NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 1 Harihar Kaka

Harihar Kaka Class 10 – हरिहर काका Chapter 1

कक्षा 10 हिंदी – पाठ 1 (हरिहर काका)

Harihar Kaka Class 10 Hindi Sanchayan Bhag-2 Chapter 1 (हरिहर काका), Summary, Notes, Explanation, Questions Answers

Harihar Kaka summary of CBSE Class 10 Hindi Sanchayan Bhag-2 lesson 1 along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson हरिहर काका, all the exercises and Question and Answers given here

यहाँ हम हिंदी कक्षा 10 “संचयन भाग-2” के पाठ-1 “हरिहर काका” कहानी के पाठ-प्रवेश, पाठ-सार, पाठ-व्याख्या, कठिन-शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर, इन सभी के बारे में जानेंगे।

Author Introduction – लेखक परिचय

लेखक – मिथिलेश्वर
जन्म – 1950

Harihar Kaka Introduction – पाठ प्रवेश

समाज में सुखी जीवन जीने के लिए रिश्तों-नातों का बहुत अधिक महत्त्व है। परन्तु आज के समाज में सभी मानवीय और पारिवारिक मूल्यों और कर्तव्यों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं। ज्यादातर लोग केवल स्वार्थ के लिए ही रिश्ते निभाते हैं। जहाँ लोगों को लगता है कि उनका फ़ायदा नहीं हो रहा है वहाँ लोग जाना ही बंद कर देते हैं। आज का व्यक्ति स्वार्थी मनोवृति का हो गया है। वह केवल अपने मतलब के लिए ही लोगों से मिलता है। वह अपने अमीर रिश्तेदारों से रोज मिलना चाहता है परन्तु अपने गरीब रिश्तेदारों से कोसों दूर भागता है।

हमारे समाज में हमें देखने को मिलता है की कुछ बुज़ुर्ग भरोसा करके अपनी जिंदगी में ही अपनी जायदाद को अपने रिश्तेदारों या किसी और के नाम लिखवा देते हैं, वे सोचते हैं की ऐसा करने से उनका बुढ़ापा आसानी से काट जाएगा। पहले-पहले तो रिश्तेदार भी उनका बहुत आदर-सम्मान करते हैं, परन्तु बुढ़ापे में परिवार वालों को दो वक्त का खाना देना भी बुरा लगने लगाता है। बाद में उनका जीवन किसी कुत्ते की तरह हो जाता है, उन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं होता।

प्रस्तुत पाठ में भी हरिहर काका नाम का एक व्यक्ति है, जिसकी अपनी देह से कोई संतान नहीं है परन्तु उसके पास पंद्रह बीघे जमीन है और वही जमीन उसकी जान की आफत बन जाती है  अंत में उसी जमीन के कारण उसे सुरक्षा भी मिलती है। लेखक इस पाठ के जरिए समाज में हो रहे नकारात्मक बदलाव से हमें अवगत करवाना चाहता है कि आज का मनुष्य कितना स्वार्थी मनोवृति का हो गया है

Harihar Kaka Summary – पाठ सार

लेखक कहता है कि वह हरिहर काका के साथ बहुत गहरे से जुड़ा था। लेखक का हरिहर काका के प्रति जो प्यार था वह लेखक का उनके व्यावहार के और उनके विचारों के कारण था और उसके दो कारण थे। पहला कारण था कि हरिहर काका लेखक के पड़ोसी थे और दूसरा कारण लेखक को उनकी माँ ने बताया था कि हरिहर काका लेखक को बचपन से ही बहुत ज्यादा प्यार करते थे। जब लेखक व्यस्क हुआ तो उसकी पहली दोस्ती भी हरिहर काका के साथ ही हुई थी। लेखक के गाँव की पूर्व दिशा में ठाकुर जी का विशाल मंदिर था, जिसे गाँव के लोग ठाकुरबारी यानि देवस्थान कहते थे। लोग ठाकुर जी से पुत्र की मन्नत मांगते, मुक़दमे में जीत, लड़की की शादी किसी अच्छे घर में हो जाए, लड़के को नौकरी मिल जाए आदि मन्नत माँगते थे। मन्नत पूरी होने पर लोग अपनी ख़ुशी से ठाकुरजी को रूपए, ज़ेवर, और अनाज चढ़ाया करते थे। जिसको बहुत अधिक ख़ुशी होती थी वह अपने खेत का छोटा-सा भाग ठाकुरजी के नाम कर देता था और यह एक तरह से प्रथा ही बन गई। लेखक कहता है कि उसका गाँव अब गाँव के नाम से नहीं बल्कि देव-स्थान की वजह से ही पहचाना जाता था। उसके गाँव का यह देव-स्थान उस इलाके का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध देवस्थान था। हरिहर काका ने अपनी परिस्थितिओं के कारण देव-स्थान में जाना बंद कर दिया था। मन बहलाने के लिए लेखक भी कभी-कभी देव-स्थान चला जाता था। लेकिन लेखक कहता है कि वहाँ के साधु-संत उसे बिलकुल भी पसंद नहीं थे। क्योंकि वे काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते थे। भगवान को भोग लगाने के नाम पर वे दिन के दोनों समय हलवा-पूड़ी बनवाते थे और आराम से पड़े रहते थे। सारा काम वहाँ आए लोगों से सेवा करने के नाम पर करवाते थे। वे खुद अगर कोई काम करते थे तो वो था बातें बनवाने का काम।

लेखक हरिहर काका के बारे में बताता हुआ कहता है कि हरिहर काका और उनके तीन भाई हैं। सबकी शादी हो चुकी है। हरिहर काका के अतिरिक्त सभी तीन भाइयों के बाल-बच्चे हैं। कुछ समय तक तो  हरिहर काका की सभी चीज़ों का अच्छे से ध्यान रखा गया, परन्तु फिर कुछ दिनों बाद हरिहर काका को कोई पूछने वाला नहीं था। लेखक कहता है कि अगर कभी हरिहर काका के शरीर की स्थिति ठीक नहीं होती तो हरिहर काका पर मुसीबतों का पहाड़ ही गिर जाता। क्योंकि इतने बड़े परिवार के रहते हुए भी हरिहर काका को कोई पानी भी नहीं पूछता था। बारामदे के कमरे में पड़े हुए हरिहर काका को अगर किसी चीज़ की जरुरत होती तो उन्हें खुद ही उठना पड़ता। एक दिन उनका  भतीजा शहर से अपने एक दोस्त को घर ले आया । उन्हीं के आने की ख़ुशी में दो-तीन तरह की सब्ज़ियाँ, बजके, चटनी, रायता और भी बहुत कुछ बना था। सब लोगों ने खाना खा लिया और हरिहर काका को कोई पूछने तक नहीं आया। हरिहर काका गुस्से में बरामदे की ओर चल पड़े और जोर-जोर से बोल रहे थे कि उनके भाई की पत्नियाँ क्या यह सोचती हैं कि वे उन्हें मुफ्त में खाना खिला रही हैं। उनके खेत में उगने वाला अनाज भी इसी घर में आता है।

हरिहर काका के गुस्से का महंत जी ने लाभ उठाने की सोची। महंत जी हरिहर काका को अपने साथ देव-स्थान ले आए और हरिहर काका को समझाने लगे की उनके भाई का परिवार केवल उनकी जमीन के कारण उनसे जुड़ा हुआ है, किसी दिन अगर हरिहर काका यह कह दें कि वे अपने खेत किसी और के नाम लिख रहे हैं, तो वे लोग तो उनसे बात करना भी बंद कर देंगें। खून के रिश्ते ख़त्म हो जायेंगे। महंत हरिहर काका से कहता है कि उनके हिस्से में जितने खेत हैं वे उनको भगवान के नाम लिख दें। ऐसा करने से उन्हें सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होगी।

सुबह होते ही हरिहर काका के तीनों भाई देव-स्थान पहुँच गए। तीनों हरिहर काका के पाँव में गिर कर रोने लगे और अपनी पत्नियों की गलती की माफ़ी माँगने लगे और कहने लगे की वे अपनी पत्नियों को उनके साथ किए गए इस तरह के व्यवहार की सज़ा देंगे। हरिहर काका के मन में दया का भाव जाग गया और वे फिर से घर वापिस लौट कर आ गए। जब अपने भाइयों के समझाने के बाद हरिहर काका घर वापिस आए तो घर में और घर वालों के व्यवहार में आए बदलाव को देख कर बहुत खुश हो गए। घर के सभी छोटे-बड़े सभी लोग हरिहर काका का आदर-सत्कार करने लगे।

गाँव के लोग जब भी कहीं बैठते तो बातों का ऐसा सिलसिला चलता जिसका कोई अंत नहीं था। हर जगह बस उन्हीं की बातें होती थी। कुछ लोग कहते कि हरिहर काका को अपनी जमीन भगवान के नाम लिख देनी चाहिए। इससे उत्तम और अच्छा कुछ नहीं हो सकता। इससे हरिहर काका को कभी न ख़त्म होने वाली प्रसिद्धि प्राप्त होगी। इसके विपरीत कुछ लोगों की यह मानते थे कि भाई का परिवार भी तो अपना ही परिवार होता है। अपनी जायदाद उन्हें न देना उनके साथ अन्याय करना होगा। हरिहर काका के भाई उनसे प्रार्थना करने लगे कि वे अपने हिस्से की जमीन को उनके नाम लिखवा दें। इस विषय पर हरिहर काका ने बहुत सोचा और अंत में इस परिणाम पर पहुंचे कि अपने जीते-जी अपनी जायदाद का स्वामी किसी और को बनाना ठीक नहीं होगा। फिर चाहे वह अपना भाई हो या मंदिर का महंत। क्योंकि उन्हें अपने गाँव और इलाके के वे कुछ लोग याद आए, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ही अपनी जायदाद को अपने रिश्तेदारों या किसी और के नाम लिखवा दिया था। उनका जीवन बाद में किसी कुत्ते की तरह हो गया था, उन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं था। हरिहर काका बिलकुल भी पढ़े-लिखे नहीं थे, परन्तु उन्हें अपने जीवन में एकदम हुए बदलाव को समझने में कोई गलती नहीं हुई और उन्होंने फैसला कर लिया कि वे जीते-जी किसी को भी अपनी जमीन नहीं लिखेंगे।

लेखक कहता है कि जैसे-जैसे समय बीत रहा था महंत जी की परेशानियाँ बढ़ती जा रही थी। उन्हें लग रहा था कि उन्होंने हरिहर काका को फसाँने के लिए जो जाल फेंका था, हरिहर काका उससे बाहर निकल गए हैं, यह बात महंत जी को सहन नहीं हो रही थी। आधी रात के आस-पास देव-स्थान के साधु-संत और उनके कुछ साथी भाला, गंड़ासा और बंदूकों के साथ अचानक ही हरिहर काका के आँगन में आ गए। इससे पहले हरिहर काका के भाई कुछ सोचें और किसी को अपनी सहायता के लिए आवाज लगा कर बुलाएँ, तब तक बहुत देर हो गई थी।  हमला करने वाले हरिहर काका को अपनी पीठ पर डाल कर कही गायब हो गए थे।वे हरिहर काका को देव-स्थान ले गए थे। एक ओर तो देव-स्थान के अंदर जबरदस्ती हरिहर काका के अँगूठे का निशान लेने और पकड़कर समझाने का काम चल रहा था, तो वहीं दूसरी ओर हरिहर काका के तीनों भाई सुबह होने से पहले ही पुलिस की जीप को लेकर देव-स्थान पर पहुँच गए थे। महंत और उनके साथियों ने हरिहर काका को कमरे में हाथ और पाँव बाँध कर रखा था और साथ ही साथ उनके मुँह में कपड़ा ठूँसा गया था ताकि वे आवाज़ न कर सकें। परन्तु हरिहर काका दरवाज़े तक लुढ़कते हुए आ गए थे और दरवाज़े पर अपने पैरों से धक्का लगा रहे थे ताकि बाहर खड़े उनके भाई और पुलिस उन्हें बचा सकें।

दरवाज़ा खोल कर हरिहर काका को बंधन से मुक्त किया गया।  हरिहर काका ने पुलिस को बताया कि वे लोग उन्हें उस कमरे में इस तरह बाँध कर कही गुप्त दरवाज़े से भाग गए हैं और उन्होंने कुछ खली और कुछ लिखे हुए कागजों पर हरिहर काका के अँगूठे के निशान जबरदस्ती लिए हैं।

यह सब बीत जाने के बाद हरिहर काका फिर से अपने भाइयों के परिवार के साथ रहने लग गए थे। चौबीसों घंटे पहरे दिए जाने लगे थे। यहाँ तक कि अगर हरिहर काका को किसी काम के कारण गाँव में जाना पड़ता तो हथियारों के साथ चार-पाँच लोग हमेशा ही उनके साथ रहने लगे। लेखक कहता है कि हरिहर काका के साथ जो कुछ भी हुआ था उससे हरिहर काका एक सीधे-सादे और भोले किसान की तुलना में चालाक और बुद्धिमान हो गए थे। उन्हें अब सब कुछ समझ में आने लगा था कि उनके भाइयों का अचानक से उनके प्रति जो व्यवहार परिवर्तन हो गया था, उनके लिए जो आदर-सम्मान और सुरक्षा वे प्रदान कर रहे थे, वह उनका कोई सगे भाइयों का प्यार नहीं था बल्कि वे सब कुछ उनकी धन-दौलत के कारण कर रहे हैं, नहीं तो वे हरिहर काका को पूछते तक नहीं। जब से हरिहर काका देव-स्थान से वापिस घर आए थे, उसी दिन से ही हरिहर काका के भाई और उनके दूसरे नाते-रिश्तेदार सभी यही सोच रहे थे कि हरिहर काका को क़ानूनी तरीके से उनकी जायदाद को उनके भतीजों के नाम कर देना चाहिए। क्योंकि जब तक हरिहर काका ऐसा नहीं करेंगे तब तक महंत की तेज़ नज़र उन पर टिकी रहेगी। जब हरिहर काका के भाई हरिहर काका को समझाते-समझाते थक गए, तो उन्होंने हरिहर काका को डाँटना और उन पर दवाब डालना शुरू कर दिया। एक रात हरिहर काका के भाइयों ने भी उसी तरह का व्यवहार करना शुरू कर दिया जैसा महंत और उनके सहयोगियों ने किया था। उन्हें धमकाते हुए कह रहे थे कि ख़ुशी-ख़ुशी कागज़ पर जहाँ-जहाँ जरुरत है, वहाँ-वहाँ अँगूठे के निशान लगते जाओ, नहीं तो वे उन्हें मार कर वहीँ घर के अंदर ही गाड़ देंगे और गाँव के लोगो को इस बारे में कोई सूचना भी नहीं मिलेगी। हरिहर काका के साथ अब उनके भाइयों की मारपीट शुरू हो गई। जब हरिहर काका अपने भाइयों का मुकाबला नहीं कर पा रहे थे, तो उन्होंने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर अपनी मदद के लिए गाँव वालों को आवाज लगाना शुरू कर दिया। तब उनके भाइयों को ध्यान आया कि उन्हें हरिहर काका का मुँह पहले ही बंद करना चाहिए था। उन्होंने उसी पल हरिहर काका को जमीन पर पटका और उनके मुँह में कपड़ा ठूँस दिया। लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी, हरिहर काका की आवाजें बाहर गाँव में पहुँच गई थी। हरिहर काका के परिवार और रिश्ते-नाते के लोग जब तक गाँव वालों कोसमझाते की यह सब उनके परिवार का आपसी मामला है, वे सभी इससे दूर रहें, तब तक महंत जी बड़ी ही दक्षता और तेज़ी से वहाँ पुलिस की जीप के साथ आ गए। पुलिस ने पुरे घर की अच्छे से तलाशी लेना शुरू कर दिया। फिर घर के अंदर से हरिहर काका को इतनी बुरी हालत में हासिल किया गया जितनी बुरी हालत उनकी देव-स्थान में भी नहीं हुई थी। हरिहर काका ने बताया कि उनके भाइयों ने उनके साथ बहुत ही ज्यादा बुरा व्यवहार किया है, जबरदस्ती बहुत से कागजों पर उनके अँगूठे के निशान ले लिए है, उन्हें बहुत ज्यादा मारा-पीटा है।  

