके जीने और मरने को एक समान बताता है?
उत्तर-
इस नश्वर संसार में हजारों-लाखों लोग प्रतिदिन मरते हैं। इनकी मृत्यु को लोग थोडे ही दिन बाद भूल जाते हैं। ये लोग अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए ही जीते हैं। उन्हें दूसरों के दुख-पीड़ा से कुछ लेना-देना नहीं होता है। दूसरों के बारे में न सोचने के कारण ऐसे लोगों की मृत्यु से कुछ लेना-देना नहीं होता है। आत्मकेंद्रित होकर अपनी स्वार्थ हित-साधना में लगे रहने वालों के जीने और मरने को एक समान बताया है।

प्रश्न 3.
“अखंड आत्मभाव भरने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर-
अखंड आत्मभाव भरने के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि लोग एक-दूसरे से वैमनस्य, ईष्र्या, द्वेष आदि भाव न रखें और सारी दुनिया के लोगों के साथ एकता अखंडता बनाए रखने हेतु सभी को अपना भाई मानें। प्रायः लोग जाति-धर्म, भाषा क्षेत्रवाद, संप्रदाय आदि की संकीर्णता में फँसकर मनुष्य को भाई समझना तो दूर मनुष्य भी नहीं समझते हैं। कवि इसी संकीर्णता का त्याग करने और सभी के साथ आत्मीयता बनाने की बात कर रहा है।

प्रश्न 4.
मनुष्य किसी अन्य को अनाथ समझने की भूल कब कर बैठता है?
उत्तर-
यह मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि धन आते ही उसके मन में घमंड का भाव आ जाता है। वह अहंकार पूर्ण बातें और आचरण करने लगता है। धन देखकर कुछ लोग उसकी चाटुकारिता करने लगते हैं। ऐसे में वह धनवान व्यक्ति खुद को बलशाली समझने लगता है। धन और बल का मेल होते ही वह अनैतिक आचरण पर उतर आता है। वह दूसरों को अपने से कमजोर और अनाथ समझने लगता है।

प्रश्न 5.
हमें किसी को अनाथ क्यों नहीं समझना चाहिए?
उत्तर-
हमें किसी को इसलिए अनाथ नहीं समझना चाहिए क्योंकि जिस ईश्वर से शक्ति और बल पाकर हम स्वयं को सनाथ समझते हुए दूसरों को अनाथ समझते हैं वही ईश्वर दूसरों की मदद के लिए भी तैयार रहता है। उसके लंबे हाथ मदद के लिए सदैव आगे बढ़े रहते हैं। वह अपनी अपार शक्ति से सदा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता है, इसलिए हमें दूसरों को अनाथ नहीं समझना चाहिए।

प्रश्न 6.
उशीनर कौन थे? उनके परोपकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
उशीनर गांधार के राजा थे। उन्हें शिवि के नाम से भी जाना जाता है। एक बार जब वे बैठे थे तभी एक कबूतर बाज से भयभीत होकर शिवि की गोद में आ दुबका। इसी बीच बाज शिवि के पास आकर अपना शिकार वापस माँगने लगा। जब राजा ने कबूतर को वापस देने से मना किया तो उसने राजा से कबूतर के वजन के बराबर माँस माँगा। राजा ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। एक कबूतर पर दया करने के कारण राजा प्रसिद्ध हो गए।

प्रश्न 7.
कवि ने महाविभूति किसे कहा है और क्यों?
उत्तर-
कवि ने मनुष्य की सहनशीलता को महाविभूति कहा है। इसका कारण यह है कि सहानुभूति के कारण मनुष्य दूसरों के दुख की अनुभूति करता है और उसे परोपकार करने की प्रेरणा मिलती है। यदि मनुष्य के भीतर सहानुभूति न हो तो कोई व्यक्ति चाहे सुखी रहे या दुखी वह उदासीन रहेगा और वह परोपकार करने की सोच भी नहीं सकता है।

प्रश्न 8.
अपने लिए जीने वाला कभी मरता नहीं’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर-
‘अपने लिए जीने वाला कभी नहीं मरता’ कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि जो व्यक्ति परोपकार करते हैं, दूसरों की भलाई में लगे रहते हैं तथा अपने-पराए का भेद किए बिना दूसरों के काम आते हैं, ऐसे व्यक्ति अपने कार्यों के माध्यम से अमर हो जाते हैं। ऐसे लोग मरकर भी दूसरों की चर्चा में रहते हैं। ऐसा लगता है कि वे अब भी जीवित हैं।

प्रश्न 9.
कवि ने सफलता पाने के लिए मनुष्य को किस तरह प्रयास करने के लिए कहा है?
उत्तर-
कवि ने सफलता पाने के लिए मनुष्य को प्रोत्साहित करते हुए कहा है कि मनुष्य तुम अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाओ। तुम्हारी सहायता के लिए अनेक देवता रूपी मनुष्य खड़े हैं। इसके अलावा तुम परस्पर एक-दूसरे की मदद करते हुए उठो और सभी को साथ लेकर बढ़ते चलो। इससे कोई मंजिल यो लक्ष्य प्राप्त करना कठिन नहीं रह जाएगा।

