NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 11 Diary Ka Ek Panna

कक्षा 10 हिंदी पाठ – 11 डायरी का एक पन्ना (Diary Ka Ek Panna)

Diary Ka Ek Panna (डायरी का एक पन्ना) – CBSE Class 10 Hindi Lesson summary with detailed explanation of the lesson ‘Diary Ka Ek Panna’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary and all the exercises, Question and Answers given here

लेखक परिचय –

लेखक – सीताराम सेकसरिया
जन्म – 1892 (राजस्थान -नवलगढ़ )
मृत्यु – 1982

पाठ प्रवेश

अंग्रेजों से भारत को आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी ने सत्यग्रह आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन ने जनता में आज़ादी की उम्मीद जगाई। देश भर से ऐसे बहुत से लोग सामने आए जो इस महासंग्राम में अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार थे। 26 जनवरी 1930 को गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। उसके बाद हर वर्ष इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। आजादी के ढ़ाई साल बाद ,1950 को यही दिन हमारे अपने सम्विधान  के लागू होने का दिन भी बना।

प्रस्तुत पाठ के लेखक सीताराम सेकसरिया आज़ादी की इच्छा रखने वाले उन्ही महान इंसानों में से एक थे। वह दिन -प्रतिदिन जो भी देखते थे ,सुनते थे और महसूस करते थे ,उसे अपनी एक निजी डायरी में लिखते रहते थे। यह कई वर्षों तक इसी तरह चलता रहा। इस पाठ में उनकी डायरी का 26 जनवरी 1931 का लेखाजोखा है जो उन्होंने खुद अपनी डायरी में लिखा था।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस और स्वयं लेखक सहित कलकत्ता (कोलकता ) के लोगों ने देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस किस जोश के साथ मनाया, अंग्रेज प्रशासकों ने इसे उनका विरोध मानते हुए उन पर और विशेषकर महिला कार्यकर्ताओं पर कैसे -कैसे जुल्म ढाए, इन सब बातों का वर्णन इस पाठ में किया गया है।यह पाठ हमारे क्रांतिकारियों की कुर्बानियों को तो याद दिलाता ही है साथ ही साथ यह भी सिखाता है कि यदि एक समाज या सभी लोग एक साथ सच्चे मन से कोई कार्य करने की ठान लें तो ऐसा कोई भी काम नहीं है जो वो नहीं कर सकते।

पाठ व्याख्या

26 जनवरी : आज का दिन तो अमर दिन है। आज के ही दिन सारे हिदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। और इस वर्ष भी उसकी पुनरावृत्ति थी जिसके लिए काफ़ी तैयारियाँ पहले से की गयी थीं। गत वर्ष अपना हिस्सा बहुत साधारण था। इस वर्ष जितना अपने दे सकते थे ,दिया था। केवल प्रचार में दो हज़ार रूपया खर्च किया गया था। सारे काम का भार अपने समझते थे अपने ऊपर है ,और इसी तरह जो कार्यकर्ता थे उनके घर जा -जाकर समझाया था।

अमर दिन – जिसे हमेशा याद रखा जायेगा
पुनरावृत्ति  – फिर से आना
अपना/अपने – हम /हमारे /मेरा (लेखक द्वारा अपने लिए प्रयोग किये गए शब्द )
कार्यकर्ता – स्वयंसेवक
(यहाँ लेखक 26 जनवरी 1931 के लिए की गई तैयारियों का वर्णन कर रहा है )
26 जनवरी : लेखक कहते हैं कि 26 जनवरी 1931 का दिन हमेशा याद रखा जाने वाला दिन है। 26 जनवरी 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और 26 जनवरी 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था ,जिसके लिए बहुत सी तैयारियाँ पहले से ही की जा चुकी थी। पिछले साल बंगाल या कलकत्ता की तैयारियाँ काफ़ी साधारण थी। इस साल वहाँ के निवासी जितना दे सकते थे उतना दिया था। सिर्फ़ इस दिन को मनाने के प्रचार में ही दो हज़ार रूपया खर्च हुए थे। बंगाल या कलकत्ता के निवासी सारे कामों के महत्त्व को समझते थे कि सारा काम उन्हें स्वयं ही करना है और यही बातें उन्होंने सारे स्वयंसेवियों को उनके घर – घर जा -जाकर बताई थी।

बड़े बाज़ार के प्रायः मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और कई मकान तो ऐसे सज़ाएँ गए थे कि ऐसा मालूम होता था कि मानो स्वतंत्रता मिल गई हो। कलकत्ते के प्रत्येक भाग में ही झंडे लगाए गए थे। जिस रास्ते से मनुष्य जाते थे ,उसी रास्ते में उत्साह और नवीनता मालूम होती थी। लोगों का कहना था कि ऐसी सजावट पहले नहीं हुई।