इस घटना के बाद हरिहर काका अपने परिवार से एकदम अलग रहने लगे थे। उन्हें उनकी सुरक्षा के लिए चार राइफलधारी पुलिस के जवान मिले थे। आश्चर्य की बात तो यह है कि इसके लिए उनके भाइयों और महंत की ओर से काफ़ी प्रयास किए गए थे। असल में भाइयों को चिंता थी कि हरिहर काका अकेले रहने लगेंगे, तो देव-स्थान के महंत-पुजारी फिर से हरिहर काका को बहला-फुसला कर ले जायँगे और जमीन देव-स्थान के नाम करवा लेंगे। और यही चिंता महंत जी को भी थी कि हरिहर काका को अकेला और असुरक्षित पा उनके भाई फिर से उन्हें पकड़ कर मारेंगे और जमीन को अपने नाम करवा लेंगे। लेखक कहता है कि हरिहर काका से जुड़ी बहुत सी ख़बरें गाँव में फैल रही थी। जैसे-जैसे दिन बड़ रहे थे, वैसे-वैसे डर का मौहोल बन रहा था। सभी लोग सिर्फ यही सोच रहे थे कि हरिहर काका ने अमृत तो पिया हुआ है नहीं, तो मरना तो उनको एक दिन है ही। और जब वे मरेंगे तो पुरे गाँव में तूफ़ान आ जाएगा क्योंकि महंत और हरिहर काका के परिवार के बीच जमीन को ले कर लड़ाई हो जायगी।  

पुलिस के जवान हरिहर काका के खर्चे पर ही खूब मौज-मस्ती से रह रहे थे। जिसका धन वह रहे उपास, खाने वाले करें विलास अर्थात हरिहर काका के पास धन था लेकिन उनके लिए अब उसका कोई महत्त्व नहीं था और पुलिस वाले बिना किसी कारण से ही हरिहर काका के धन से मौज कर रहे थे। अब तक जो नहीं खाया था, दोनों वक्त उसका भोग लगा रहे थे।

Harihar Kaka Explanation – पाठ व्याख्या

हरिहर काका के यहाँ से मैं अभी-अभी लौटा हूँ। कल भी उनके यहाँ गया था, लेकिन न तो वह कल ही कुछ कह सके और न आज ही। दोनों दिन उनके पास मैं देर तक बैठा रहा, लेकिन उन्होंने कोई बातचीत नहीं की। जब उनकी तबियत के बारे में पूछा तब उन्होंने सिर उठाकर एक बार मुझे देखा। फिर सिर झुकाया तो मेरी ओर नहीं देखा। हालाँकि उनकी एक ही नज़र बहुत कुछ कह गई। जिन यंत्रणाओं के बीच वह घिरे थे और जिस मनः स्थिति में जी रहे थे, उसमें आँखे ही बहुत कुछ  कह देती हैं, मुँह खोलने की जरूरत नहीं पड़ती।

तबियत – शरीर की स्थिति / मन की स्थिति
यंत्रणा – यातना / कलेश / कष्ट
मनःस्थिति – मन की स्थिति

लेखक कहता है कि वह अभी-अभी हरिहर काका के घर से लौटा है। वह पिछले कल भी उनके घर गया था, लेकिन हरिहर काका ने ना तो उससे पिछले कल बात की और ना ही उन्होंने आज कुछ बोला था। दोनों ही दिन लेखक हरिहर काका के पास बहुत समय तक बैठा रहा, लेकिन उन्होंने कोई बात नहीं की। जब लेखक ने उनसे उनके हालचाल के बारे में पूछा तो उन्होंने लेखक को एक बार सिर उठाकर देखा और फिर सिर झुका दिया और उसके बाद लेखक की ओर नहीं देखा। लेखक को उनकी एक नजर से ही सब कुछ समझ आ गया था। जिन कष्टों में वे थे और उनके मन की जो स्थिति थी, उनको अपने मुँह से कहने की भी कोई जरुरत नहीं थी क्योंकि उनकी आँखे ही सब कुछ कह रही थी।

हरिहर काका की जिन्दगी से मैं बहुत गहरे में जुड़ा हूँ। अपने गाँव में जिन चंद लोगों को मैं सम्मान देता हूँ, उनमें हरिहर काका भी एक हैं। हरिहर काका के प्रति मेरी आसक्ति के अनेक व्यावहारिक और वैचारिक कारण हैं। उनमें प्रमुख कारण दो हैं। एक तो यह कि हरिहर काका मेरे पड़ोस में रहते हैं और दूसरा कारण यह की मेरी माँ बताती हैं, हरिहर काका बचपन में मुझे बहुत दुलार करते थे। अपने कंधे पर बैठा कर घुमाया करते थे। एक पिता अपने बच्चे को जितना प्यार करता है, उससे कहीं ज्यादा प्यार हरिहर काका मुझे करते थे। और जब मैं सयाना हुआ तब मेरी पहली दोस्ती हरिहर काका के साथ ही हुई।

चंद – कुछ
आसक्ति – लगाव
व्यावहारिक – व्यावहार सम्बन्धी
वैचारिक – विचार सम्बन्धी
दुलार – प्यार
सयाना – व्यस्क / बुद्धिमान / समझदार

लेखक कहता है कि वह हरिहर काका के साथ बहुत गहरे से जुड़ा था। लेखक अपने गाँव के जिन कुछ लोगों का सम्मान करता था, हरिहर काका उनमें से एक थे। लेखक का हरिहर काका के प्रति जो प्यार था वह लेखक का उनके व्यावहार के और उनके विचारों के कारण था। लेखक का हरिहर काका के प्रति जो प्यार था उसके दो कारण थे। उनमें से पहला कारण था कि हरिहर काका लेखक के पड़ोसी थे और दूसरा कारण लेखक को उनकी माँ ने बताया था कि हरिहर काका लेखक को बचपन से ही बहुत ज्यादा प्यार करते थे। वे लेखक को अपने कंधे पर बैठा कर घुमाया करते थे। एक पिता का अपने बच्चों के लिए जितना प्यार  होता है, लेखक के अनुसार हरिहर काका का उसके लिए प्यार उससे भी अधिक था। लेखक कहता है कि जब वह व्यस्क हुआ या थोड़ा समझदार हुआ तो उसकी पहली दोस्ती भी हरिहर काका के साथ ही हुई थी।

हरिहर काका ने भी जैसे मुझसे दोस्ती के लिए ही इतनी उम्र तक प्रतीक्षा की थी। माँ बताती है कि मुझसे पहले गाँव में किसी अन्य से उनकी इतनी गहरी दोस्ती नहीं हुई थी। वह मुझसे कुछ भी नहीं छिपाते थे। खूब खुल कर बातें करते थे लेकिन फ़िलहाल मुझसे भी कुछ कहना उन्होंने बंद कर दिया है। उनकी इस स्थिति ने मुझे चिंतित कर दिया है। जैसे कोई नाव बीच मझधार में फँसी हो और उस पर सवार लोग चिल्लाकर भी अपनी रक्षा न कर सकते हों, क्योंकि उनकी चिल्लाहट दूर तक फैले सागर के बीच उठती-गिरती लहरों में विलीन हो जाने के अतिरिक्त कर ही क्या सकती है? मौन हो कर जल-समाधि लेने के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं। लेकिन मन इसे मानने को कतई तैयार नहीं। जीने की लालसा की वजह से बैचेनी और छटपटाहट बढ़ गई हो, कुछ ऐसी ही स्थिति के बीच हरिहर काका घिर गए हैं।

प्रतीक्षा – इंतज़ार
फ़िलहाल – अभी / इस समय
मझधार – बीच में (जल प्रवाह या भवसागर के मध्य में)
विलीन – लुप्त हो जाना
विकल्प – दूसरा उपाय

लेखक कहता है कि जब उसके पहले दोस्त हरिहर काका बने तो उसे ऐसा लगा जैसे हरिहर काका ने भी लेखक से दोस्ती करने के लिए अपनी इतनी लम्बी उम्र तक इन्तजार किया हो। लेखक की माँ ने लेखक को बताया था कि उससे पहले हरिहर काका की गाँव में किसी से इतनी गहरी दोस्ती नहीं हुई थी। लेखक कहता है कि हरिहर काका उससे कभी भी कुछ नहीं छुपाते थे, वे उससे सबकुछ खुल कर कह देते थे लेकिन अभी इस समय उन्होंने लेखक से भी बात करना बंद कर दिया था। उनकी इस तरह की परिस्थिति को देख कर लेखक को उनकी चिंता हो रही थी। उनकी स्थिति लेखक को इस तरह लग रही थी जैसे कोई नाव जल प्रवाह या भवसागर के मध्य में फँस गई हो और उसमे बैठे लोग किसी को चिल्लाकर भी नहीं बुला सकते क्योंकि भवसागर के बीच में होने की वजह से उनकी आवाजें कहीं लहरों की आवाजों में मिल कर लुप्त हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में चुप-चाप वहीँ पानी में ही अंतिम साँस लेने के आलावा कोई और रास्ता नहीं रह जाता। लेखक कहता है कि उसे हरिहर काका की ऐसी स्थिति पर विश्वास नहीं हो रहा था। ऐसी स्थिति में जैसे जीने के लालच में बैचेनी और छटपटाहट बढ़ जाती है, कुछ ऐसी ही स्थिति के बीच में हरिहर काका फँसे हुए लग रहे थे।

हरिहर काका के बारे में मैं सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि वह यह समझ नहीं पा रहे हैं कि कहे तो क्या कहें? अब कोई ऐसी बात नहीं जिसे कहकर वह हल्का हो सकें। कोई ऐसी उक्ति नहीं जिसे कहकर वे मुक्ति पा सकें। हरिहर काका की स्थिति में मैं भी होता तो निश्चय ही इस गूँगेपन का शिकार हो जाता।

हरिहर काका इस स्थिति में कैसे आ फँसे? यह कौन सी स्थिति है? इसके लिए कौन जिम्मेवार है? यह सब बताने से पहले अपने गाँव का और खासकर उस गाँव की ठाकुरबारी का संक्षिप्त परिचय मैं आपको दे देना उचित समझता हूँ क्योंकि उसके बिना तो यह कहानी तो अधूरी ही रह जाएगी।

उक्ति – कथन / वाक्य
ठाकुरबारी – देवस्थान

लेखक कहता है कि हरिहर काका की इस स्थिति को देख कर उसे लग रहा था कि वे शायद समझ नहीं पा रहे थे कि उन्हें क्या कहना चाहिए? अब शायद कोई ऐसी बात ही नहीं थी जिसको बोल कर वे अपना मन हल्का कर सकें और न ही कोई ऐसा वाक्य या कथा है जो उनके मन को शांति प्रदान कर सके। लेखक कहता है कि हरिहर काका की जो स्थिति है उसमें अगर वह स्वयं भी होता तो वह भी शायद इसी तरह गूँगा हो जाता अर्थात किसी से बात नहीं करता।

अब बात आती है कि हरिहर काका इस स्थिति में कैसे फँस गए। यह कौन सी स्थिति है जिसके बारे में लेखक बात कर रहा है। हरिहर काका को इस स्थिति में पहुँचाने के लिए कौन जिम्मेवार हैं। यह सब बताने से पहले लेखक अपने गाँव और खासकर उस गाँव में स्थित देवस्थान के बारे में संक्षेप में बताना चाहता है क्योंकि उसको जाने बिना कहानी को समझना नामुमकिन है और कहानी उसके बिना अधूरी है।

मेरा गाँव कस्बाई शहर आरा से चालीस किलोमीटर की दुरी पर है। हसनबाजार बस स्टैंड के पास। गाँव की कुल आबादी ढाई-तीन हज़ार होगी। गाँव में तीन प्रमुख स्थान हैं। गाँव के पश्चिम किनारे का बड़ा-सा तालाब। गाँव के मध्य स्थित बरगद का पुराना वृक्ष और गाँव के पूरब में ठाकुर जी का विशाल मंदिर, जिसे गाँव के लोग ठाकुरबारी कहते हैं।

मध्य – बीच में

लेखक कहता है कि उसका गाँव कस्बाई शहर आरा से चालीस किलोमीटर की दुरी पर हसनबाजार बस स्टैंड के पास स्थित है। गाँव की कुल आबादी लगभग ढाई-तीन हज़ार होगी। गाँव में तीन प्रमुख स्थान हैं। पहला-गाँव के पश्चिम किनारे में एक बड़ा-सा तालाब स्थित है। गाँव के बीचोंबीच एक बरगद का पुराना वृक्ष स्थित है और गाँव की पूर्व दिशा में ठाकुर जी का विशाल मंदिर है, जिसे गाँव के लोग ठाकुरबारी यानि देवस्थान कहते हैं।

गाँव में इस ठाकुरबारी की स्थापना कब हुई, इसकी ठीक-ठीक जानकारी किसी को नहीं। इस सम्बन्ध में गाँव में जो कहानी प्रचलित है वह यह कि वर्षों पहले जब यह गाँव पूरी तरह बसा भी नहीं था, कहीं से एक संत आकर इस स्थान पर झोंपड़ी बना रहने लगे थे। वह सुबह-शाम यहाँ ठाकुरजी की पूजा किया करते थे। लोगों से माँगकर खा लेते थे और पूजा- पाठ की भावना जाग्रत किया करते थे। बाद में लोगों ने चंदा करके यहाँ ठाकुरजी का एक छोटा-सा मंदिर बनवा दिया। फिर जैसे-जैसे गाँव बसता गया और आबादी बढ़ती गई, मंदिर के कलेवर में भी विस्तार होता गया। लोग ठाकुरजी को मनौती मनाते कि पुत्र हो, मुकदमे में विजय हो, लड़की की शादी अच्छे घर में तय हो, लड़के को नौकरी मिल जाए। फिर इसमें जिनको सफलता मिलती, वह ख़ुशी से ठाकुरजी पर रूपय, ज़ेवर, अनाज चढ़ाते। अधिक ख़ुशी होती तो ठाकुरजी के नाम अपने खेत का एक छोटा-सा टुकड़ा लिख देते। यह परंपरा आज तक ज़ारी है।

प्रचलित – चलनसार
जाग्रत – जगाना
कलेवर – शरीर / देह / ऊपरी ढाँचा
मनौती – मन्नत
परंपरा – प्रथा / प्रणाली

लेखक उसके गाँव में स्थापित देव-स्थान की स्थापना के बारे में कहता है कि गाँव में वह देव-स्थान कब स्थापित किया गया इसके बारे में कोई भी सही-सही नहीं बता सकता। इसके बारे में गाँव में जो कहानी चली आ रही है उसके अनुसार, बहुत साल पहले जब गाँव सही ढंग से बसा भी नहीं था तब न जाने कहाँ से एक संत गाँव में आकर उस स्थान पर झोंपड़ी बना कर रहने लगा। वह संत सुबह-शाम ठाकुरजी की पूजा किया करता था और लोगो से माँगकर ही खाना खाता था। वह लोगो में पूजा-पाठ की भावना को जगाने का काम

करता था। बाद में लोगों ने आपस में ही कुछ धन जमा करके उस झोंपड़ी के स्थान पर ठाकुरजी का एक छोटा-सा मंदिर बना दिया। फिर जैसे-जैसे गाँव बढ़ता गया, वहाँ की आबादी भी बढ़ती गई और साथ-ही-साथ मंदिर के आकार में भी बढ़ोतरी होती गई। लोग ठाकुर जी से पुत्र की मन्नत मांगते, मुक़दमे में जीत, लड़की की शादी किसी अच्छे घर में हो जाए, लड़के को नौकरी मिल जाए आदि मन्नत माँगते थे। मन्नत पूरी होने पर लोग अपनी ख़ुशी से ठाकुरजी को रूपए, ज़ेवर, और अनाज चढ़ाया करते थे। जिसको बहुत अधिक ख़ुशी होती थी वह अपने खेत का छोटा-सा भाग ठाकुरजी के नाम कर देता था और यह एक तरह से प्रथा ही बन गई जो आज तक चली आ रही है।  

अधिकांश लोगों को विश्वास है कि उन्हें अच्छी फसल होती है, तो ठाकुरजी की कृपा से। मुक़दमे में उनकी जीत हुई तो ठाकुरजी के चलते। लड़की की शादी इसलिए जल्दी तय हो गई, क्योंकि ठाकुरजी को मनौती मनाई गई थी। लोगों के इस विश्वास का ही यह परिणाम है कि गाँव की अन्य चीज़ों की तुलना में ठाकुरबारी का विकास हज़ार गुना अधिक हुआ है। अब तो यह गाँव ठाकुरबारी से ही पहचाना जाता है। यह ठाकुरबारी न सिर्फ मेरे गाँव की एक बड़ी और विशाल ठाकुरबारी है बल्कि पुरे इलाके में इसकी जोड़ की दूसरी ठाकुरबारी नहीं।
ठाकुरबारी के नाम पर बीस बीघे खेत हैं। धार्मिक लोगों की एक समिति है, जो ठाकुरबारी की देख-रेख और सञ्चालन के लिए प्रत्येक तीन साल पर एक महंत और एक पुजारी की नियुक्ति करती है।