प्रश्न 10.
‘रहो न यों कि एक से न काम और का सरे’ के माध्यम से कवि क्या सीख देना चाहता है?
उत्तर-
रहो न यों कि एक से न काम और का सरे’ के माध्यम से कवि मनुष्य को यह सीख देना चाहता है कि हे मनुष्य! तुम इस तरह से स्वार्थी और आत्मकेंद्रित बन मत जियो कि दूसरों के सुख-दुख से कोई लेना-देना ही न रह जाए और तुम संवेदनहीनता की पराकाष्ठा छू लो। कवि चाहता है कि मनुष्य को एक-दूसरे को सहारा देना चाहिए, मदद करनी चाहिए ताकि उसका रुका काम भी बन जाए। वह चाहता है कि सभी परोपकारी बन जाएँ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य के किस कृत्य को अनर्थ कहा है और क्यों ?
उत्तर-
‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य को यह बताने का प्रयास किया है कि सभी मनुष्य आपस में ई ई हैं। इस सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि सबको जन्म देने वाला ईश्वर एक है। पुराणों में भी इस बात के प्रमाण हैं कि सृष्टि का रचनाकार वही एक है। वह सारे जगत का अजन्मा पिता है। फिर मनुष्य-मनुष्य में थोड़ा-बहुत जो भेद है। वह उसके अपने कर्मों के कारण है परंतु एक ही ईश्वर या आत्मा का अंश उनमें समाए होने के कारण सभी एक हैं। इतना जानने के बाद भी कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य की अर्थात् अपने भाई की मदद न करे और उसकी व्यथा दूर न करे तो वह सबसे बड़े अनर्थ हैं। इसका कारण यह है कि ऐसा न करके मनुष्य अपनी मनुष्यता को कलंकित करता है।

प्रश्न 2.
‘मनुष्यता’ कविता की वर्तमान में प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
मनुष्यता कविता हमें सच्चा मनुष्य बनने की राह दिखाती है। मनुष्य को इस कविता द्वारा सभी मनुष्यों के अपना भाई मानने, उनकी भलाई करने और एकता बनाकर रखने की सीख दी गई है। कविता के अनुसार सच्चा मनुष्य वही है जो सभी को अपना समझते हुए दूसरों की भलाई के लिए ही जीता और मरता है। वह दूसरों के साथ उदारता से रहता है और मानवीय एकता को दृढ़ करने के लिए प्रयासरत रहता है। वह खुद उन्नति के पथ पर चलकर दूसरों को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। वर्तमान में इस कविता की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है क्योंकि आज दुनिया में स्वार्थवृत्ति, अहंकार, लोभ, ईर्ष्या, छल-कपट आदि बढ़ रहा है जिससे मनुष्य-मनुष्य में दूरी बढ़ रही है।

प्रश्न 3.
‘मनुष्यता’ कविता में वर्णित उशीनर, दधीचि और कर्ण के उन कार्यों का उल्लेख कीजिए जिससे वे मनुष्य को मनुष्यता की राह दिखा गए।
उत्तर-
‘मनुष्यता’ कविता में वर्णित उशीनर, दधीचि और कर्ण द्वारा किए गए कार्य इस प्रकार हैं-
उशीनर – इन्हें राजा शिवि के नाम से भी जाना जाता है। राजा उशीनर ने अपनी शरण में आए एक कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर से उसके वजन के बराबर माँस बाज को दे दिया। इस तरह दयालुता का अनुकरणीय कार्य किया।

दधीचि – महर्षि दधीचि ने दानवों को पराजित करने के लिए अपने शरीर की हड्डयाँ दान दे दीं जिनसे बज्र बनाकर दानवों को युद्ध में हराया गया और मानवता की रक्षा की गई।

कर्ण – कर्ण अत्यंत दानी वीर एवं साहसी योद्धा था। उसने ब्राह्मण वेशधारी श्रीकृष्ण और इंद्र को अपना कवच-कुंडल दान दे दिया। यह दान बाद में उसके लिए जानलेवा सिद्ध हुआ।
इस प्रकार उक्त महापुरुषों ने अनूठे कार्य करके मानवता की रक्षा की और त्याग एवं परोपकार करके मनुष्य को मनुष्यता की राह दिखाई।

पूर्व वर्षों के प्रश्नोत्तर

2016
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Question 1.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 1
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 1a

2015
अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 2.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 2
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 2a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 2b

लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 3.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 3
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 3a

Question 4.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 4
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 4a

2014
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 5.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 5
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 5a

Question 6.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 6
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 1a

Question 7.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 7
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 7a

काव्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 8.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 8
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 8a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 8b
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 8c

2013
काव्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 9.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 9
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 9a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 9b
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 9d

Question 10.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 10
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 10a
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 10b

Question 11.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 11
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 11a
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 11b

2012
अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 12.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 12
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 12a

Question 13.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 13
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 13a

लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 14.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 14
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 14a

Question 15.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 15
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 15a

Question 16.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 16
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 16a

Question 17.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 17
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 17a

काव्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 18.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 18
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 18a
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 18b

Question 19.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 19
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 19a
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 19b

Question 20.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 20
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 20a
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 20b

2011
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 21.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 21
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 21a

Question 22.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 22
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 22a

Question 23.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 23
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 23a

काव्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 24.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 24
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 24a
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 24b

Question 25.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 25
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 25a
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 25b

2010
काव्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 26.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 26
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 26a

Question 27.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 27
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - मनुष्यता 27a

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