सारजेंट – सेना का एक पद 

लारियाँ – गाड़ियाँ
(यहाँ लेखक 26 जनवरी को होने वाले समारोह को रोकने के लिए पुलिस की तैयारियों का वर्ण कर रहा  है )
पुलिस अपनी पूरी ताकत के साथ पूरे शहर में पहरे के लिए घूम -घूम कर प्रदर्शन कर रही थी। मोटर गाड़ियों में गोरखे और सेना के अध्यक्ष हर मोड़ पर मौजूद थे। न जाने कितनी गाड़ियाँ शहर भर में घुमाई जा रही थी। घुड़सवारों का भी प्रबंध किया गया था। ट्रैफ़िक पुलिस कही पर भी नहीं थी क्योंकि सभी पुलिस कर्मचारियों को शहर में पहरे के लिए घूमने का काम दिया गया था। बड़े – बड़े पार्कों और मैदानों को सवेरे से ही पुलिस ने घेर रखा था क्योंकि वही पर सभाएँ और समारोह होना था।
मोनुमेंट के निचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी उस जगह को तो भोर में छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में घेर लिया था ,पर तब भी कई जगह तो भोर में ही झंडा फहराया गया। श्रद्धानन्द पार्क में बंगाल प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू ने झंडा गाड़ा तो पुलिस ने उनको पकड़ लिया तथा और लोगों को मारा या हटा दिया। तारा सुंदरी पार्क में बड़ा बाज़ार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद्र सिंह झंडा फहराने गए पर वे भीतर न जा सके। वहाँ पर काफी मारपीट हुई  और दो – चार आदमियों के सर फट गए। गुजरती सेविका संघ की ओर से जुलूस निकला जिसमे बहुत सी लड़कियां थी उनको गिरफ्तार कर लिया।
मोनुमेंट – स्मारक
भोर – सुबह
जुलूस – जनसमूह या भीड़
(यहाँ वर्णन है कि किस तरह से पुलिस लोगो को रोक रही थी )

स्मारक के नीचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था ,इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे। श्रद्धानन्द पार्क में बंगाल प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू ने झंडा गाड़ा तो पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और अपने साथ ले गई ,इसके साथ ही वहां इकठ्ठे लोगों को मारा और वहां से हटा दिया। तारा सुंदरी पार्क में बड़ा बाजार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद्र सिंह झंडा फहराने गए परन्तु वे पार्क के अंदर  ही ना जा सके। वहां पर भी काफी मारपीट हुई और दो – चार आदमियों के सर फट गए। गुजरती सेविका संघ की ओर से लोगों का एक समूह निकला ,जिसमें बहुत सी लड़कियाँ थी ,उनको गिरफ़्तार कर लिया गया।

11 बजे मारवाड़ी बालिका विद्यालय की लड़कियों ने अपने विद्यालय में झण्डोत्सव मनाया। जानकीदेवी ,मदालसा (मदालसा बजाज -नारायण ) आदि भी आ गई थी। लड़कियों को, उत्सव का क्या मतलब है ,समझाया गया। एक बार मोटर में बैठ कर सब तरफ घूमकर देखा तो बहुत अच्छा मालूम हो रहा था। जगह -जगह फ़ोटो उतर रहे थे। अपने भी फ़ोटो का काफी प्रबंध किया था। दो -तीन बजे कई आदमियों को पकड़ लिया गया। जिसमें मुख्य पूर्णोदास और पुरुषोत्तम राय थे।
झण्डोत्सव – झंडा फहराने का समारोह
11 बजे मारवाड़ी बालिका विद्यालय की छात्राओं  ने अपने विद्यालय में झंडा फहराने का समारोह मनाया। वहाँ पर जानकी देवी ,मदालसा बजाज – नारायण आदि स्वयंसेवी भी आ गए थे। उन्होंने लड़कियों को समझाया कि उत्सव का क्या मतलब होता है । लेखक और उनके साथियों ने एक बार मोटर में बैठ कर सब तरफ घूमकर देखा तो बहुत अच्छा महसूस हो रहा था। जगह – जगह पर लोग फोटो खींच रहे थे। लेखक और उनके साथियों ने भी फोटो खिचवानें का पूरा प्रबंध किया हुआ था। दो – तीन बाजे पुलिस कई आदमियों को पकड़ कर ले गई।जिनमें मुख्य कार्यकर्ता पूर्णोदास और पुरुषोत्तम राय थे।
सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था पर वह प्रबंध कर चुका था। स्त्री समाज अपनी तैयारी में लगा था। जगह – जगह से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकलने की तथा ठीक स्थान पर पहुँचने की कोशिश कर रही थी। मोनुमेंट के पास जैसे प्रबंध भोर में था वैसे करीब एक बजे नहीं रहा। इससे लोगों को आशा होने लगी कि शायद पुलिस अपना रंग ना दिखलावे पर वह कब रुकने वाली थी। तीन बजे से ही मैदान में हजारों आदमियों की भीड़ होने लगी और लोग टोलियाँ बना -बनाकर मैदान में घूमने लगे। आज जो बात थी वह निराली थी।
टोलियाँ – समूह
निराली – अनोखी
सुभाष बाबू के जुलूस की पूरी ज़िम्मेवारी पूर्णोदास पर थी (उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया था )परन्तु वे पहले से ही अपना काम कर चुके थे। स्त्रियाँ अपनी तैयारियों में लगी हुई थी। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचाने की कोशिश में लगी हुई थी। स्मारक के पास जैसा पुलिस का प्रबंध सुबह लग रहा था वैसा करीब एक बजे तक नहीं रहा। इससे लोगो को लग रहा था कि पुलिस अब ज्यादा कुछ नहीं करेगी परन्तु पुलिस पीछे कब हटने वाली थी। तीन बजे से ही मैदान में हज़ारों आदमियों की भीड़ इकठ्ठी होने लगी थी और लोग समूहों में इधर -उधर घूमने लगे थे। आज की बात ही अनोखी थी।

जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी। पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकल चूका था कि अमुक – अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती। जो लोग काम करने वाले थे उन सबको इंस्पेक्टरों के द्वारा नोटिस और सुचना दे दी गई थी कि आप यदि सभा में भाग लेंगें तो दोषी समझे जाएंगे। इधर कौंसिल की ओर से नोटिस निकल गया था कि मोनुमेंट के निचे ठीक चार बजकर चैबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सर्वसाधारण की उपस्थिति होनी चाहिए। खुला चेलेंज देकर ऐसी सभा पहले कभी नहीं हुई थी।

कौंसिल – परिषद
(सभा को रोकने के लिए किये गए प्रयासों का वर्णन)
जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी और ये सभा तो कह सकते हैं की सबके लिए ओपन लड़ाई थी। पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाल दिया था कि अमुक -अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कही भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं। जो लोग काम करने वाले थे उन सबको इंस्पेक्टरों के द्वारा नोटिस और सूचना दे दी गई थी अगर उन्होंने किसी भी तरह से सभा में भाग लिया तो वे दोषी समझे जायेंगे।इधर परिषद् की ओर से नोटिस निकाला गया था कि ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर स्मारक के निचे झंडा फहराया जायेगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सभी लोगो को उपस्थित रहने के लिए कहा गया था। प्रशासन को इस तरह से खुली चुनौती दे कर कभी पहले इस तरह की कोई सभा नहीं हुई थी।
ठीक चार बजकर दस मिनट पर सुभाष बाबू जुलूस ले कर आए। उनको चौरंगी पर ही रोका गया ,पर भीड़ की अधिकता के कारण पुलिस जुलूस को नहीं रोक सकी। मैदान के मोड़ पर पहुँचते ही पुलिस ने लाठियाँ चलना शुरू कर दी ,बहुत लोग घायल हुए ,सुभाष बाबू पर भी लाठियाँ पड़ी। सुभाष बाबू बहुत ज़ोर से वन्दे -मातरम् बोल रहे थे। ज्योतिर्मय गांगुली ने सुभाष बाबू से कहा ,आप इधर आ जाइए। पर सुभाष बाबू ने कहा आगे बढ़ना है।
चौरंगी – कलकत्ता शहर में एक जगह का नाम
ठीक चार बजकर दस मिनट पर सुभाष बाबू अपना जुलूस ले कर मैदान की ओर निकले। उनको चौरंगी पर ही रोक दिया गया। परन्तु वहां पर लोगो की भीड़ इतनी अधिक थी कि पुलिस उनको वहां पर न रोक सकी। जब वे लोग मैदान के मोड़ पर पहुंचे तो पुलिस ने उनको रोकने के लिए लाठियां चलाना शुरू कर दिया। बहुत से लोग घायल हो गए। सुभाष बाबू पर भी लाठियाँ पड़ी। परन्तु फिर भी सुभाष बाबू बहुत ज़ोर से वन्दे -मातरम बोलते जा रहे थे। ज्योतिर्मय गांगुली ने सुभाष बाबू से कहा कि वे इधर आ जाए। परन्तु सुभाष बाबू ने कहा कि उन्हें आगे बढ़ना है।
यह सब तो अपने सुनी हुई लिख रहे हैं पर सुभाष बाबू का और अपना विशेष फासला नहीं था। सुभाष बाबू बड़े जोर से वन्दे -मातरम बोलते थे,यह अपनी आँख से देखा। पुलिस भयानक रूप से लाठियाँ चला रही थी। क्षितिज चटर्जी का फटा हुआ सिर देखकर तथा उसका बहता हुआ खून देखकर आँख मिंच जाती थी इधर यह हालत हो रही थी कि उधर स्त्रियाँ मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़ झंडा फहरा रही थी और घोषणा पढ़ रही थी। स्त्रियाँ बहुत बड़ी संख्या में पहुँच गई थी। प्रायः सबके पास झंडा था। जो वालेंटियर गए थे वे अपने स्थान से लाठियाँ पड़ने पर भी हटते नहीं थे।
वालेंटियर – स्वयंसेवी
लेखक कहते हैं कि बहुत सी बाते तो वे सुनी-सुनाई लिख रहे हैं परन्तु सुभाष बाबू और लेखक के बीच कोई ज्यादा फासला नहीं था। सुभाष बाबू बहुत जोर -जोर से वन्दे – मातरम बोल रहे थे, ये लेखक ने खुद अपनी आँखों से देखा था। पुलिस बहुत भयानक रूप से लाठियाँ चला रही थी। क्षितिज चटर्जी का सिर पुलिस की लाठियों के कारण फट गया था और उनका बहता हुआ खून देख कर आँखे अपने आप बंद हो जाती थी। इस तरफ इस तरह का माहौल था और दूसरी तरफ स्मारक के निचे सीढ़ियों पर स्त्रियां झंडा फहरा रही थी और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। स्त्रियाँ बहुत अधिक संख्या में आई हुई थी। लगभग सभी के पास झंडा था। जो स्वयंसेवी आए थे वे अपनी जगह से पुलिस की लाठियाँ पड़ने पर भी नहीं हट रहे थे।

सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठा कर लालबाज़ार लॉकअप में भेज दिया गया। कुछ देर बाद ही स्त्रियां जुलूस बना कर वहाँ से चलीं। साथ ही बहुत बड़ी भीड़ इकठ्ठी हो गई। बीच में पुलिस कुछ ठंडी पड़ी थी ,उसने फिर डंडे चलने शुरू कर दिए। अबकी बार भीड़ ज्यादा होने के कारण ज्यादा आदमी घायल हुए। धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस टूट गया और करीब 50 -60 स्त्रियाँ वहीँ मोड़ पर बैठ गई। पुलिस ने उन्हें  पकड़कर लालबाजार भेज दिया। स्त्रियों का एक भाग आगे बड़ा ,जिनका नेतृत्व विमल प्रतिभा कर रही थी। उनको बहू बाजार के मोड़ पर रोका गया और वे वहीँ मोड़ पर बैठ गई। आसपास बहुत बड़ी भीड़ इकठ्ठी हो गई। जिस पर पुलिस बीच – बीच में लाठी चलती थी।

(यहाँ पर लेखक स्त्रियों की बहादुरी का वर्णन कर रहा है)
सुभाष बाबू को भी पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठा कर लालबाज़ार लॉकअप में भेज दिया गया। कुछ देर बाद ही स्त्रियाँ वहाँ से जन समूह बना कर आगे बढ़ने लगी। उनके साथ बहुत बड़ी भीड़ भी इकठ्ठी हो गई। कुछ समय के लिए लगा की पुलिस ठंडी पड़ गई है अब लाठी नहीं बरसाएगी परन्तु पुलिस बीच-बीच में लाठियाँ चलाना  शुरू कर देती थी। इस बार भीड़ ज्यादा थी तो आदमी भी ज्यादा जख्मी हुए। धर्मतल्ले के मोड़ पर आते-आते जुलूस टूट गया और लगभग 50 से 60 स्त्रियाँ वही मोड़ पर बैठ गई। उनके आसपास बहुत बड़ी भीड़ इकठ्ठी हो गई थी। जिन पर पुलिस बीच -बीच में लाठियाँ चलाया करती थी।
इस प्रकार करीब पौने घंटे के बाद पुलिस की लारी आई और उनको लालबाज़ार ले जाया गया। और भी कई आदमियों को पकड़ा गया। वृजलाल गोयनका जो कई दिन से अपने साथ काम कर रहा था और दमदम जेल में भी अपने साथ था ,पकड़ा गया। पहले तो वह डंडा लेकर वन्दे -मातरम बोलता हुआ मोनुमेंट की और इतनी जोर से दौड़ा कि अपने आप ही गिर पड़ा और उसे एक अंग्रेजी घुड़सवार ने लाठी मारी फिर पकड़ कर कुछ दूर लेजाने के बाद छोड़ दिया। इस पर वह स्त्रियों के जुलूस में शामिल हो गया और वह पर भी उसको छोड़ दिया। तब वह दो सौ आदमियों का जुलूस बनाकर लालबाज़ार गया और वहां पर गिरफ्तार हो गया।

इस बार पुलिस की लारी करीब पौने घंटे बाद आई और उन स्त्रियों को लालबाज़ार ले जाया गया और भी कई आदमियों को गिरफ्तार किया गया। वृजलाल गोयनका जो कई दिनों से लेखक के साथ काम कर रहा था और दमदम जेल में भी लेखक के साथ ही था, वह भी पकड़ा गया। पहले तो वह खुद ही झंडा लेकर वन्दे-मातरम बोलता हुआ स्मारक की ओर इतनी तेज़ी के साथ दौड़ा की खुद ही गिर गया और इस पर एक अंग्रेज घुड़सवार ने उसे लाठी  मारी और फिर पकड़ लिया, कुछ दूर तक ले जा कर फिर उसे छोड़ दिया। इसके बाद वह स्त्रियों के जुलूस में शामिल हो गया ,वहाँ पर भी पकड़ा गया परन्तु वहाँ भी उसे छोड़ दिया गया। इस पर भी वो नहीं माना और दो सौ लोगो के जुलूस के साथ लालबाज़ार पहुंच गया और वह गिरफ्तार हो गया।