अधिकांश – ज्यादातर
समिति – संस्था
सञ्चालन – नियंत्रण / चलाना
नियुक्ति – तैनाती / लगाया गया

लेखक कहता है कि गाँव के ज्यादातर लोगों का विश्वास यह बन गया है कि अगर उनकी फसल अच्छी हो तो उसे वे अपनी मेहनत नहीं बल्कि ठाकुरजी की कृपा मानते हैं। किसी की मुक़दमे में जीत होती है तो उसका श्रेय भी ठाकुरजी को दिया जाता है। लड़की की अगर शादी जल्दी तय हो जाती है तो भी माना जाता है कि ठाकुरजी से मन्नत माँगने के कारण  ऐसा हुआ है। लोगो के इस तरह के विश्वास का ही परिणाम है कि देव-स्थान का विकास गाँव की बाकि सभी चीज़ों से हज़ार गुना ज्यादा हुआ है। लेखक कहता है कि उसका गाँव अब गाँव के नाम से नहीं बल्कि देव-स्थान के वजह से ही पहचाना जाता है। उसके गाँव का यह देव-स्थान केवल उसके गाँव का ही सबसे बड़ा देव-स्थान नहीं है बल्कि यह देव-स्थान तो उस इलाके का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध देवस्थान है।

लेखक कहता है कि देव-स्थान के नाम पर लगभग बीस बीघे जमीन है। देव-स्थान की देख-रेख और नियंत्रण के लिए एक धार्मिक लोगों की संस्था का निर्माण भी किया गया है, यह संस्था हर तीन साल में एक महंत और एक पुजारी को तैनात करती है जो देव-स्थान में पूजा-पाठ का ध्यान रखते है।

ठाकुरबारी का काम लोगो के अंदर ठाकुर जी के प्रति भक्ति भावना पैदा करना तथा धर्म से विमुख हो रहे लोगो को रास्ते पर लाना है। ठाकुरबारी में भजन-कीर्तन की आवाज़ बराबर गूँजती रहती है। गाँव जब भी बाढ़ या सूखे की चपेट में आता है, ठाकुरबारी के अहाते में तंबू लग जाता है। .लोग और ठाकुरबारी के साधु -संत अखंड हरिकीर्तन शुरू कर देते हैं। इसके अतिरिक्त गाँव में किसी भी पर्व-त्योहार की शुरुआत ठाकुरबारी से ही होती है। होली का सबसे पहला गुलाल ठाकुरजी को ही चढ़ाया जाता है। दीवाली का पहला दीप ठाकुरबारी में ही जलता है। जन्म, शादी और जनेऊ के अवसर पर अन्न-वस्त्र की पहली भेंट ठाकुरजी के नाम की जाती है ठाकुरजी के ब्राह्मण-साधु व्रत-कथाओं के दिन घर-घर घूमकर कथावाचन करते हैं। लोगों के खलिहान में जब फसल की दवनी होकर अनाज की ‘ढेरी’ तैयार हो जाती है, तब ठाकुरजी के नाम ‘अगउम’ निकलकर ही लोग अनाज अपने घर ले जाते हैं।

विमुख – प्रतिकूल   
चपेट – आघात / प्रहार
अहाता – चारों ओर से दीवारों से घिरा हुआ मैदान
अखंड – निर्विघ्न
दवनी – गेंहूँ / धान निकालने की प्रक्रिया
अगउम – प्रयोग में लाने से पहले देवता के लिए निकाला गया अंश

लेखक देव-स्थान के काम के बारे में बताता हुआ कहता है कि देव-स्थान का काम लोगों के अंदर भगवान के प्रति आस्था और विश्वास पैदा करना और जो लोग धर्म के रास्ते से भटक गए हैं उन्हें सही रास्ता दिखाना है। देव-स्थान पर भगवान के भजन-कीर्तन की आवाजें गूँजती रहती हैं। जब कभी भी गाँव पर बाढ़ और सूखे का प्रहार होता है, तो देव-स्थान के चारों ओर से दीवारों से घिरे हुए मैदान में तंबू लग जाते हैं और वहाँ लोग और देव-स्थान के साधु-संत बिना किसी रोक-टोक वाले या बहुत लम्बे समय तक चलने वाले हरिकीर्तन शुरू कर देते हैं। इतना ही नहीं अगर गाँव में कभी भी-कोई भी पर्व-त्योहार होता है, तो उसकी शुरुआत भी देव-स्थान से ही होती है। जैसे-होली का पहला गुलाल भगवान को लगाया जाता है, दीवाली का पहला दीप भी देव-स्थान पर ही जलाया जाता है। जन्म, शादी और जनेऊ के अवसर पर भी पहली भेंट भगवान के ही नाम जाती है। भगवान के ब्राह्मण-साधु व्रत-कथाओं के दिन घर-घर घूमकर कथा का बखान करते हैं। लोगो के आँगन में जब गेंहूँ या धान निकालने की प्रक्रिया शुरू होती है और जब अनाज का ढेर तैयार हो जाता है, तो प्रयोग में लाने से पहले देवता के लिए अनाज का अंश निकाला जाता है, उसके बाद ही लोग अनाज को अपने घर ले जाते हैं।

ठाकुरबारी के साथ अधिकांश लोगों का सम्बन्ध बहुत ही घनिष्ठ है-मन और तन दोनों स्तर पर। कृषि-कार्य से अपना बचा हुआ समय वे ठाकुरबारी में ही बिताते हैं। ठाकुरबारी में साधु-संतों के प्रवचन सुन और ठाकुर जी के दर्शन कर वे अपना यह जीवन सार्थक मानने लगते हैं। उन्हें यह महसूस होता है कि ठाकुरबारी में प्रवेश करते ही वे पवित्र हो जाते हैं। उनके पिछले सारे पाप अपने आप ख़त्म हो जाते हैं।

घनिष्ठ – अत्यधिक निकटता
प्रवचन – वेद, पुराण आदि का उपदेश करना
सार्थक – उद्देश्य वाला

लेखक कहता है कि गाँव के कुछ लोगों का देव-स्थान के साथ बहुत निकटता का रिश्ता बन गया है, वे तन-मन दोनों से ही देव-स्थान के प्रति आस्थावान हैं। वे अपने कृषि के काम को ख़त्म करके बचा हुआ समय देव-स्थान में ही बिताते हैं। देव-स्थान के साधु-संतो के द्वारा वेद, पुराण आदि का उपदेश सुनकर और भगवान के दर्शन कर लेने से वे अपने जीवन को उद्देश्य से भरपूर मानते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि जैसे ही वे देव-स्थान में प्रवेश करते हैं, वे पवित्र हो जाते हैं और उनके द्वारा किये गए सारे बुरे काम अपने आप ही ख़त्म हो जाते हैं।

परिस्थितिवश इधर हरिहर काका ने ठाकुरबारी में जाना बंद कर दिया है। पहले वह अकसर ही ठाकुरबारी में जाते थे। मन बहलाने के लिए कभी-कभी मैं भी ठाकुरबारी में जाता हूँ। लेकिन वहाँ के साधु-संत मुझे फूटी आँखों नहीं सुहाते। काम-धाम करने में उनकी कोई रूचि नहीं। ठाकुरजी को भोग लगाने के नाम पर दोनों जून हलवा-पूड़ी खाते हैं और आराम से पड़े रहते हैं। उन्हें अगर कुछ आता है तो सिर्फ बात बनाना आता है।

परिस्थितिवश – परिस्थितियों के कारण
फूटी आँखों न सुहाना – थोड़ा भी अच्छा न लगना
दोनों जून – दोनों वक्त

लेखक कहता है कि हरिहर काका ने अपनी परिस्थितिओं के कारण देव-स्थान में जाना बंद कर दिया है। पहले वे लगभग हमेशा ही देव-स्थान जाया करते थे। मन बहलाने के लिए लेखक भी कभी-कभी देव-स्थान चला जाता था। लेकिन लेखक कहता है कि वहाँ के साधु-संत उसे बिलकुल भी पसंद नहीं थे। क्योंकि वे काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते थे। भगवान को भोग लगाने के नाम पर वे दिन के दोनों समय हलवा-पूड़ी बनवाते थे और आराम से पड़े रहते थे। सारा काम वहाँ आए लोगो से सेवा करने के नाम पर करवाते थे। वे खुद अगर कोई काम करते थे तो वो था बातें बनवाने का काम।

हरिहर काका चार भाई हैं। सबकी शादी हो चुकी है। हरिहर काका के आलावा सबके बाल-बच्चे हैं। बड़े और छोटे भाई के लड़के काफी सयाने हो गए हैं। दो की शादियाँ हो गई हैं। उनमें से एक पढ़-लिखकर शहर के किसी दफ़्तर में क्लर्की करने लगा है। लेकिन हरिहर काका की अपनी देह से कोई औलाद नहीं। भाइयों में हरिहर काका का नंबर दूसरा है औलाद के लिए उन्होंने दो शादियाँ कीं। लंबे समय तक प्रतीक्षारत रहे। लेकिन बिना बच्चा जने उनकी दोनों पत्नियाँ स्वर्ग सिधार गईं। लोगों ने तीसरी शादी करने की सलाह दी लेकिन अपनी गिरती हुई उम्र और धार्मिक संस्कारों की वजह से हरिहर काका ने इंकार कर दिया वह इत्मीनान और प्रेम से अपने भाइयों के परिवार के साथ रहने लगे।

आलावा – अतिरिक्त
क्लर्की – लिपिक / कर्मचारी
प्रतीक्षारत – इंतज़ार करना
इत्मीनान – तसल्ली

लेखक हरिहर काका के बारे में बताता हुआ कहता है कि हरिहर काका और उनके भाई, चार हैं। सबकी शादी हो चुकी है। हरिहर काका के अतिरिक्त सभी तीन भाइयों के बाल-बच्चे हैं। बड़े और छोटे भाई के बच्चे बहुत समझदार हो गए हैं। उनमें से दो की शादियाँ भी हो गई हैं। उनमें से एक पढ़-लिखकर शहर में कहीं लिपिक की नौकरी कर रहा है। लेकिन हरिहर काका की कोई अपनी औलाद नहीं है। भाइयों में हरिहर काका दूसरे नंबर के भाई हैं। औलाद की चाह में हरिहर काका ने दो शादियाँ की थी। बहुत लम्बे समय तक वे औलाद की प्रतीक्षा करते रहे, लेकिन औलाद को बिना जन्म दिए ही उनकी दोनों पत्नियाँ स्वर्ग सिधार गई। लोगों ने हरिहर काका को तीसरी शादी करने के लिए कहा, लेकिन अपनी बढ़ती उम्र और अपने धार्मिक संस्कारों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने तीसरी शादी करने से इंकार कर दिया। वे तसल्ली और प्यार के साथ अपने भाइयों के परिवार के साथ रहने लगे थे।

हरिहर काका के परिवार के पास कुल साठ बीघे खेत हैं। प्रत्येक भाई के हिस्से पंद्रह बीघे पड़ेंगे। कृषि-कार्य पर ये लोग निर्भर हैं। शायद इसलिए अब तक संयुक्त परिवार के रूप में ही रहते आ रहे हैं।

हरिहर काका के तीनों भाइयों ने अपनी पत्नियों को यह सीख दी थी कि हरिहर काका की अच्छी तरह सेवा करें। समय पर उन्हें नाश्ता-खाना दें। किसी तरह की तकलीफ़ न होने दें। कुछ दिनों तक वे हरिहर काका की खोज-खबर लेती रहीं। फिर उन्हें कौन पूछने वाला? ‘ठहर चौका’ लगाकर पंखा झलते हुए अपने मर्दों को अच्छे-अच्छे व्यंजन खिलातीं। हरिहर काक के आगे तो बची-खुची चीज़ें आती। कभी-कभी तो हरिहर काका को रूखा-सूखा खा कर ही संतोष करना पड़ता।

व्यंजन – अच्छा खाना
संतोष – तृप्ति / प्रसन्नता / हर्ष

लेखक कहता है कि हरिहर काका के पूरे परिवार के पास लगभग साठ बीघे खेत हैं। अगर हर एक भाई को बराबर-बराबर बाँट दें तो हर एक के हिस्से में पंद्रह बीघे जमीन आएगी। ये सभी लोग अपना गुजारा खेती-बाड़ी कर के ही करते हैं। शायद यही कारण था कि अब तक ये पूरा परिवार एक साथ ही रहता था।

हरिहर काका के तीनों भाइयों ने अपनी-अपनी पत्नियों को यह कह कर रखा था कि हरिहर काका की अच्छे से सेवा होनी चाहिए। समय पर उन्हें नाश्ता-खाना आदि मिलना चाहिए। उनको किसी भी तरह की परेशानी नहीं होनी चाहिए। कुछ दिनों तक तो वे हरिहर काका की सभी चीज़ों का अच्छे से ध्यान रखती रही, परन्तु फिर कुछ दिनों बाद हरिहर काका को कोई पूछने वाला नहीं था। खाने की मेज़ सजाकर पंखा हिलाते हुए अपने-अपने पत्तियों को अच्छा-अच्छा खाना खिलाती थी और हरिहर काका के सामने जो कुछ बच जाता था वही परोसा जाता था। कभी-कभी तो हरिहर काका को बिना तेल-घी के ही रूखा-सूखा खाना खा कर प्रसन्न रहना पड़ता था।

आगे कभी हरिहर काका की तबीयत खराब हो जाती तो मुसीबत में पड़ जाते। इतने बड़े परिवार में रहते हुए भी कोई उन्हें पानी देने वाला तक नहीं। सभी अपने कामों में मशगूल। बच्चे या तो पढ़-लिख रहे होते या धमाचौकड़ी मचाते। मर्द खेतों में गए रहते। औरतें हाल पूछने भी नहीं आतीं। दालान के कमरे में अकेले पड़े हरिहर काका को स्वयं उठकर अपनी जरूरतों की पूर्ति करनी पड़ती। ऐसे वक्त अपनी पत्नियों को याद कर-करके हरिहर काका की आँखें भर आती। भाइयों के परिवार के प्रति मोहभंग की शुरुआत इन्हीं क्षणों में हुई थी।

तबीयत – शरीर की स्थिति / मन की स्थिति

मशगूल – व्यस्त
धमाचौकड़ी – उछल-कूद
दालान – बरामदा
मोहभंग – प्रेम की भ्रान्ति का नाश

लेखक कहता है कि अगर कभी हरिहर काका के शरीर की स्थिति या मन की स्थिति ठीक नहीं होती तो समझिए हरिहर काका पर मुसीबतों का पहाड़ ही गिर जाता। क्योंकि इतने बड़े परिवार के रहते हुए भी हरिहर काका को कोई पानी भी नहीं पूछता था। सभी अपने-अपने कामों को करने में व्यस्त रहते थे। बच्चे या तो अपनी पढ़ाई कर रहे होते थे या उछल-कूद कर रहे होते थे। परिवार के सभी मर्द खेतों में गए होते थे। औरते तो हरिहर काका का हाल भी पूछने नहीं आती थी। बारामदे के कमरे में पड़े हुए हरिहर काका को अगर किसी चीज़ की जरुरत होती तो उन्हें खुद ही उठना पड़ता। ऐसे समय में हरिहर काका को अपनी दोनों पत्नियों की याद आ जाती और उनकी आँखें भर जाती। लेखक के अनुसार हरिहर काका का जो भाइयों के परिवार के लिए प्यार था उसके कम होने की शुरुआत उनके साथ होने वाले इस तरह के व्यवहार से ही हुई थी।

और फिर, एक दिन तो विस्फोट ही गया। उस दिन हरिहर काका की सहन-शक्ति ज़वाब दे गई। उस दिन शहर में क्लर्की करने वाले भतीजे का एक दोस्त गाँव आया था उसी के आगमन के उपलक्ष्य में दो-तीन तरह की सब्ज़ी, बजके, चटनी, रायता आदि बने थे। बिमारी से उठे हरिहर काका का मन स्वादिष्ट भोजन के लिए बेचैन था। मन-ही-मन उन्होंने अपने भतीजे के दोस्त की सराहना की, जिसके बहाने उन्हें अच्छी चीज़ें खाने को मिलने वाली थीं। लेकिन बातें बिलकुल विपरीत हुईं। सबों ने खाना खा लिया, उनको कोई पूछने तक नहीं आया। उनके तीन भाई खाना खाकर खलियान में चले गए। दवनी हो रही थी। वे इस बात के प्रति निश्चिंत थे कि हरिहर काका को तो पहले ही खिला दिया गया होगा।  

विस्फोट – फूट कर बाहर निकलना
आगमन – आने पर
उपलक्ष्य – संकेत
सराहना – प्रशंसा
निश्चिंत – बेफिक्र

लेखक कहता है कि हरिहर काका सब कुछ सहन कर रहे थे, परन्तु एक दिन सब कुछ फूट कर बाहर आ गया। उस दिन हरिहर काका की सहन-शक्ति टूट गई। उस दिन उनका जो भतीजा शहर में क्लर्की की नौकरी करता है, वह और उसका एक दोस्त गाँव आए हुए थे। उन्हीं के आने की ख़ुशी में दो-तीन तरह की सब्ज़ियाँ, बजके, चटनी, रायता और भी बहुत कुछ बना था। बिमारी से कुछ समय पहले ही ठीक हुए हरिहर काका का भी कुछ स्वादिष्ट खाना खाने का मन था। हरिहर काका मन-ही-मन भतीजे और उसके दोस्त की प्रशंसा करने लगे क्योंकि उनकी वजह से ही आज हरिहर काका को स्वादिष्ट खाना खाने को मिलने वाला था। लेकिन जैसा हरिहर काका ने सोचा था बात बिलकुल उसके उलटी हुई। सब लोगों ने खाना खा लिया और हरिहर काका को कोई पूछने तक नहीं आया। उनके तीनों भाई खाना खा कर खलियान में चले गए क्योंकि गेंहूँ और धान को अलग करने का काम चल रहा थे। वे इस बात से बैख़बर थे और सोच रहे थे कि हरिहर काका को तो पहले ही खाना दे दिया गया होगा।

अंत में हरिहर काका ने स्वयं दालान के कमरे से निकल हवेली में प्रवेश किया। तब उनके छोटे भाई की पत्नी ने रुखा-सूखा खाना लाकर उनके सामने परोस दिया-भात, मा और अचार। बस, हरिहर काका के बदन में तो जैसे आग लग गई। उन्होंने थाली उठाकर बीच आँगन में फेंक दी। झन्न की तेज़ आवाज़ के साथ आँगन में थाली गिरी। भात बिखर गया। विभिन्न घरों में बैठी लड़कियाँ, बहुएँ सब एक साथ बाहे निकल आईं। हरिहर काका गरजते  हुए हवेली से दालान की ओर  चल पड़े-“समझ रही हो कि मुफ़्त में खिलाती हो, तो अपने मन से यह बात निकाल देना। मेरे हिस्से के खेत की पैदावार इसी घर में आती है। उसमें तो मैं दो-चार नौकर रख लूँ, आराम से खाऊँ, तब भी कमी नहीं होगी। मैं अनाथ और बेसहारा नहीं हूँ। मेरे धन पर तो तुन सब मौज कर रही हो। लेकिन अब मैं तुम सबों को बताऊँगा…. आदि।”

लेखक कहता है कि जब हरिहर काका को किसी ने खाना खाने के लिए नहीं पूछा तो वे खुद ही बरामदे वाले कमरे से निकल कर हवेली के अंदर गए। तब हरिहर काका के छोटे भाई कि पत्नी ने रुखा-सूखा खाना लाकर उनके सामने परोस दिया। जिसमें भात, दाल और अचार ही था। बस फिर क्या था, ऐसा खाना देखकर हरिहर काका को गुस्सा आ गया और उन्होंने थाली को उठाकर बीच आँगन में फेंक दिया। थाली आँगन में झन्न की आवाज़ के साथ बहुत जोर से गिरी। भात गिर कर आँगन में बिखर गया। गाँव के अलग-अलग घरों में बैठी लड़कियाँ और बहुएँ आवाज को सुनकर एक साथ बाहर आ गईं। हरिहर काका गुस्से में बरामदे की ओर चल पड़े और जोर-जोर से बोल रहे थे कि उनके भाई की पत्नियाँ क्या यह सोचती हैं कि वे उन्हें मुफ्त में खाना खिला रही हैं। अगर वे ऐसा कुछ सोचती हैं तो वे अपने मन से ऐसी बातें निकाल दें। हरिहर काका कह रहे थे कि उनके खेत में उगने वाला अनाज भी इसी घर में आता है। और अगर वो अलग रहें तो वो दो-चार नौकर रख कर आराम से अपनी जिंदगी काट सकते हैं, उनको कोई कमी नहीं होगी। वे अनाथ और

बेसहारा नहीं हैं क्योंकि जब तक उनके पास धन है वे किसी को भी अपना बना सकते हैं। हरिहर काका कह रहे थे कि उनके भाई का परिवार उनके पैसों पर ही तो मौज करता है। लेकिन अब हरिहर काका सबसे उनके साथ ऐसा दुर्व्यवहार करने के लिए बदला लेने की बात कर रहे थे, और भी वे ना जाने क्या-क्या बोल रहे थे।

हरिहर काका जिस वक्त यह सब बोल रहे थे, उस वक्त ठाकुरबारी के पुजारी जी उनके दालान पर ही विराजमान थे। वार्षिक हुमाध के लिए वह घी और शकील लेने आए थे। लौटकर उन्होंने महंत जी को विस्तार के साथ सारी बात बताई। उनके कान खड़े हो गए। वह दिन उन्हें बहुत शुभ महसूस हुआ। उस दिन को उन्होंने ऐसे ही गुज़र जाने देना उचित नहीं समझा। तत्क्षण टिका-तिलक लगा, कंधे पर रामनामी लिखी चादर डाल ठाकुरबारी से चल पड़े। संयोग अच्छा था। हरिहर के दालान तक नहीं जाना पड़ा। रास्ते में ही हरिहर मिल गए। गुस्से में घर से निकल वह खलियान की ओर जा रहे थे। लेकिन महंत जी ने उन्हें खलियान की ओर नहीं जाने दिया। अपने साथ ठाकुरबारी पर लेते आए।

विराजमान – उपस्थित
हुमाध – हवन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री
कान खड़े होना – सावधान होना
तत्क्षण – उसी समय
संयोग – किस्मत

लेखक कहता है कि जिस समय हरिहर काका गुस्से में सबको बातें सूना रहे थे, उस समय देव-स्थान के पुजारी जी उनके बरामदे में ही उपस्थित थे। वे उनके घर साल में होने वाले हवन के लिए लगने वाली सामग्री के लिए घी और शकील लेने के लिए आए थे। पुजारी जी ने वहाँ से लौटकर महंत जी को सारी बातें बहुत ही विस्तार से सुनाई। महंत जी सावधान हो गए। उन्हें लग रहा था कि यह दिन बहुत ही ज्यादा अच्छा है। उस दिन का ऐसे ही बीत जाना उन्होंने सही नहीं समझा। उन्होंने तुंरत टिका-तिलक लगाया, अपने कंधे पर राम नाम लिखी चादर को डाला और देव-स्थान से निकल कर चल पड़े। उनकी किस्मत अच्छी थी। हरिहर काका के बरामदे तक नहीं जाना पड़ा। उन्हें हरिहर काका रास्ते में ही मिल गए थे। क्योंकि हरिहर काका गुस्से में घर से निकल कर खलियान की ओर जा रहे थे, लेकिन महंत जी ने उन्हें रास्ते में ही रोक दिया और खलियान की ओर नहीं जाने दिया। महंत जी हरिहर काका को अपने साथ देव-स्थान ले आए।

फिर एकांत कमरे में उन्हें बैठा, खूब प्रेम से समझाने लगे-” हरिहर! यहाँ कोई किसी का नहीं है। सब माया का बंधन है। तू तो धार्मिक प्रवृति का आदमी है। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि तुम इस बंधन में कैसे फँस गए? ईश्वर में भक्ति लगाओ। उसके सिवाय कोई तुम्हारा अपना नहीं। पत्नी, बेटे, भाई-बंधु सब स्वार्थ के साथी हैं। जिस दिन उन्हें लगेगा कि तुमसे उनका स्वार्थ सधने वाला नहीं, उस दिन वे तुम्हें पूछेंगे तक नहीं। इसलिए ज्ञानी, संत, महात्मा ईश्वर के सिवाय किसी और में प्रेम नहीं लगाते।…..तुम्हारे हिस्से में पंद्रह बीघे खेत हैं। उसी के चलते तुम्हारे भाई के परिवार तुम्हें पकड़े हुए हैं। तुम एक दिन कह कर तो देख लो कि अपना खेत उन्हें ना देकर दूसरे को लिख दोगे, वह तुमसे बोलना बंद कर देंगे। खून का रिश्ता खत्म हो जायगा। तुम्हारे भले के लिए मैं बहुत दिनों से सोच रहा था लेकिन संकोचवश नहीं कह रहा था।

एकांत – खाली
स्वार्थ – अपना मतलब
संकोच – झिझक

लेखक कहता है कि महंत जी हरिहर काका को एक खाली कमरे में ले गए और बहुत ही प्यार से समझाने लगे कि इस दुनिया में कोई किसी का नहीं है। इस दुनिया में लालच और सम्पति का झूठा जाल है। महंत हरिहर काका को कहता है कि उसे वे धर्म से जुड़े हुए व्यक्ति लगते हैं। उसे समझ में नहीं आ रहा कि हरिहर काका इतने समझदार होते हुए भी ऐसे बंधन में कैसे फँस गए। महंत हरिहर काका को भगवान में आस्था लगाने को कहता है क्योंकि महंत के अनुसार भगवान के सिवाय इस दुनिया में कोई अपना नहीं है। पत्नी, बेटे, भाई-बंधु सब केवल अपने मतलब के लिए ही साथ में होते हैं। जिस दिन उन्हें लगेगा कि उनका मतलब पूरा नहीं हो रहा है तो वे बात तक नहीं करेंगें। इसीलिए तो बड़े-बड़े ज्ञानी, संत, महात्मा भगवान के अलावा किसी और से प्यार नहीं करते। महंत हरिहर काका से कहता है कि उनके हिस्से में तो पंद्रह बीघे खेत हैं। जिसके कारण उनके भाइयों का परिवार उनसे जुड़ा हुआ है। किसी दिन अगर हरिहर काका यह कह दें कि वे अपने खेत किसी और के नाम लिख रहे हैं तो वे लोग तो उनसे बात करना भी बंद कर देंगें। खून के रिश्ते ख़त्म हो जायेंगे। महंत हरिहर काका से कहता है कि ये उनके भले की है और वह बहुत दिनों से उनसे कहना चाहता था लेकिन झिझक के कारण नहीं बोल पाया।

आज कह देता हूँ, तुम अपने हिस्से का खेत ठाकुर जी के नाम लिख दो। सीधे बैकुंठ को प्राप्त करोगे। तीनो लोकों में तुम्हारी कीर्ति जगमगा उठेगी। जब तक चाँद-सूरज रहेंगे, तब तक लोग तुम्हें याद करेंगे। ठाकुरजी के नाम पर ज़मीन लिख देना, तुम्हारे जीवन का महादान होगा। साधु-संत तुम्हारे पाँव पखारेंगे। सभी तुम्हारा यशोगान करेंगे। तुम्हारा यह  जीवन सार्थक हो जाएगा। अपनी शेष जिंदगी तुम इसी ठाकुरबारी में गुजारना, तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं होगी। एक माँगोगे तो चार हाज़िर की जाएँगी हम तुम्हें सिर-आँखों

पर उठाकर रखेंगे। ठाकुरजी के साथ-साथ तुम्हारी आरती भी लगाएँगे। भाई का परिवार तुम्हारे लिए कुछ नहीं करेगा। पता नहीं पूर्वजन्म में तुमने कौन सा पाप किया था कि तुम्हारी दोनों पत्नियाँ अकालमृत्यु को प्राप्त हुई। तुमने औलाद का मुँह तक नहीं देखा। अपना यह जन्म तुम अकारथ न जाने दो। ईश्वर को एक भर दोगे तो दस भर पाओगे। मैं अपने लिए तो तुमसे माँग नहीं रहा हूँ। तुम्हारा यह लोक और परलोक दोनों बन जाएँ, इसकी राह मैं तुम्हें बता रहा हूँ…..।”

बैकुंठ – स्वर्ग
कीर्ति – प्रसिद्धि /ख्याति
पाँव पखारना – पाँव धोना
अकारथ – अकारण

महंत हरिहर काका से कहता है कि उनके हिस्से में जितने खेत हैं वे उनको भगवान के नाम लिख दें। ऐसा करने से उन्हें सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। तीनों लोकों में उनकी प्रसिद्धि का ही गुणगान होगा। जब तक इस दुनिया में चाँद-सूरज रहेंगे, तब तक लोग उन्हें याद किया करेंगे। भगवान के नाम पर अपनी सारी जमीन को लिख देना उनके जीवन का महादान कहलाया जायगा। साधु-संत भी उनके पाँव धोएंगें। सभी उनकी प्रशंसा और उनका गुणगान करेंगे। उनका जीवन सफल हो जाएगा। महंत हरिहर काका से कहता है कि वे अपनी बाकी की जिंदगी देव-स्थान पर गुजार सकते हैं। वहाँ पर उन्हें कभी भी किसी भी चीज़ की कोई कमी नहीं होगी। कोई एक चीज़ माँगने पर चार चीज़ें रख दी जाएगी। वहाँ पर उनका बहुत आदर-सत्कार किया जाएगा। भगवान की पूजा के साथ-साथ हरिहर काका की भी पूजा की जाएगी। महंत हरिहर काका से कहता है कि उनके भाई का परिवार उनके लिए कुछ भी नहीं करेगा। महंत यह भी कहता है कि पता नहीं हरिहर काका ने पिछले जन्म में कौन से ऐसे पाप किये थे जिसके कारण उनकी दोनों पत्नियाँ मृत्यु से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गई और ना ही वे औलाद का सुख हासिल कर पाए। महंत हरिहर काका को कहता है कि वे अपना जीवन अकारण ही ख़राब न करें। अगर वे भगवान को एक चीज़ देंगे तो भगवान उन्हें दस चीज़ें वापिस देंगे। महंत हरिहर काका से कहता है कि वह जमीन उसके अपने लिए तो नहीं माँग रहा, वह तो सिर्फ हरिहर काका को रास्ता दिखा रहा है ताकि हरिहर काका के लोक और परलोक दोनों सुख में बीते।

हरिहर देर तक महंत जी की बातें सुनते रहे। महंत जी कि बातें उनके मन में बैठती जा रही थीं। ठीक ही तो कह रहे हैं महंत जी। कौन किसका है? पंद्रह बीघे खेत की फसल भाइयों के परिवार को देतें हैं, तब तो कोई पूछता नहीं, अगर कुछ न दें तब क्या हालत होगी? उनके जीवन में तो यह स्थिती है, मरने के बाद कौन उन्हें याद करेगा? सीधे-सीधे उनके खेत हड़प जाएँगे। ठाकुर जी के नाम लिख देंगे तो पुश्तों तक लोग उन्हें याद करेंगे। अब तक के जीवन में तो ईश्वर के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया। अंतिम समय तो यह बड़ा पुण्य कमा लें। लेकिन यह सोचते हुए भी हरिहर काका का मुँह खुल नहीं रहा था। भाई का परिवार तो अपना ही होता है। उनको न देकर ठाकुरबारी में दे देना उनके साथ धोखा और विश्वासघात होगा…..।

हड़प लेना – बेईमानी से ले लेना

लेखक कहता है कि जब महंत हरिहर काका को समझा रहे थे, तो हरिहर काका बहुत देर तक महंत की बातों को सुनते रहे। महंत की बातें हरिहर काका के मन में बैठती जा रही थी और वे सोच रहे थे कि महंत सही तो कह रहे हैं। इस दुनिया में कोई किसी का नहीं है। क्योंकि वे अपने हिस्से के पंद्रह बीघे खेत की फसल अपने भाइयों के परिवार को दे देते हैं, उसके बाद भी वहाँ उनका ध्यान नहीं रखा जाता। हरिहर काका सोचने लगे अगर वे कुछ भी न दें फिर उनका क्या होगा।  उनके जीते जी ही उनका कोई महत्त्व नहीं रह गया है, तो मरने के बादकोई उन्हें याद नहीं करेगा ।  उनके खेतों पर बेईमानी से कब्ज़ा कर लिया जाएगा। हरिहर काका सोचने लगे कि अगर वे अपनी जमीन भगवान के नाम लिख दें तो पीढ़ियों तक उनको याद रखा जायेगा। अब तक के जीवन में उन्होंने भगवान के लिए कुछ भी नहीं किया। अपने अंतिम समय में वे कुछ अच्छा तो कर ही सकते हैं। लेखक कहता है कि हरिहर काका ये सब सोच तो रहे थे परन्तु वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे। वे दूसरी ओर यह भी सोच रहे थे कि भाई का परिवार भी तो अपना ही परिवार होता है। अपनी जमीन उनको न देकर देव-स्थान के नाम लिख देना,  उनके साथ भी तो धोखा और विश्वासघात होगा।