मदालसा भी पकड़ी गई थी। उससे मालूम हुआ कि उसको थाने में भी मारा था। सब मिलाकर 105 स्त्रियाँ पकड़ी गयी थी। बाद में रात को नौ बजे सबको छोड़ दिया गया। कलकत्ता में आज तक इतनी स्त्रियाँ एक साथ गिरफ्तार नहीं की गई थी। करीब आठ बजे खादी भण्डार आए तो कांग्रेस ऑफिस से फ़ोन आया कि यहाँ बहुत आदमी चोट खा कर आये हैं और कई की हालत संगीन है उनके लिए गाड़ी चाहिए। जानकीदेवी के साथ वहां गए ,बहुत लोगो को चोट लगी हुई थी। डॉक्टर दासगुप्ता उनकी देखरेख और फ़ोटो उतरवा रहे थे। उस समय तक 67 वहाँ आ चुके थे। बाद में तो 103 तक आ पहुंचे।
संगीन – बहुत गंभीर

मदालसा जो जानकीदेवी और जमना लाल बजाज की पुत्री थी ,उसे भी गिरफ़्तार किया गया था। उससे बाद में मालूम हुआ की उसको थाने में भी मारा गया था। सब मिलाकर 105 स्त्रियों को गिरफ्तार किया गया था। बाद में रात नौ बजे सबको छोड़ दिया गया था। कलकत्ता में इस से पहले इतनी स्त्रियों को एक साथ कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया था। करीब आठ बजे खादी भंडार आए तो वहाँ कांग्रेस ऑफिस से फ़ोन आया की वहाँ पर बहुत सारे  आदमी चोट खा कर आये हैं। और कई की हालत तो बहुत गंभीर बता रहे थे। उनके लिए गाड़ी मँगवा रहे थे।लेखक और अन्य स्वयंसेवी जानकी देवी के साथ वहाँ गए तो देखा बहुत लोगों को चोट लगी हुई थी। डॉक्टर दासगुप्ता उनकी देखरेख कर रहे थे और उनके फोटो खिंचवा रहे थे। उस समय तो 67 आदमी वहाँ थे परन्तु बाद में 103 तक पहुँच गए थे।

अस्पताल गए, लोगो को देखने से मालूम हुआ कि 160 आदमी तो अस्पतालों में पहुंचे और जो लोग घरों में चले गए ,वो अलग हैं। इस प्रकार दो सौ घायल जरूर हुए है। पकडे गए आदमियों की संख्या का पता नहीं चला। पर लाल बाजार के लॉकअप में स्त्रियों की संख्या 105 थी। आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है। वह आज बहुत अंश में धूल गया और लोग सोचने लग गए कि यहाँ भी बहुत सा काम हो सकता है।

जब लेखक और अन्य स्वयंसेवी अस्पताल गए, तो लोगो को देखने से मालूम हुआ कि 160 आदमी तो अस्पतालों में पहुंचे थे और जो घरों में चले गए उनकी गिनती अलग है। इस तरह लेखक और अन्य स्वयंसेवी कह सकते हैं कि दो सौ आदमी जरूर घायल हुए। पकड़े गए आदमियों की संख्या का पता नहीं चल सका। पर इतना जरूर पता चला की लालबाज़ार के लॉकअप में स्त्रियों की संख्या 105 थी। इतना सबकुछ पहले कभी नहीं हुआ था ,लोगों का ऐसा प्रचंड रूप पहले किसी ने नहीं देखा था। बंगाल या कलकत्ता के नाम पर कलंक था की यहाँ स्वतंत्रता का कोई काम नहीं हो रहा है। आज ये कलंक काफी हद तक धूल गया और लोग ये सोचने लगे कि यहाँ पर भी स्वतंत्रता के विषय में काम किया जा सकता है।

पाठ सार

प्रस्तुत पाठ के लेखक सीताराम सेकसरिया आज़ादी की इच्छा रखने वाले महान इंसानों में से एक थे। वह दिन -प्रतिदिन जो भी देखते थे ,सुनते थे और महसूस करते थे ,उसे अपनी एक निजी डायरी में लिखते रहते थे।इस पाठ में उनकी डायरी का 26 जनवरी 1931 का लेखाजोखा है जो उन्होंने खुद अपनी डायरी में लिखा था।
लेखक कहते हैं कि 26 जनवरी 1931 का दिन हमेशा याद रखा जाने वाला दिन है। 26 जनवरी 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और 26 जनवरी 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था,जिसके लिए बहुत सी तैयारियाँ पहले से ही की जा चुकी थी। सिर्फ़ इस दिन को मानाने के प्रचार में ही दो हज़ार रूपये  खर्च हुए थे। सभी मकानों पर भारत का राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे उन्हें स्वतंत्रता मिल गई हो। कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे।पुलिस अपनी पूरी ताकत के साथ पुरे शहर में पहरे लिए घूम -घूम कर प्रदर्शन कर रही थी।न जाने कितनी गाड़ियाँ शहर भर में घुमाई जा रही थी। घुड़सवारों का भी प्रबंध किया गया था।
स्मारक के निचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी, उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था ,इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे।  तारा सुंदरी पार्क में बड़ा बाजार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद्र सिंह झंडा फहराने गए परन्तु वे पार्क के अंदर  ही ना जा सके। वहां पर भी काफी मारपीट हुई और दो – चार आदमियों के सर फट गए।मारवाड़ी बालिका विद्यालय की लड़कियों ने अपने विद्यालय में झंडा फहराने का समारोह मनाया। वहाँ पर जानकी देवी ,मदालसा बजाज – नारायण आदि स्वयंसेवी भी आ गए थे। उन्होंने लड़कियों को  उत्सव का  मतलब  समझाया।दो – तीन बाजे पुलिस कई आदमियों को पकड़ कर ले गई।जिनमें मुख्य कार्यकर्ता पूर्णोदास और पुरुषोत्तम राय थे। सुभाष बाबू के जुलूस की पूरी ज़िम्मेवारी पूर्णोदास पर थी (उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया था )परन्तु वे पहले से ही अपना काम कर चुके थे। स्त्रियाँ अपनी तैयारियों में लगी हुई थी। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचने की कोशिश में लगी हुई थी।
जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज 26 जनवरी 1931 तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी और ये सभा तो कह सकते हैं की सबके लिए ओपन लड़ाई थी। एक ओर पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाल दिया था कि अमुक -अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कही भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं।  अगर  किसी भी तरह से किसी ने सभा में भाग लिया तो वे दोषी समझे जायेंगे।इधर परिषद् की ओर से नोटिस निकाला  गया था कि ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर स्मारक के निचे झंडा फहराया जायेगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सभी लोगो को उपस्थित रहने के लिए कहा गया था।ठीक चार बजकर दस मिनट पर सुभाष बाबू अपना जुलूस ले कर मैदान की और निकले।जब वे लोग मैदान के मोड़ पर पहुंचे तो पुलिस ने उनको रोकने के लिए लाठियां चलाना शुरू कर दिया। बहुत से लोग घायल हो गए। सुभाष बाबू पर भी लाठियाँ पड़ी। परन्तु फिर भी सुभाष बाबू बहुत ज़ोर से वन्दे -मातरम बोलते जा रहे थे।इस तरफ इस तरह का माहौल था और दूसरी तरफ स्मारक के निचे सीढ़ियों पर स्त्रियां झंडा फहरा रही थी और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। स्त्रियाँ बहुत अधिक संख्या में आई हुई थी।सुभाष बाबू को भी पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठा कर लालबाज़ार लॉकअप में भेज दिया गया। कुछ देर बाद ही स्त्रियाँ वहाँ से जन समूह बना कर आगे बढ़ने लगी। उनके साथ बहुत बड़ी भीड़ भी इकठ्ठी हो गई।पुलिस बीच -बीच में लाठियाँ चलना शुरू कर देती थी। इस बार भीड़ ज्यादा थी तो आदमी भी ज्यादा जख्मी हुए। धर्मतल्ले के मोड़ पर आते – आते जुलूस टूट गया और लगभग 50 से 60 स्त्रियाँ वहीँ मोड़ पर बैठ गई।
उन स्त्रियों को लालबाज़ार ले जाया गया। और भी कई आदमियों को गिरफ्तार किया गया।मदालसा जो जानकीदेवी और जमना लाल बजाज की पुत्री थी ,उसे भी गिरफ़्तार किया गया था। उससे बाद में मालूम हुआ की उसको थाने में भी मारा गया था। सब मिलकर 105 स्त्रियों को गिरफ्तार किया गया था। बाद में रात नौ बजे सबको छोड़ दिया गया था। कलकत्ता में इस से पहले इतनी स्त्रियों को एक साथ कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया था।डॉक्टर दासगुप्ता उनकी देखरेख कर रहे थे और उनके फोटो खिंचवा रहे थे। उस समय तो 67 आदमी वहाँ थे परन्तु बाद में 103 तक पहुँच गए थे।
इतना सबकुछ पहले कभी नहीं हुआ था ,लोगों का ऐसा प्रचंड रूप पहले किसी ने नहीं देखा था। बंगाल या कलकत्ता के नाम पर कलंक था की यहाँ स्वतंत्रता का कोई काम नहीं हो रहा है। आज ये कलंका काफी हद तक धूल गया और लोग ये सोचने लगे कि यहाँ पर भी स्वतंत्रता के विषय में काम किया जा सकता है।

प्रश्न अभ्यास -:

(क)निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25 -30 शब्दों में ) लिखिए –
प्रश्न 1 -: 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या -क्या तैयारियाँ की गईं ?
उत्तर -: 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए काफ़ी तैयारियाँ की गयी थीं। केवल प्रचार पर ही दो हज़ार रूपए खर्च किये गए थे। कार्यकर्ताओं को उनका कार्य घर – घर जा कर समझाया गया था। कलकत्ता शहर में जगह – जगह झंडे लगाए गए थे। कई स्थानों पर जुलूस निकाले जा रहे थे और झंडा फहराया जा रहा था। टोलियाँ बना कर लोगो की भीड़ उस स्मारक के नीचे इकठ्ठी होने लगी थी ,जहाँ सुभाष बाबू झंडा फहराने वाले थे और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ने वाले थे।

प्रश्न 2 -: ‘आज जो बात थी ,वह निराली थी ‘- किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -: आज का दिन निराला इसलिए था क्योंकि आज के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और इस साल भी फिर से वही दोहराया जाना था। सभी मकानों पर हमारा राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे हमें स्वतंत्रता मिल गई हो। स्मारक के निचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी, उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था ,इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे। स्त्रियाँ अपनी तैयारियों में लगी हुई थी। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने  और सही जगह पर पहुँचने की कोशिश में लगी हुई थी।

प्रश्न 3 -: पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर है ?
उत्तर -: पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाला  था कि अमुक – अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती। यदि कोई सभा में जाता है तो उसे दोषी समझा जायेगा। कौंसिल की ओर से नोटिस निकला था कि स्मारक के निचे ठीक चार बजकर चैबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सर्वसाधारण की उपस्थिति होनी चाहिए। इस तरह दोनों नोटिस एक दूसरे के विरुद्ध थे।

प्रश्न 4 -: धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया ?
उत्तर -: जब सुभाष बाबू को गिरफ्तार करके पुलिस ले गई तो स्त्रियाँ जुलूस बना कर जेल की और चल पड़ी परन्तु पुलिस की लाठियों ने कुछ को घायल कर दिया ,कुछ को पुलिस गिरफ्तार करके ले गई और बची हुई स्त्रियाँ पहले तो वहीँ धर्मतल्ले के मोड़ पर ही बैठ गई। बाद में उन्हें पुलिस पकड़ कर ले गई। इस कारण धर्मतल्ले के मोड़ पर आ कर जुलूस टूट गया।

प्रश्न 5 -: डॉ. दास गुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख रेख तो कर ही रहे थे ,उनके फोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फोटो खिचवाने की क्या वजह हो सकती थी ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -: डॉ. दास गुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख रेख तो कर ही रहे थे ,उनके फोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फोटो खिचवाने की दो वजह हो सकती थी। एक तो यह कि अंग्रेजों के अत्याचारों का खुलासा किया जा सकता था कि किस तरह उन्होंने औरतो तक को नहीं छोड़ा। दूसरी वजह यह हो सकती है कि बंगाल या कलकत्ता पर जो कलंक था कि वहाँ स्वतंत्रता के लिए कोई काम नहीं हो रहा है, इस कलंक को कुछ हद तक धोया जा सकता था और साबित किया जा सकता था कि वहाँ भी बहुत काम हो रहा है।

(ख)निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50 -60 शब्दों में ) दीजिए –

प्रश्न 1 -: सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी ?

उत्तर -: सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की बहुत महत्पूर्ण भूमिका थी। स्त्रियों ने बहुत तैयारियां की थी। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचाने की कोशिश में लगी हुई थी। स्मारक के निचे सीढ़ियों पर स्त्रियां झंडा फहरा रही थी और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। स्त्रियाँ बहुत अधिक संख्या में आई हुई थी।सुभाष बाबू की गिरफ़्तारी के कुछ देर बाद ही स्त्रियाँ वहाँ से जन समूह बना कर आगे बढ़ने लगी।। धर्मतल्ले के मोड़ पर आते – आते जुलूस टूट गया और लगभग 50 से 60 स्त्रियाँ वही मोड़ पर बैठ गई। उन स्त्रियों को लालबाज़ार ले जाया गया। मदालसा जो जानकीदेवी और जमना लाल बजाज की पुत्री थी ,उसे भी गिरफ़्तार किया गया था। उससे बाद में मालूम हुआ की उसको थाने में भी मारा गया था। सब मिलकर 105 स्त्रियों को गिरफ्तार किया गया था।

प्रश्न 2 -: जुलूस के लालबाज़ार आने पर लोगों की क्या दशा हुई ?