अपनी बात समाप्त पर महंत जी प्रतिक्रिया जानने के लिए हरिहर की ओर देखने लगे। उन्होंने मुँह से तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उनके चेहरे के परिवर्तित भाव महंत जी की अनुभवी आँखों से छिपे न रह सके। अपनी सफलता पर महंत जी को बहुत ख़ुशी हुई। उन्होंने सही जगह वार किया है। इसके बाद उसी वक्त ठाकुरबारी के दो सेवकों को बुलाकर आदेश दिया कि एक साफ़-सुथरे कमरे में पलंग पर बिस्तरा लगाकर उनके आराम का इंतज़ाम करें। फिर तो महंत जी के कहने में जितना समय लगा था, उससे कम समय में ही, सेवकों ने हरिहर काका के मना करने के बावज़ूद उन्हें एक सुन्दर कमरे में पलंग पर जा लिटाया। और महंत जी! उन्होंने पुजारी जी को यह समझा दिया कि हरिहर के लिए विशेष रूप से भोजन की व्यवस्था करें। हरिहर काका को महंत जी एक विशेष उद्देश्य से ले गए थे, इसलिए ठाकुरबारी में चहल-पहल शुरू हो गई।

प्रतिक्रिया – प्रतिकार / बदला / क्रिया के विरोध में होनेवाली घटना

परिवर्तित – बदला हुआ
इंतज़ाम – प्रबंध

जब महंत जी हरिहर काका को समझा कर रुके तो वे हरिहर काका की ओर देखने लगे क्योंकि वे जानना चाहते थे कि उनके समझाने का हरिहर काका पर क्या प्रभाव पड़ा है। हरिहर काका ने अपने मुँह से तो कोई उत्तर नहीं दिया परन्तु हरिहर काका के चेहरे की बदलती हुई भावनाओं को महंत जी आसानी से पहचान गए। महंत जी जो चाहते थे वह हो रहा था इसलिए वह बहुत खुश थे। वे जानते थे कि उन्होंने सही जगह और सही समय पर वार किया है। फिर महंत जी ने उसी समय दो सेवकों को बुलाया और उन्हें आदेश दिया कि एक साफ़-सुथरे कमरे में पलंग पर बिस्तरा लगाकर हरिहर काका के आराम का प्रबंध करें। महंत जी के कहने में जितना समय लगा था सेवकों ने उससे भी कम समय में ही काम कर दिया और हरिहर काका के मना करने के बाद भी उन्हें एक सुन्दर कमरे में पलंग पर लेटाया गया। और महंत जी ने पुजारी को यह समझा दिया था कि हरिहर काका के लिए विशेष रूप से भोजन की व्यवस्था करवाए क्योंकि हरिहर काका को महंत जी एक विशेष उद्देश्य से देव- स्थान में ले कर आए थे, इसलिए देव-स्थान में चहल-पहल शुरू हो गई।

इधर शाम को हरिहर काका के भाई जब खलियान से लौटे तब उन्हें इस दुर्घटना का पता चला पहले तो अपनी पत्नियों पर वे खूब बरसे, फिर एक जगह बैठकर चिंतामग्न हो गए। हालाँकि गाँव के किसी व्यक्ति ने भी उनसे कुछ नहीं कहा था। महंत जी ने हरिहर काका को क्या-क्या समझाया है, इसकी भी जानकारी उन्हें नहीं थी। लेकिन इसके बाबजूद उनका मन शंकालु और बेचैन हो गया। दरअसल, बहुत सारी बातें ऐसी होती हैं, जिनकी जानकारी बिना बताए ही लोगो को मिल जाती है।

शाम गहराते-गहराते हरिहर काका के तीनों भाई ठाकुरबारी पहुँचे। उन्होंने हरिहर काका को वापिस घर चलने के लिए कहा। इससे पहले की हरिहर काका कुछ कहते, महंत जी बीच में आ गए -“आज हरिहर को यहीं रहने दो…. बिमारी से उठा है। इसका मन अशांत है। ईश्वर के दरबार में रहेगा तो शांति मिलेगी….।”

चिंतामग्न – सोच में पड़ना
शंकालु – संदेह करने वाला
बेचैन – व्याकुल

हरिहर काका के भाई जब शाम को काम करके खलियान से लौटे तब उन्हें सारी बात का पता चला की उनके पीछे घर में क्या-क्या हुआ है। सब कुछ जान कर पहले तो उन्होंने अपनी पत्नियों को बहुत डाँटा, फिर एक स्थान पर बैठकर सोच में पड़ गए। वैसे अभी तक गाँव के किसी व्यक्ति ने उनसे कुछ नहीं कहा था और न ही उन्हें अभी तक इस बात का पता था की महंत जी ने हरिहर काका को क्या-क्या समझाया है। लेकिन इन सब के बाद भी उनका मन संदेह में पड़ गया और व्याकुल हो गया। क्योंकि उनको इस बात का पता था की बहुत सी बातों की जानकारी लोगों को बिना बताए ही हो जाती है।

शाम के ज्यादा गहरे होते-होते हरिहर काका के तीनो भाई हरिहर काका को घर वापिस लेने के लिए देव-स्थान पहुँच गए। उन्होंने हरिहर काका को घर चलने के लिए कहा और इससे पहले हरिहर काका कुछ बोलते महंत जी बीच में ही बोल पड़े कि आज हरिहर काका को देव-स्थान में ही रहने दिया जाए क्योंकि हरिहर काका अभी कुछ दिल पहले ही बिमारी से ठीक हुए हैं और उनका मन भी शांत नहीं है। अगर हरिहर काका भगवान के पास कुछ समय बिताएँगे तो उन्हें अच्छा लगेगा।

लेकिन उनके भाई उन्हें घर ले चलने के लिए ज़िद करने लगे। इस पर ठाकुरबारी के साधू-संत उन्हें समझने लगे। वहाँ उपस्थित गाँव के लोगों ने भी कहा कि एक रात ठाकुरबारी में रह जाएँगे तो क्या हो जाएगा? अंततः भाइयों को निराश हो वहाँ से लौटना पड़ा।

रात में हरिहर काका को भोग लगाने के लिए जो मिष्टान्न और व्यंजन मिले, वैसे उन्होंने कभी नहीं खाए थे। घी टपकते मालपुए, रस बुनिया, लड्डू, छेने की तरकारी, दही, खीर….। पुजारी जी ने स्वयं अपने हाथों से खाना परोसा था। पास में बैठे महंत जी धर्म चर्चा से मन में शांति पहुँचा रहे थे। एक ही रात में ठाकुरबारी में जो सुख-शांति और संतोष पाया, वह अपने अब तक के जीवन में उन्होंने नहीं पाया था।


मिष्टान्न – मिठाई
व्यंजन – तरह-तरह का भोजन

महंत के ये कहने पर भी कि आज हरिहर काका को देव-स्थान में ही रहने दो, उनके भाई उन्हें घर ले चलने की ज़िद करने लगे। इस पर देव-स्थान के सभी साधु-संत हरिहर काका के भाइयों को समझाने  लग गए। वहाँ पर उपस्थित गाँव के लोग भी उन्हें कहने लगे कि अगर एक रात हरिहर काका देव-स्थान पर रहेंगे तो कुछ नहीं होगा । इसके कारण हरिहर काका के भाइयों को निराश हो कर वापिस अपने घर जाना पड़ा।

देव-स्थान में रात के खाने के लिए हरिहर काका को जो खाना दिया गया, वैसी मिठाई और तरह-तरह का भोजन उन्होंने कभी नहीं खाए थे । घी टपकते मालपुए, रस बुनिया, लड्डू, छेने की तरकारी, दही, खीर और भी न जाने क्या-क्या। पुजारी जी ने स्वयं अपने हाथों से हरिहर काका को खाना परोसा था। पास में बैठे महंत जी धर्म चर्चा करते हुए हरिहर काका के मन में शांति पहुँचा रहे थे। एक ही रात में हरिहर काका ने देव-स्थान में जो सुख-शांति और संतोष पा लिया था, वह उन्होंने अपने अब तक के पुरे जीवन में हासिल नहीं किया था।

इधर तीनों भाई रात-भर सो नहीं सके। भावी आशंका उनके मन को मथती रही। पंद्रह बीघे खेत! इस गाँव की उपजाऊ ज़मीन! दो लाख से अधिक की सम्पति! अगर हाथ से निकल गई तो फिर वह कहीं के न रहेंगे।
सुबह तड़के ही तीनों भाई पुनः ठाकुरबारी पहुँचे। हरिहर काका के पाँव पकड़ रोने लगे। अपनी पत्नियों की गलती के लिए माफ़ी माँगी तथा उन्हें दण्ड देने की बात कही। साथ ही खून के रिश्ते की माया फैलाई। हरिहर काका का दिल पसीज़ गया। वह पुनः वापिस घर लौट आए।

भावी आशंका – भविष्य की चिंता
मथना – बार-बार सोचना
पसीज़ – मन में दया का भाव जागना

जब हरिहर काका देव-स्थान में ही रुक गए तो रात-भर उनके तीनों भाइयों को नींद नहीं आई। उनके भविष्य की चिंता उनके मन में बार-बार आती रही। वे सोचते रहे कि पंद्रह बीघे खेत, जिसकी जमीन गाँव की सबसे अधिक उपजाऊ जमीन है और लगभग दो लाख से ज्यादा की संपत्ति अगर उनके हाथ से निकाल गई तो वे क्या करेंगे।

सुबह होते ही हरिहर काका के तीनों भाई फिर से देव-स्थान पहुँच गए। तीनों हरिहर काका के पाँव में गिर कर रोने लगे और अपनी पत्नियों की गलती की माफ़ी माँगने लगे और कहने लगे की वे अपनी पत्नियों को उनके साथ किए गए इस तरह के व्यवहार की सज़ा देंगे। वे हरिहर काका के सामने खून के रिश्ते की बात करने लगे। हरिहर काका के मन में दया का भाव जाग गया और वे फिर से घर वापिस लौट कर आ गए।

लेकिन यह क्या? इस बार अपने घर पर जो बदलाव उन्होंने लक्ष्य किया,उसने उन्हें सुखद आश्चर्य में डाल दिया। घर के छोटे-बड़े सब उन्हें सिर-आँखों पर उठाने को तैयार। भाइयों की पत्नियों ने उनके पैर पर माथा रख गलती के लिए क्षमा-याचना की। फिर उनकी आवभगत और जो खातिर शुरू हुई, वैसी खातिर किसी के यहाँ मेहमान आने पर भी नहीं होती होगी। उनकी रूचि और इच्छा के मुताबिक दोनों जून खाना-नाश्ता तैयार। पाँच महिलाएँ उनकी सेवा में मुस्तैद- तीन भाइयों की पत्नियाँ और दो उनकी बहुएँ। हरिहर काका आराम से दालान में पड़े रहते। जिस किसी चीज़ की इच्छा होती, आवाज़ लगाते ही हाज़िर। वे समझ गए थे कि यह सब महंत जी के चलते ही हो रहा है, इसलिए महंत जी के प्रति उनके मन में आदर और श्रद्धा के भाव निरंतर बढ़ते ही जा रहे थे।

याचना – माँगना
आवभगत – सत्कार
मुस्तैद – कमर कस कर तैयार रहना
श्रद्धा – आदरपूर्ण आस्था या विश्वास
निरंतर – लगातार

जब अपने भाइयों के समझाने के बाद हरिहर काका घर वापिस आए तो घर में और घर वालों के व्यवहार में आए बदलाव को देख कर उन्हें बहुत ही सुख देने वाली भावना महसूस हुई। घर के सभी छोटे-बड़े लोग हरिहर काका का आदर-सत्कार करने लगे। तीनों भाइयों की पत्नियों ने हरिहर काका के पैरों में अपना माथा रख कर अपने व्यवहार के लिए माफ़ी माँगी। फिर तो जो सत्कार और खातिरदारी हरिहर काका की होने लगी, वैसी तो बहुतों के घर में मेहमानों की भी नहीं होती। जो भी हरिहर काका को पसंद होता, दोनों समय वही खाना बनाया जाता। तीन भाइयों की पत्नियाँ और उनकी दो बहुएँ- सभी पाँचों महिलाएँ हरिहर काका की सेवा में कमर कस कर हमेशा तैयार रहती थी। हरिहर काका आराम से बरामदे में पड़े रहते थे। उन्हें जिस किसी चीज़ की जरुरत होती वे सिर्फ आवाज देते सब कुछ उनके सामने लाया जाता। वे यह समझ गए थे कि ये सब महंत जी के कारण ही हो रहा है, इसीलिए महंत जी के लिए उनके मन में आदर पूर्ण आस्था और विश्वास लगातार बढ़ता ही जा रहा था।

बहुत बार ऐसा होता है कि बिना किसी के कुछ बताए गाँव के लोग असली तथ्य से स्वयं वाकिफ हो जाते हैं। हरिहार काका की इस घटना के साथ ऐसा ही हुआ। दरअसल लोगो की ज़ुबान से घटनाओं की जुबान ज्यादा पैनी और असरदार होती है। घटनाएँ स्वयं ही बहुत कुछ कह देती हैं, लोगों के कहने की जरुरत नहीं रहती। न तो गाँव के लोगों से महंत जी ने ही कुछ कहा था और न ही हरिहर काका के भाइयों ने ही। इसके बावजूद गाँव के लोग सच्चाई से अवगत हो गए थे। फिर तो गाँव की बैठकों में बातों का जो सिलसिला चल निकला उसका कहीं कोई अंत नहीं। हर जगह उन्हीं का प्रसंग शुरू। कुछ लोग कहते कि हरिहर को अपनी जमीन ठाकुर जी के नाम लिख देनी चाहिए। इससे उत्तम और कुछ नहीं। इससे कीर्ति भी अचल बनी रहती है। इसके विपरीत कुछ लोगों की मान्यता यह थी कि भाई का परिवार तो अपना ही होता है। अपनी जायदाद उन्हें न देना उनके साथ अन्याय करना होगा। खून के रिश्ते के बीच दीवार बनानी होगी।

तथ्य – वास्तविक घटना
वाकिफ – परिचित
अवगत – जाना हुआ
कीर्ति – प्रसिद्धि / ख्याति
अचल – गतिहीन

लेखक कहता है कि बहुत बार ऐसा देखने में आता है कि बिना किसी के कुछ भी बताए, गाँव के लोगों को वास्तविक घटना का पता चल ही जाता है। हरिहर काका की घटना में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। बात यह है कि लोगों की जुबान किसी भी घटना को और ज्यादा असरदार और महत्वपूर्ण बना देती है। कोई भी घटना खुद भी अपने बारे में बहुत कुछ बता देती है, लोगों के कहने की कोई जरुरत ही नहीं पड़ती। गाँव के लोगों को न तो महंत जी ने कुछ बताया था और ना ही हरिहर काका के भाइयों ने कुछ बताया था। उसके बाद भी गाँव के लोग सच्चाई से खुद ही परिचित हो गए थे। फिर तो गाँव के लोग जब भी कहीं बैठते तो बातों का ऐसा सिलसिला चलता जिसका कोई अंत नहीं था। हर जगह बस उन्हीं की बातें होती थी। कुछ लोग कहते कि हरिहर काका को अपनी जमीन भगवान के नाम लिख

देनी चाहिए। इससे उत्तम और अच्छा कुछ नहीं हो सकता। इससे हरिहर काका को कभी न ख़त्म होने वाली प्रसिद्धि प्राप्त होगी। इसके विपरीत कुछ लोग यह मानते थे कि भाई का परिवार भी तो अपना ही परिवार होता है। अपनी जायदाद उन्हें न देना उनके साथ अन्याय करना होगा। खून के रिश्ते के बीच दीवार बन सकती है।

जितने मुँह उतनी बातें। ऐसा जबरदस्त मसला पहले कभी नहीं मिला था, इसलिए लोग मौन होना नहीं चाहते थे। अपने-अपने तरीके से समाधान ढूँढ रहे थे और प्रतीक्षा कर रहे थे कि कुछ घटित हो। हालाँकि ऐसी क्रम में बातें गर्माहट-भरी भी होने लगी थीं। लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में दो वर्गों में बँटने लगे थे। कई बैठकों में दोनों वर्गों के बीच आपस में तू-तू, मैं-मैं भी होने लगी। एक वर्ग के लोग चाहते थे कि हरिहर अपने हिस्से की जमीन ठाकुर जी के नाम लिख दें। तब यह ठाकुरबारी न सिर्फ इलाके की ही सबसे बड़ी ठाकुरबारी होगी, बल्कि पूरे राज्य में इसका मुकाबला कोई दूसरी ठाकुरबारी नहीं कर सकेगी। इस वर्ग के लोग धार्मिक संस्कारों के लोग हैं। साथ ही किसी-न-किसी रूप में ठाकुरबारी से जुड़े हैं। असल में जब सुबह-शाम ठाकुरजी को भोग लगाया जाता है, तब साधु-संतों के साथ गाँव के कुछ पेटू और चटोर किस्म के लोग प्रसाद पाने के लिए वहाँ जुट जाते हैं। ये लोग इसी वर्ग के हिमायती हैं। दूसरे वर्ग में गाँव के प्रगतिशील विचारों वाले लोग तथा वैसे किसान हैं, जिनके यहाँ हरिहर जैसे औरत-मर्द पल रहे होते हैं। गाँव का वातावरण तनावपूर्ण हो गया था और लोग कुछ घटित होने की प्रतीक्षा करने लगे थे।

समाधान – उपाय
प्रत्यक्ष – जो सामने दिखाई दे
परोक्ष – जो सामने दिखाई न दे
हिमायती – तरफदारी करने वाला / पक्षपाती

लेखक कहता है कि गाँव में जितने मुँह थे उतनी रंग की बातें हो रही थी। बातें करने के लिए ऐसा वाक्य कभी नहीं मिला था, इसलिए लोग चुप होने का नाम नहीं ले रहे थे। हर कोई अपनी-अपनी समझ के आधार पर समस्या के लिए उपाय खोज रहा था और ये इन्तजार कर रहे थे कि कब कुछ घटना घटित हो। इसी के कारण बातें इतनी अधिक बढ़ गई थी कि लोग सामने और बिना सामने आए हुए भी दो भागों में बँट गए थे। कई बार तो हालात ये हो जाते कि दोनों भागों के लोगों के बीच झगड़े की नौबत आ जाती। एक वर्ग के लोग ये चाहते थे कि हरिहर अपने हिस्से की जमीन भगवान के नाम लिख दें। क्योंकि वे सोचते थे कि ऐसा करने पर उनका देव-स्थान न सिर्फ इलाके की ही सबसे बड़ा देव-स्थान होगा, बल्कि पूरे राज्य में इसका मुकाबला कोई दूसरा देव-स्थान नहीं कर पाएगा। जो लोग यह सोचते थे, वे धार्मिक प्रवृत्ति के लोग थे और वे किसी न किसी तरह देव-स्थान से जुड़े हुए थे। असल में वे ऐसे लोग थे, जो सुबह-शाम जब भगवान को भोग लगाया जाता, तब साधु-संतों के साथ प्रसाद पाने के लिए वहाँ जुट जाते थे। ये लोग सिर्फ साधु-संतों और महंतों की तरफदारी करने वाले थे। दूसरे वर्ग के लोग गाँव के विकास के बारे में सोचने वाले लोग थे और वे लोग थे जिनके घर में हरिहर काका की तरह कोई न कोई औरत या मर्द था। गाँव का वातावरण बहुत ही तनाव भरा हो गया था और लोग इंतज़ार कर रहे थे कि कुछ न कुछ घटित हो।

इधर भावी आशंकाओं के मद्देनज़र रखते हुए हरिहर काका के भाई उनसे यह निवेदन करने लगे कि अपनी जमीन वे उन्हें लिख दें। उनके सिवाय उनका और अपना है नहीं कौन? इस विषय पर हरिहर काका ने एकांत में मुझसे काफ़ी देर तक बात की। अंततः हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि जीते-जी अपनी जायदाद का स्वामी किसी और को बनाना ठीक नहीं होगा। चाहे वह अपना भाई या मंदिर का महंत ही क्यों न हो? हमें अपने गाँव और इलाके के वे कुछ लोग याद आए, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ही अपनी जायदाद अपने उत्तराधिकारियों या किसी अन्य को लिख दी थी, लेकिन उसके बाद उनका जीवन कुत्ते का जीवन हो गया। कोई उन्हें पूछने वाला नहीं रहा। हरिहर काका बिलकुल अनपढ़ व्यक्ति हैं, फिर भी इस बदलाव को उन्होंने समझ लिया और यह निश्चय किया कि जीते-जी किसी को जमीन नहीं लिखेंगे। अपने भाइयों को समझा दिया मर जाऊँगा तो अपने आप मेरी जमीन तुम्हें मिल जायगी। जमीन ले कर तो जाऊँगा नहीं। इसलिए लिखवाने की क्या जरुरत?

सिवाय – अलावा
निष्कर्ष – परिणाम

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कथावाचक और हरिहर काका के बीच क्या संबंध है और इसके क्या कारण हैं?
उत्तर-
हरिहर काका और कथावाचक (लेखक) दोनों के बीच में बड़े ही मधुर एवं आत्मीय संबंध थे, क्योंकि दोनों एक गाँव के निवासी थे। कथावाचक गाँव के चंद लोगों का ही सम्मान करता था और उनमें हरिहर काका एक थे। इसके निम्नलिखित कारण थे-

  1. हरिहर काका कथावाचक के पड़ोसी थे।
  2. कथावाचक की माँ के अनुसार हरिहर काका ने उसे बचपन में बहुत प्यार किया था।
  3. कथावाचक के बड़े होने पर उसकी पहली दोस्ती हरिहर काका के साथ ही हुई थी। दोनों आपस में बहुत ही खुल कर बातें करते थे।

प्रश्न 2.
हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के क्यों लगने लगे?
उत्तर-
हरिहर काका एक निःसंतान व्यक्ति थे। उनके पास पंद्रह बीघे जमीन थी। हरिहर काका के भाइयों ने पहले तो उनकी खूब देखभाल की परंतु धीरे-धीरे उनकी पत्नियों ने काका के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। महंत को जब यह पता चला तो वह बहला-फुसलाकर काका को ठाकुरबारी ले आए और उन्हें वहाँ रखकर उनकी खूब सेवा की। साथ ही उसने काका से उनकी पंद्रह बीघे जमीन ठाकुरबारी के नाम लिखवाने की बात की। काका ने जब ऐसा करने से मना किया तो महंत ने उन्हें मार-पीटकर जबरदस्ती कागज़ों पर अँगूठा लगवा दिया। इस बात पर दोनों पक्षों में जमकर झगड़ा हुआ। दोनों ही पक्ष स्वार्थी थे। वे हरिहर काका को सुख नहीं दुख देने पर उतारू थे। उनका हित नहीं अहित करने के पक्ष में थे। दोनों का लक्ष्य जमीन हथियाना था। इसके लिए दोनों ने ही काका के साथ छल व बल का प्रयोग किया। इसी कारण हरिहर काका को अपने भाई और महंत एक ही श्रेणी के लगने लगे।

प्रश्न 3.
ठाकुरबारी के प्रति गाँव वालों के मन में अपार श्रद्धा के जो भाव हैं उससे उनकी किस मनोवृत्ति का पता चलता है?
उत्तर-
ठाकुरबारी के प्रति गाँव वालों के मन में अपार श्रद्धा के जो भाव हैं, उनसे उनकी ठाकुर जी के प्रति भक्ति भावना, आस्तिकता, प्रेम तथा विश्वास को पता चलता है। वे अपने प्रत्येक कार्य की सफलता का कारण ठाकुर जी की कृपा को मानते थे।

प्रश्न 4.
अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका दुनिया की बेहतर समझ रखते हैं? कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका दुनिया की बेहतर समझ रखते हैं। वे जानते हैं कि जब तक उनकी जमीन-जायदाद उनके पास है, तब तक सभी उनका आदर करते हैं। ठाकुरबारी के महंत उनको इसलिए समझाते हैं क्योंकि वह उनकी जमीन ठाकुरबारी के नाम करवाना चाहते हैं। उनके भाई उनका आदर-सत्कार जमीन के कारण करते हैं। हरिहर काका ऐसे कई लोगों को जानते हैं, जिन्होंने अपने जीते जी अपनी जमीन किसी और के नाम लिख दी थी। बाद में उनका जीवन नरक बन गया था। वे नहीं चाहते थे कि उनके साथ भी ऐसा हो।

प्रश्न 5.
हरिहर काका को जबरन उठा ले जाने वाले कौन थे? उन्होंने उनके साथ कैसा बरताव किया?
उत्तर-
महंत के संकेत पर ठाकुरबारी के साधु-संत हरिहर काका को उठाकर ले गए थे। पहले उन्हें समझा-बुझाकर सादे कागज़ पर अँगूठे का निशान लेने का प्रयास किया गया। सफलता न मिलने पर ज़बरदस्ती निशान लेकर हाथ-पाँव और मुँह बाँधकर उन्हें कमरे में बंद कर दिया गया था।

प्रश्न 6.
हरिहर काका के मामले में गाँववालों की क्या राय थी और उसके क्या कारण थे?
उत्तर-
हरिहर काका के मामले में गाँव के लोगों के दो वर्ग बन गए थे। दोनों ही पक्ष के लोगों की अपनी-अपनी राय थी। आधे लोग परिवार वालों के पक्ष में थे। उनका कहना था कि काका की जमीन पर हक तो उनके परिवार वालों का बनता है। काका को अपनी ज़मीन-जायदाद अपने भाइयों के नाम लिख देनी चाहिए, ऐसा न करना अन्याय होगा। दूसरे पक्ष के लोगों का मानना था कि महंत हरिहर की ज़मीन उनको मोक्ष दिलाने के लिए लेना चाहता है। काका को अपनी ज़मीन ठाकुरजी के नाम लिख देनी चाहिए। इससे उनका नाम या यश भी फैलेगा और उन्हें सीधे बैकुंठ की प्राप्ति होगी। इस प्रकार जितने मुँह थे उतनी बातें होने लगीं। प्रत्येक का अपना मत था। इन सबको एक कारण था कि हरिहर काका विधुर थे और उनकी अपनी कोई संतान न थी जो उनका उत्तराधिकारी बनता। पंद्रह बीघे जमीन के कारण इन सबका लालच स्वाभाविक था।

प्रश्न 7.
कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि लेखक ने यह क्यों कहा, “अज्ञान की स्थिति में ही मनुष्य मृत्यु से डरते हैं। ज्ञान होने के बाद तो आदमी आवश्यकता पड़ने पर मृत्यु को वरण करने के लिए तैयार हो जाता है।”
उत्तर
लेखक ने यह इसलिए कहा है, क्योंकि अज्ञान की ही स्थिति में अर्थात् सांसारिक आसक्ति या नश्वर संसार के सुख की इच्छा के कारण ही मनुष्य मृत्यु से डरते हैं। जब उन्हें यह ज्ञान हो जाता है कि मृत्यु तो अटल सत्य है, क्योंकि जो इस धरती पर जन्म लेता है, उसकी मृत्यु तो निश्चित है तथा जब यह शरीर जीर्ण-शीर्ण हो जाता है, तो इस मृत्यु के माध्यम से प्रभु हमें नया शरीर और नया जीवन देते हैं, तब वे मृत्यु से घबराते नहीं, डरते नहीं, बल्कि मृत्यु आने पर उसका स्वागत करते हैं, अर्थात् उसका वरण करते हैं।

प्रश्न 8.
समाज में रिश्तों की क्या अहमियत है? इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर-
आज समाज में मानवीय मूल्य तथा पारिवारिक मूल्य धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। ज्यादातर व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए रिश्ते-नाते निभाते हैं। अब रिश्तों से ज्यादा रिश्तेदार की कामयाबी और स्वार्थ सिधि की अहमियत है। रिश्ते ही उसे अपने-पराए में अंतर करने की पहचान करवाते हैं। रिश्तों के द्वारा व्यक्ति की समाज में विशेष भूमिका नि रित होती है। रिश्ते ही सुख-दुख में काम आते हैं। यह दुख की बात है कि आज के इस बदलते दौर में रिश्तों पर स्वार्थ की भावना हावी होती जा रही है। रिश्तों में प्यार व बंधुत्व समाप्त हो गया है। इस कहानी में भी यदि पुलिस न पहुँचती तो परिवार वाले काका की हत्या कर देते । इनसानियत तथा रिश्तों का खून तब स्पष्ट नज़र आता है जब महंत तथा परिवार वालों को काका के लिए अफ़सोस नहीं बल्कि उनकी हत्या न कर पाने की अफ़सोस है। ठीक इसी प्रकार आज रिश्तों से ज्यादा धन-दौलत को अहमियत दी जा रही है।

प्रश्न 9.
यदि आपके आसपास हरिहर काका जैसी हालत में कोई हो तो आप उसकी किस प्रकार मदद करेंगे?
उत्तर-
यदि हमारे आसपास हरिहर काका जैसी हालत में कोई हो तो हम उसकी सहायता निम्न प्रकार से करेंगे-

    1. सबसे पहले हम उसके घरवालों को समझाएंगे कि वे अपने पुनीत कर्तव्य के प्रति सचेत रहें।
    2. असहाय व्यक्ति की खान-पान, रहन-सहन वस्त्र आदि की व्यवस्था समयानुसार करें।
 
  1. उसके परिवार के सदस्यों को समझाएँगे कि असहाय व्यक्ति की यदि तुम सहायता करोगे, तो उसका फल तुम्हें अवश्य मिलेगा। अर्थात् उनकी जमीन, संपत्ति स्वतः ही तुम्हें मिल जाएगी।
  2. धूर्त महंत, पुजारी, साधु आदि की रिपोर्ट पुलिस में करेंगे और पुलिस को बताएँगे कि इनकी आँखों पर लालच का चश्मा लगा हुआ है। ये असहाय व्यक्ति की ज़मीन पर बलपूर्वक कब्जा करना चाहते हैं।
  3. भाइयों, महंत, साधु व पुजारियों की खबर मीडिया को देंगे ताकि उनका दुष्प्रचार हो सके। साथ ही सरकारी हस्तक्षेप से उन्हें अपने किए की सजा मिल सके। साथ ही हरिहर काका जैसे व्यक्ति को न्याय मिल सके।

प्रश्न 10.
हरिहर काका के गाँव में यदि मीडिया की पहुँच होती तो उनकी क्या स्थिति होती? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
हरिहर काका का जिस प्रकार से धर्म और घर अर्थात् खून के रिश्तों से विश्वास उठ चुका था, उससे वे मानसिक रूप से बीमार हो गए थे। वे बिलकुल चुप रहते थे। किसी की भी कोई बात का कोई उत्तर नहीं देते थे। वर्तमान दृष्टि से यदि देखा जाए तो आज मीडिया की अहम् भूमिका है। लोगों को सच्चाई से अवगत करना उसका मुख्य कार्य है। जन-संचार के दुवारा घर-घर में बात पहुँचाई जा सकती है। इसके द्वारा लोगों तथा समाज तक बात पहुँचाना आसान है। यदि हरिहर काका की बात मीडिया तक पहुँच जाती तो शायद स्थिति थोड़ी भिन्न होती। वे अपनी बात लोगों के सामने रख पाते और स्वयं पर हुए अत्याचारों के विषय में लोगों को जागृत करते। हरिहर काका को मीडिया ठीक प्रकार से न्याय दिलवाती। उन्हें स्वतंत्र रूप से जीने की व्यवस्था उपलब्ध करवाने में मदद करती। जिस प्रकार के दबाव में वे जी रहे थे वैसी स्थिति मीडिया की सहायता मिलने के बाद नहीं होती।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हरिहर काका की किस स्थिति ने लेखक को चिंतित कर दिया?
उत्तर-
इस बार जब लेखक हरिहर काका से मिलने गया और उनकी तबीयत के बारे में पूछा तो उन्होंने सिर उठाकर एक बार लेखक की ओर देखा और सिर झुका लिया। इसके बाद उन्होंने दुबारा सिर नहीं उठाया। उनकी यंत्रणा और मनोदशा के बारे में आँखों ने बहुत कुछ कह दिया पर काका कुछ बोल न सके। उनकी इस दशा ने लेखक को चिंतित कर दिया।

प्रश्न 2.
लेखक ने कैसे जाना कि हरिहर काका उसे बचपन में बहुत प्यार करते थे?
उत्तर
लेखक को उसकी माँ बताया करती थी कि हरिहर काका बचपन में उसे बहुत प्यार करते थे। वे उसे कंधे पर बिठाकर घुमाया करते थे। एक पिता अपने बेटे को जितना प्यार करता है, हरिहर काका उससे ज्यादा प्यार लेखक को करते थे। वे जितना खुलकर लेखक से बातें करते थे, उतना किसी अन्य से नहीं। हरिहर काका ने ऐसी दोस्ती किसी अन्य के साथ नहीं की। इस तरह उसने जाना कि काका उसे बचपन में बहुत प्यार करते थे।

प्रश्न 3.
यंत्रणाओं के बीच जी रहे हरिहर काका की तुलना लेखक ने किससे की है और क्यों ?
उत्तर-
यंत्रणाओं के बीच जी रहे हरिहर काका की तुलना लेखक ने मँझधार में फँसी उस नावे से की है, जिस पर बैठे सवार चिल्लाकर भी अपनी जान की रक्षा नहीं कर सकते हैं। इसका कारण यह है कि उनकी चिल्लाहट दूर-दूर तक फैले सागर की उठती-गिरती लहरों में खोकर रह जाती है। इस तरह उसकी मदद के लिए कोई नहीं आ पाता और वह जहाज डूबकर रह जाती है।

प्रश्न 4.
लेखक के गाँव का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
लेखक को गाँव आरा कस्बे से चालीस किलोमीटर दूर है, जिसकी आबादी ढाई-तीन हजार से अधिक ही होगी। इस गाँव में तीन प्रमुख स्थान हैं। गाँव के पश्चिम किनारे का बड़ा-सा तालाब, गाँव के मध्य स्थित बरगद का पुराना वृक्ष और गाँव के पूरब में स्थित ठाकुर जी का विशाल मंदिर। इसे गाँव के लोग ठाकुरबारी कहते हैं। आगे चलकर यही ठाकुरबारी गाँव की पहचान बन गई।

प्रश्न 5.
ठाकुरबारी की प्रबंध समिति और इसके कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
ठाकुरबारी के नाम पर अच्छी-खासी जमीन और अत्यंत विशाल मंदिर है। यहाँ धार्मिक लोगों की एक समिति है जो ठाकुरबारी की देख-रेख करती है और इसके संचालन हेतु प्रत्येक तीन साल पर एक पुजारी की नियुक्ति करती है। ठाकुरबारी का मुख्य कार्य है-गाँव के लोगों में ठाकुरबारी के प्रति भक्ति-भावना उत्पन्न करते हुए धर्म-विमुख लोगों को रास्ते पर लाना हैं।

प्रश्न 6.
गाँववालों का ठाकुरबारी के प्रति अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
ठाकुरबारी के साथ अधिकांश लोगों का संबंध मन और तन दोनों स्तर पर बहुत ही घनिष्ठ है। कृषि-कार्य से अपना बचा हुआ समय वे ठाकुरबारी में ही बिताते हैं। ठाकुरबारी में साधु-संतों का प्रवचन सुन और ठाकुर जी का दर्शन कर वे अपना यह जीवन सार्थक मानने लगते हैं। उन्हें यह महसूस होता है कि ठाकुरबारी में प्रवेश करते ही वे पवित्र हो जाते हैं। उनके पिछले सारे पाप अपने आप खत्म हो जाते हैं।

प्रश्न 7.
लेखक ठाकुरबारी से घनिष्ठ संबंध क्यों न बना सका?
उत्तर
लेखक मन बहलाने के लिए कभी-कभी ठाकुरबारी में जाता था लेकिन वहाँ के साधु-संत उसे फूटी आँखों नहीं सुहाते। वे काम-धाम करने में कोई रुचि नहीं लेते हैं। ठाकुर जी को भोग लगाने के नाम पर दोनों जून हलवा-पूड़ी खाते हैं और आराम से पड़े रहते हैं। उन्हें अगर कुछ आता है तो सिर्फ बात बनाना आता है। ठाकुरबारी के साधु-संतों की अकर्मण्यता और उनकी बातूनी आदतों के कारण लेखक ठाकुरबारी से अपना घनिष्ठ संबंध नहीं बना सकता।

प्रश्न 8.
हरिहर काका के परिवार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
हरिहर काका का भरा-पूरा परिवार है। उनके चार भाई हैं। सबकी शादी हो चुकी है। हरिहर काका के अलावा सबके बाल बच्चे हैं। बड़े और छोटे भाई के लड़के काफ़ी सयाने हो गए हैं। दो की शादियाँ हो गई हैं। उनमें से एक पढ़-लिखकर शहर के किसी दफ्तर में क्लर्की करने लगा है, लेकिन हरिहर काका की अपनी देह से कोई औलाद नहीं। औलाद के लिए उन्होंने दो शादियाँ कीं, लेकिन बिना बच्चा जने उनकी दोनों पत्नियाँ स्वर्ग सिधार गईं।

प्रश्न 9.
हरिहर काका के भाइयों द्वारा अपनी पत्नियों को क्या सीख दी गई? उनके व्यवहार में क्या बदलाव आता गया?
उत्तर-
हरिहर काका के तीनों भाइयों ने अपनी पत्नियों को यह सीख दी थी कि हरिहर काका की अच्छी तरह सेवा करें। समय पर उन्हें नाश्ता-खाना दें। किसी बात की तकलीफ़ न होने दें। कुछ दिनों तक वे हरिहर काका की खोज-खबर लेती रहीं, फिर उन्हें कौन पूछने वाला ? ‘ठहर-चौका’ लगाकर पंखा झलते हुए अपने मर्दो को अच्छे-अच्छे व्यंजन खिलातीं। हरिहर काका के आगे तो बची-खुची चीजें आतीं। कभी-कभी तो हरिहर काका को रूखा-सूखा खाकर ही संतोष करना पड़ता।

प्रश्न 10.
अपने भाइयों के परिवार के प्रति हरिहर काका के मोहभंग की शुरुआत कैसे हुई ?
उत्तर-
कभी हरिहर काका की तबीयत खराब हो जाती तो वह मुसीबत में पड़ जाते। इतने बड़े परिवार के रहते हुए भी कोई उन्हें पानी देने वाला तक नहीं था। बच्चे या तो पढ़-लिख रहे होते या धमाचौकड़ी मचाते। भाई खेतों पर गए रहते और औरतें हाल पूछने भी नहीं आतीं। दालान के कमरे में अकेले पड़े हरिहर काका को स्वयं उठकर अपनी ज़रूरतों की पूर्ति करनी पड़ती। ऐसे वक्त अपनी पत्नियों को याद कर-करके हरिहर काका की आँखें भर आतीं। भाइयों के परिवार के प्रति मोहभंग की शुरुआत इन्हीं क्षणों में हुई थी।

प्रश्न 11.
स्वादिष्ट पकवान की आस लगाए बैठे हरिहर काका के सामने जब रूखा-सूखा खाना परोसा गया तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर-
भतीजे के मित्र के आने से घर में स्वादिष्ट पकवान बनाए गए थे। हरिहर को स्वादिष्ट पकवान मिलने की आशा थी पर जब उनके सामने रूखा-सूखा भोजन आया तो उन्होंने प्रतिक्रिया स्वरूप-

  • थाली उठाकर बीच आँगन में फेंक दिया, जिससे सारा चावल बिखर गया।
  • गरजते हुए घर की औरतों को देख लेने की धमकी देने लगे।

प्रश्न 12.
हरिहर काका ने अपना गुस्सा घर की औरतों पर किस तरह उतारा? उनकी इस प्रतिक्रिया को आप कितना उचित समझते हैं?
उत्तर-
हरिहर काका ने अपना गुस्सा घर की औरतों पर उतारते हुए कहा, ‘समझ रही हो कि मुफ्त में खिलाती हो, तो अपने मन से यह बात निकाल देना। मेरे हिस्से के खेत की पैदावार इसी घर में आती है। उसमें तो मैं दो-चार नौकर रख लूं, आराम से खाऊँ, तब भी कमी नहीं होगी। मैं अनाथ और बेसहारा नहीं हूँ। मेरे धन पर तो तुम सब मौज कर रही हो, लेकिन अब मैं तुम सब को बताऊँगा।” उनकी इस प्रतिक्रिया को उचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि इससे बात बनने के बजाय बिगड़ने की संभावना अधिक थी।

प्रश्न 13.
परिवार वालों से हरिहर काका के असंतुष्ट होने की बात महंत को कैसे पता चली? यह सुनकर महंत ने क्या किया?
उत्तर-
हरिहर काका जिस वक्त घर की औरतों को खरी-खोटी सुना रहे थे, उसी वक्त ठाकुरबारी के पुजारी जी उनके दालान पर ही विराजमान थे। वार्षिक हुमाध के लिए वह घी और शकील लेने आए थे। उन्होंने लौटकर महंत जी को विस्तार के साथ सारी बात बताई। उनके कान खड़े हो गए। यह सुनकर हाथ आए अवसर का लाभ उठाने के लिए महंत जी ने टीका तिलक लगाया और कंधे पर रामनामी लिखी चादर डाल ठाकुरबारी से चल पड़े।

प्रश्न 14.
हरिहर काका का दिल जीतने के लिए ठाकुरबारी के महंत जी ने क्या-क्या उपाय अपनाया?
उत्तर-
हरिहर काका का दिल जीतने के लिए महंत जी ने स्वादिष्ट भोजन खिलाने और धर्म-चर्चा करने जैसे उपाय अपनाए। उन्होंने रात में हरिहर काका को भोग लगाने के लिए जो मिष्टान्न और व्यंजन दिए, वैसे उन्होंने कभी नहीं खाए थे। घी टपकते मालपुए, रस बुनिया, लड्डू, छेने की तरकारी, दही, खीर…। इन्हें पुजारी जी ने स्वयं अपने हाथों से खाना परोसा था। पास में बैठे महंत जी धर्म-चर्चा से मन में शांति पहुँचा रहे थे।

प्रश्न 15.
हरिहर काका द्वारा ठाकुरबारी में रात बिताने पर उनके भाइयों पर क्या बीती?
उत्तर-
हरिहर काका को लाने के लिए उनके भाई ठाकुरबारी पहुँचे पर काका का मन अशांत होने की बात कहकर महंत जी ने उन्हें वापस न जाने दिया। इससे काका के तीनों भाई रात भर सो नहीं सके। भावी आशंका उनके मन को मथती रही। पंद्रह बीघे खेत ! इस गाँव की उपजाऊ जमीन ! दो लाख से अधिक की संपत्ति ! अगर हाथ से निकल गई तो फिर वह कहीं के न रहेंगे।

प्रश्न 16.
ठाकुरबारी से लौटे हरिहर काका सुखद आश्चर्य में क्यों पड़ गए?
उत्तर-
ठाकुरबारी से लौटे हरिहर काका सुखद आश्चर्य में इसलिए पड़ गए, क्योंकि परिवार के जिन सदस्यों को उनसे बात करने की भी फुरसत न थी, वही सब अब सिर आँखों पर उठाने को तैयार थे। उनके भाइयों की पत्नियों ने उनके पैर पर माथा रख गलती के लिए क्षमा-याचना की। फिर उनकी आवभगत और जो खातिर शुरू हुई, वैसी खातिर किसी के यहाँ मेहमान आने पर भी नहीं होती होगी। उनकी रुचि और इच्छा के मुताबिक दोनों जून खाना-नाश्ता तैयार मिलने लगा तथा घर की महिलाएँ उनकी सेवा में तल्लीन रहती थीं।

प्रश्न 17.
हरिहर काका द्वारा ठाकुरबारी के नाम जमीन लिखने में हो रही देरी के बारे में महंत जी ने क्या अनुमान लगाया? इसके लिए उन्हें क्या विकल्प नजर आया?
उत्तर-
हरिहर काका द्वारा ठाकुरबारी के नाम जमीन लिखने में जो देरी हो रही थी, उसके बारे में महंत जी ने यह अनुमान लगाया कि हरिहर धर्म-संकट में पड़ गया है। एक ओर वह चाहता है कि ठाकुर जी को लिख दें, किंतु दूसरी ओर भाई के परिवार के माया-मोह में बँध जाता है। इस स्थिति में हरिहर का अपहरण कर जबरदस्ती उससे लिखवाने के अतिरिक्त दूसरा कोई विकल्प नहीं। बाद में हरिहर स्वयं राजी हो जाएगा।

प्रश्न 18.
महंत जी ने हरिहर काका का अपहरण किस तरह करवाया?
उत्तर-
हरिहर काका से उनकी जमीन का वसीयत करवाने के लिए महंत जी ने उनके अपहरण का रास्ता अपनाया। इसके लिए आधी रात के आसपास ठाकुरबारी के साधु-संत और उनके पक्षधर भाला, आँडासा और बंदूक से लैस एकाएक हरिहर काका के दालान पर आ धमके। हरिहर काका के भाई इस अप्रत्याशित हमले के लिए तैयार नहीं थे। इससे पहले कि वे जवाबी कार्रवाई करें और गुहार लगाकर अपने लोगों को जुटाएँ, तब तक ठाकुरबारी के लोग उनको पीठ पर लादकर चंपत हो गए।

प्रश्न 19.
हरिहर काका को छुड़ाने में असफल रहने पर उनके भाई क्या सोचकर पुलिस के पास गए?
उत्तर-
हरिहर काका के भाई उन्हें ठाकुरबारी से छुड़ा पाने में असफल रहे तो वे यह सोचकर पुलिस के पास गए कि जब वे पुलिस के साथ ठाकुरबारी पहुँचेंगे तो ठाकुरबारी के भीतर से हमले होंगे और साधु-संत रँगे हाथों पकड़ लिए जाएँगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। ठाकुरबारी के अंदर से एक रोड़ा भी बाहर नहीं आया। शायद पुलिस को आते हुए उन्होंने देख लिया था।

प्रश्न 20.
पुलिस द्वारा ठाकुरबारी के कमरे से मुक्त कराए गए काका ने वहाँ के महंत, पुजारी और साधुओं की किस असलियत से परिचित कराया?
उत्तर-
पुलिस ने जब हरिहर काका को ठाकुरबारी के एक कमरे से निकालकर बंधन मुक्त किया और उनके मुँह में ढूंसा कपड़ा निकाला तो हरिहर काका ने ठाकुरबारी के महंत, पुजारी और साधुओं की काली करतूतों का परदाफ़ाश करना शुरू किया कि वह साधु नहीं, डाकू, हत्यारे और कसाई हैं, वे उन्हें इस रूप में कमरे में बंद कर गुप्त दरवाजे से भाग गए, इसके अलावा उन्होंने कई सादे और लिखे हुए कागजों पर जबरन उनके अँगूठे के निशान लिए ताकि जमीन-जायदाद पर कब्ज़ा कर सकें।

प्रश्न 21.
ठाकुरबारी से छुड़ाकर लाए गए हरिहर काका की सुरक्षा के लिए उनके भाइयों ने क्या-क्या प्रबंध किए?
उत्तर-
ठाकुरबारी के महंत हरिहर काका को बलपूर्वक अपने साथ न ले जा सकें, इसे रोकने और उनकी सुरक्षा के लिए उनके भाइयों द्वारा अपने रिश्ते-नाते में जितने ‘सूरमा’ थे, सबको बुला लिया गया था। हथियार जुटा लिए गए थे। चौबीसों घंटे पहरे दिए जाने लगे थे। अगर किसी आवश्यक कार्यवश काका घर से गाँव में निकलते तो चार-पाँच की संख्या में हथियारों से लैस लोग उनके आगे-पीछे चलते रहते और रात में आधे लोग सोते तो आधे लोग जागकर पहरा देते रहते।

प्रश्न 22.
ठाकुरबारी से छुड़ाकर लाए गए हरिहर काका अपने घर के किस वातावरण से अनजान थे?
उत्तर-
ठाकुरबारी से छुड़ाकर लाने के बाद अपने ही घर में हरिहर काका के बारे में नया वातावरण तैयार हो रहा था। उन्हें ठाकुरबारी से जिस दिन वापस लाया गया था, उसी दिन से उनके भाई और रिश्ते-नाते के लोग समझाने लगे थे कि विधिवत अपनी जायदाद वे अपने भतीजों के नाम लिख दें। वह जब तक ऐसा नहीं करेंगे तब तक महंत की गिद्ध-दृष्टि उनके ऊपर लगी रहेगी।

प्रश्न 23.
परिवार वालों द्वारा जमीन उनके नाम लिखने की बात पर हरिहर काका की क्या प्रतिक्रिया होती?
उत्तर-
महंत द्वारा पुनः काका का अपहरण करके जमीन-जायदाद ठाकुरबारी के नाम कर देने के भय से मुक्ति पाने के लिए हरिहर काका के परिवार वाले बार-बार उनसे जमीन-जायदाद परिवार वालों के नाम लिखने के लिए कहते इस बात पर हरिहर काका साफ़ नकार जाते। वे कहते, “मेरे बाद तो मेरी जायदाद इस परिवार को स्वतः मिल जाएगी इसीलिए लिखने का कोई अर्थ नहीं। महंत ने अँगूठे के जो जबरन निशान लिए हैं, उसके खिलाफ़ मुकदमा हमने किया ही है।”

प्रश्न 24.
हरिहर काका के भाइयों और ठाकुरवारी के साधु-संतों के व्यवहार में कोई अंतर नहीं था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
जब हरिहर काका ने अपने भाइयों के कहने पर अपनी जमीन-जायदाद उनके नाम नहीं किया तो उनके भाइयों ने उनके साथ बहुत जुल्म-अत्याचार किया और जबरन अनेक कागजों पर उनके अँगूठे के निशान लिए, इसके अलावा उन्हें खूब मारा-पीटा तथा उनकी कोई भी दुर्गति बाकी नहीं छोड़ी, अगर और थोड़ी देर तक पुलिस नहीं आती तो वह उन्हें जान से मार देते। इससे स्पष्ट है कि हरिहर काका के भाइयों और ठाकुरबारी के साधु-संतों के व्यवहार में कोई अंतर नहीं था।

प्रश्न 25.
हरिहर काका की मृत्यु के बाद उनकी जमीन-जायदाद पर कब्जा करने के लिए उनके भाइयों ने क्या योजना बना रखी थी?
उत्तर-
हरिहर काका की मृत्यु के बाद उनकी जमीन पर कब्ज़ा करने के लिए उनके भाई अभी से इलाके के मशहूर डाकू बुटन सिंह से बातचीत पक्की कर ली। हरिहर के पंद्रह बीघे खेत में से पाँच बीघे बुटन लेगा और दखल करा देगा। इससे पहले भी इस तरह के दो-तीन मामले बुटन ने निपटाए हैं। इस योजना द्वारा वे काका की जमीन को कब्ज़ाना चाहते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘महंतों और मठाधीशों का लोभ बढ़ाने में लोगों की गहन धार्मिक आस्था का भी हाथ होता है।’ ‘हरिहर काका’ पाठ के आलोक में अपने विचार लिखिए। (मूल्यपरक प्रश्न)
अथवा
लोगों की गहन धार्मिक आस्था के कारण महंत और मठाधीशों में लालच एवं शोषण की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। इससे आप कितना सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए। (मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर-
लोगों की धार्मिक आस्था ज्यों-ज्यों बढ़ती है, त्यों-त्यों वे अपने हर अच्छे कार्य का श्रेय धर्म और देवालयों में विराजमान अपने आराध्य को देने लगते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि ऐसा उनके परिश्रम के कारण हुआ है। अपनी खुशी की अभिव्यक्ति एवं अपने आराध्य के प्रति वे कृतज्ञता प्रकट करने के लिए धन, रुपये, जेवर आदि अर्पित करते हैं। उनकी इस भावना का अनुचित लाभ वहाँ उपस्थित महंत और मठाधीश उठाते हैं और धर्म का भय तथा स्वर्गलोक का मोह दिखाकर लोगों को उकसाते हैं कि वे अधिकाधिक चढ़ावा चढ़ाएँ जो प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ही रूपों में उनकी स्वार्थपूर्ति, लोभ, लिप्सा एवं उदरपूर्ति का साधन बनता है। ठाकुरबारी में ज्यों-ज्यों चढ़ावा आता है त्यों-त्यों वहाँ के महंत, पुजारी एवं अन्य साधुओं का लोभ इस तरह बढ़ जाता है कि वे साधुता ही नहीं मानवता को छोड़कर हैवानियत पर उतर आते हैं। वे हरिहर काका की जमीन हड़पने के लिए मानवता को कलंकित करने से भी बाज नहीं आते हैं। इस तरह निस्संदेह मनुष्य की गहन धार्मिक भावना महंतों और मठाधीशों में लोभ, लालच और स्वार्थपरता पैदा करती है।

प्रश्न 2.
‘हरिहर काका’ नामक पाठ में लेखक ने ठाकुरबारी की स्थापना एवं उसके बढ़ते कलेवर के बारे में क्या बताया है?
उत्तर
‘हरिहर काका’ नामक पाठ में लेखक ने ठाकुरबारी की स्थापना एवं उसके विशाल होते कलेवर के बारे में बताया है कि पहले जब गाँव पूरी तरह बसा नहीं था तभी कहीं से एक संत आकर इस स्थान पर झोंपड़ी बना रहने लगे थे। वह सुबहशाम यहाँ ठाकुर जी की पूजा करते थे। लोगों से माँगकर खा लेते थे और पूजा-पाठ की भावना जाग्रत करते थे। बाद में लोगों ने चंदा करके यहाँ ठाकुर जी का एक छोटा-सा मंदिर बनवा दिया। फिर जैसे-जैसे गाँव बसता गया और आबादी बढ़ती गई, मंदिर के कलेवर में भी विस्तार होता गया। लोग ठाकुर जी को मनौती मनाते कि पुत्र हो, मुकदमे में विजय हो, लड़की की शादी अच्छे घर में तय हो, लड़के को नौकरी मिल जाए। फिर इसमें जिनको सफलता मिलती, वह खुशी में ठाकुर जी पर रुपये, जेवर, अनाज चढ़ाते। अधिक खुशी होती तो ठाकुर जी के नाम अपने खेत का एक छोटा-सा टुकड़ा लिख देते। यह परंपरा आज तक जारी है। इससे ठाकुरबारी का विकास हज़ार गुना अधिक हो गया।

प्रश्न 3.
‘हरिहर काका के गाँव के लोग ठाकुरबारी और ठाकुर जी के प्रति अगाध भक्ति-भावना रखते हैं।’ हरिहर काका पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
यूँ तो ठाकुरबारी में सदा ही भजन-कीर्तन होता रहता है, पर बाढ़ या सूखा जैसी आपदा की स्थिति में वहाँ तंबू लग जाता है और अखंडकीर्तन शुरू हो जाता है। इसके अलावा गाँव में पर्व-त्योहार की शुरुआत ठाकुरबारी से ही होती है। होली में सबसे पहले गुलाल ठाकुरजी को ही चढ़ाया जाता है। दीवाली का पहला दीप ठाकुरबारी में ही जलता है। जन्म, शादी और जनेऊ के अवसर पर अन्न-वस्त्र की पहली भेट ठाकुर जी के नाम की जाती है। ठाकुरबारी के ब्राह्मण-साधु व्रत-कथाओं के दिन घर-घर घूमकर कथावाचन करते हैं। लोगों के खलिहान में जब फ़सल की मड़ाई होकर अनाज की ढेरी’ तैयार हो जाती है, तब ठाकुर जी के नाम का एक भाग’ निकालकर ही लोग अनाज अपने घर ले जाते हैं।

प्रश्न 4.
महंत जी ने हरिहर काका की ज़मीन हड़पने के लिए धर्म, मोह और माया का सहारा किस तरह लिया? उनका ऐसा करना आप कितना उचित मानते हैं? (मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर-
खलिहान की ओर जाते हुए गुस्साए हरिहर काका को महंत जी अपने साथ ठाकुरबारी ले आए और उनकी जमीन पाने के लिए धर्म, मोह और माया का सहारा लेते हुए काका से समझाते हुए कहने लगे, “हरिहर ! यहाँ कोई किसी का नहीं है। सब माया का बंधन है। तू तो धार्मिक प्रवृत्ति का आदमी है। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि तुम इस बंधन में कैसे फैंस गए? ईश्वर में भक्ति लगाओ। उसके सिवाय कोई तुम्हारा अपना नहीं। पत्नी, बेटे, भाई-बंधु सब स्वार्थ के साथी हैं। जिस दिन उन्हें लगेगा कि तुमसे उनका स्वार्थ सधने वाला नहीं, उस दिन वे तुम्हें पूछेगे तक नहीं। इसीलिए ज्ञानी, संत, महात्मा ईश्वर के सिवाय किसी और में प्रेम नहीं लगाते।’
महंत द्वारा हरिहर काका के साथ जैसा व्यवहार किया गया उसे मैं तनिक भी उचित नहीं मानता, क्योंकि इससे महंत काका की जमीन हड़पना चाहते थे। इसके अलावा वे काका के मन में उनके परिवार और भाइयों के प्रति दुर्भावना भी भर रहे थे।

प्रश्न 5.
लोभी महंत एक ओर हरिहर काका को यश और बैकुंठ का लोभ दिखा रहा था तो दूसरी ओर पूर्व जन्म के उदाहरण द्वारा भय भी दिखा रहा था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
हरिहर काका को समझाते हुए लोभी महंत कह रहा था कि तुम अपने हिस्से की जमीन ठाकुरबारी के नाम लिखकर स्वर्ग प्राप्त करोगे। तुम्हारी कीर्ति तीनों लोकों में फैल जाएगी और सूरज-चाँद के रहने तक तुम्हारा नाम अमर हो जाएगा। इससे साधु-संत भी तुम्हारे पाँव पखारेंगे। सभी तुम्हारा यशोगान करेंगे और तुम्हारा जीवन सार्थक हो जाएगा। ठाकुर जी के साथ ही तुम्हारी भी आरती गाई जाएगी। महंत उनसे कह रहा था कि पता नहीं पूर्वजन्म में तुमने कौन-सा पाप किया था कि तुम्हारी दोनों पत्नियाँ अकाल मृत्यु को प्राप्त हुईं। तुमने औलाद का मुँह तक नहीं देखा। अपना यह जन्म तुम अकारथ न जाने दो। ईश्वर को एक भर दोगे तो दस भर पाओगे। मैं अपने लिए तो तुमसे माँग नहीं रहा हूँ। तुम्हारा यह लोक और परलोक दोनों बन जाएँ, इसकी राह तुम्हें बता रहा हूँ।

प्रश्न 6.
महंत की बातें सुनकर हरिहर काका किस दुविधा में फँस गए? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
महंत की बातें सुनकर हरिहर काका अपनी जमीन किसे दें-भाइयों को या ठाकुर जी के नाम लिखें; इस दुविधा में फैंस गए। वे सोचने लगे कि पंद्रह बीघे खेत की फ़सल भाइयों के परिवार को देते हैं, तब तो कोई पूछता नहीं, अगर कुछ न दें तब क्या हालत होगी? उनके जीवन में तो यह स्थिति है, मरने के बाद कौन उन्हें याद करेगा? सीधे-सीधे उनके खेत हड़प जाएँगे। ठाकुर जी के नाम लिख देंगे तो पुश्तों तक लोग उन्हें याद करेंगे। अब तक के जीवन में तो ईश्वर के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया। अंतिम समय तो यह बड़ा पुण्य कमा लें, लेकिन यह सोचते हुए भी हरिहर काका का मुँह खुल नहीं रहा था। भाई का परिवार तो अपना ही होता है। उनको न देकर ठाकुरबारी में दे देना उनके साथ धोखा और विश्वासघात होगा।

प्रश्न 7.
ठाकुरबारी के साधु-संतों के व्यवहार से काका को किस वास्तविकता का ज्ञान हुआ? साधु-संतों का ऐसा व्यवहार कितना उचित था? (मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर-
ठाकुरबारी के महंत और अन्य साधु-संत जब काका का अपहरण कर ठाकुरबारी ले आए और कुछ सादे तथा कुछ लिखे कागजों पर जबरन काका के अँगूठे का निशान लिया तब काका को संतों के उस व्यवहार का पता चला जो मुँह में राम बगल में छुरी वाली कहावत चरितार्थ करता है। उन्होंने आदर का पात्र बने महंत के बारे में सपने में भी नहीं सोचा था कि वे इस रूप में भी आएँगे। जिस महंत को वह आदरणीय एवं श्रद्धेय समझते थे, वह महंत अब उन्हें घृणित, दुराचारी और पापी नज़र आने लगा था। अब वह उस महंत की सूरत भी देखना नहीं चाहते थे। अब अपने भाइयों का परिवार मत की तुलना में उन्हें ज्यादा पवित्र, नेक और अच्छा लगने लगा। साधु-संत, जो मोह माया से दूर एवं परोपकारी प्रवृत्ति के समझे जाते हैं उनके द्वारा ऐसा व्यवहार हर दृष्टि से अनुचित था।

प्रश्न 8.
आप हरिहर काका के भाई की जगह होते तो क्या करते? (मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर-
यदि मैं हरिहर काका के भाई की जगह पर होता तो हरिहर काका से पूर्णतया सहानुभूति रखता। मैं मन में यह सदा बिठाए रखता कि हरिहर काका की पत्नी इस दुनिया में नहीं हैं और न उनकी अपनी कोई संतान । परिवार का सदस्य और सहोदर भाई होने के कारण मैं उनके मन में यह भावना आने ही न देता कि वे भरे-पूरे परिवार में अकेले होकर रह गए हैं। मैं उनके खाने और उनकी हर सुख-सुविधा का पूरा ध्यान रखता। ऐसा मैं उनकी ज़मीन-जायदाद के लोभ में नहीं करता, बल्कि पारिवारिक सदस्य सहोदर भाई होने के अलावा मानवता के आधार पर भी करता। मैं अपने परिवार के अन्य सदस्यों से काका के साथ अच्छा व्यवहार करने के लिए कहता ताकि उन्हें ठाकुरबारी जैसी जगह जाने और महंत जैसे ढोंगियों के बहकावे में आने की स्थिति ही न आती। मैं उन्हें खाना-खिलाकर स्वयं खाता तथा उनके साथ कोई भेदभाव न होने देता।

पूर्व वर्षों के प्रश्नोत्तर

2016
निबंधात्मक प्रश्न

Question 1.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 1
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 1a

Question 2.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 2
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 2a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 2b

2015
निबंधात्मक प्रश्न

Question 3.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 3
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 3a

Question 4.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 4
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 4a

2014
निबंधात्मक प्रश्न

Question 5.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 5
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 5a

2013
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 6.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 6
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 6a

Question 7.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 7
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 7a

Question 8.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 8
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 8a

निबंधात्मक प्रश्न

Question 9.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 9
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 9a

Question 10.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 10
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 10a

निबंधात्मक प्रश्न

Question 11.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 11
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 11a

2012
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 12.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 12
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 12a

Question 13.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 13
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 13a

Question 14.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 14
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 14a

Question 15.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 15
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 15a

Question 16.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 16
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 16a

Question 17.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 17
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 17a

Question 18.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 18
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 18a

Question 19.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 19
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 19a

निबंधात्मक प्रश्न

Question 20.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 20
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 20a

Question 21.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 21
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 21a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 21b

Question 22.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 22
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 22a

Question 23.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 23
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 23a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 24

Question 24.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 57b
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 24a

2011
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 25.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 25
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 25a

Question 26.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 26
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 26a

Question 27.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 27
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 27a

Question 28.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 28
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 28a

Question 29.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 29
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 29a

Question 30.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 30
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 30a

Question 31.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 31
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 31a

2010
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 32.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 32
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 32a

निबंधात्मक प्रश्न

Question 33.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 33
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 33a

Question 34.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 34
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 34a

2009
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 35.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 35
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 35a

Question 36.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 36
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 36a

Question 37.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 37
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 37a

Question 38.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 38
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 38a

Question 39.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 39
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 39a

Question 40.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 40
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 40a

Question 41.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 41
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 41a

Question 42.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 42
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 42a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 42b

Question 43.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 43
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 43a

Question 44.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 44
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 44a

Question 45.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 45
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 45a

Question 46.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 46
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 46a

Question 47.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 47
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 47a

Question 48.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 48
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 48a

Question 49.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 49
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 49a

निबंधात्मक प्रश्न

Question 50.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 50
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 50a

Question 51.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 51
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 51a

Question 52.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 52
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 52a

Question 53.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 53
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 53a

Question 54.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 54
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 54a

Question 55.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 55
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 55a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 55b

Question 56.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 56
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 56a

Question 57.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 57
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - हरिहर काका 57a

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