उत्तर -: जब सुभाष बाबू को गिरफ्तार करके पुलिस ले गई तो स्त्रियाँ जुलूस बना कर जेल की और चल पड़ी। उनके साथ बहुत बड़ी भीड़ भी इकठ्ठी हो गई। परन्तु पुलिस की लाठियों ने कुछ को घायल कर दिया, कुछ को पुलिस गिरफ्तार करके ले गई और बची हुई स्त्रियाँ वहीँ धर्मतल्ले के मोड़ पर बैठ गई।भीड़ ज्यादा थी तो आदमी भी ज्यादा जख्मी हुए। कुछ के सर फ़टे थे और खून बह रहा था।

प्रश्न 3 -: ‘जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर कौन ज़ोर किस के द्वारा लागू किये गए कानून को भंग करने की बात कही गई है ? क्या कानून भंग करना उचित था ? पाठ के सन्दर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर -: यहाँ पर अंग्रेज प्रशासन द्वारा  सभा ना करने के कानून को भंग करने की बात कही है। ये कानून वास्तव में भारत वासियों की स्वतंत्रता को कुचलने वाला कानून था अतः इस कानून का उलंघन करना सही था। उस समय हर देशवासी स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार था और अंग्रेजी हुकूमत ने सभा करने ,झंडा फहराने और जुलूस में शामिल होने को गैरकानूनी घोषित कर दिया था। अंग्रेजी प्रशासन नहीं चाहता था कि लोगो में आज़ादी की भावना आये परन्तु अब हर देशवासी स्वतन्त्र होना चाहता था। उस समय कानून का उलंघन करना सही था।

प्रश्न 4 -:बहुत से लोग घायल हुए,बहुतों को लॉकअप में रखा गया ,बहुत सी स्त्रियाँ जेल गई ,फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार से यह सब अपूर्व क्यों है ?अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर -: सुभाष बाबू के नेतृत्व में कलकत्ता में लोगों ने स्वतंत्रता दिवस मानाने की ऐसी तैयारियाँ की थी जैसी आज से पहले कभी नहीं हुई थी। पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाला था कि कोई भी सभा में नहीं जायेगा यदि कोई जाता है तो उसे दोषी समझा जाएगा। परन्तु लोगो ने इसकी कोई परवाह नहीं की और अपनी तैयारियों में लागे रहे। पुलिस की लाठियों से कई लोग घायल हुए ,कई लोगों को गिरफ्तार किया गया। स्त्रियों पर भी बहुत अत्याचार हुए ,इतिहास में कभी इतनी स्त्रियों को एक साथ गिरफ्तार नहीं किया गया था। इन्हीं बातों के कारण इस दिन को अपूर्व बताया गया।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए -:

(1) आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है। वह आज बहुत अंश में धूल गया।
उत्तर -: कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे। जिस भी रास्तों पर मनुष्यों का आना – जाना था, वहीं जोश ,ख़ुशी और नया पन महसूस होता था।बड़े – बड़े पार्कों और मैदानों को सवेरे से ही पुलिस ने घेर रखा था क्योंकि वही पर सभाएँ और समारोह होना था। स्मारक के निचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था ,इतना सब कुछ होने के बाबजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे। जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी और ये सभा तो कह सकते हैं की सबके लिए ओपन लड़ाई थी।। पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकल दिया था कि अमुक -अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कही भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं।लोगो की भीड़ इतनी अधिक थी कि पुलिस ने उनको रोकने के लिए लाठियां चलाना शुरू कर दिया।  आदमियों के सर फट गए। पुलिस कई आदमियों को पकड़ कर ले गई।अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचाने की कोशिश में लगी हुई थी।इतना सब कुछ होने पर भी लोगो के सहस और जोश में कमी नहीं आई।

(2) खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।

उत्तर -: जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी और ये सभा तो कह सकते हैं की सबके लिए ओपन लड़ाई थी। पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकल दिया था कि अमुक -अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कही भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं। जो लोग भी काम करने वाले थे उन सबको इंस्पेक्टरों के द्वारा नोटिस और सुचना दे दी गई थी अगर उन्होंने किसी भी तरह से सभा में भाग लिया तो वे दोषी समझे जायेंगे।इधर परिषद् की ओर से नोटिस निकल गया था कि ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर स्मारक के निचे झंडा फहराया जायेगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सभी लोगो को उपस्थित रहने के लिए कहा गया था। प्रशासन को इस तरह से खुली चुनौती दे कर कभी पहले इस तरह की कोई सभा नहीं हुई थी।

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 11 डायरी का एक पन्ना

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1.
कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन क्यों महत्त्वपूर्ण था?
उत्तर-
26 जनवरी, 1931 का दिन कलकत्तावासियों के लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि सन् 1930 में गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। इस वर्ष उसकी पुनरावृत्ति थी, जिसके लिए काफ़ी तैयारियाँ पहले से ही की गई थीं। इसके लिए लोगों ने अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराया था और उन्हें इस तरह से सजाया गया था कि ऐसा मालूम होता था, मानों स्वतंत्रता मिल गई हो।

प्रश्न 2.
सुभाष बाबू के जुलूस का भार किस पर था?
उत्तर-
सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था जिन्होंने इस जुलूस का पूरा प्रबंध किया था उन्होंने जगह-जगह फोटो का | भी प्रबंध किया था और बाद में पुलिस द्वारा उन्हें पकड़ लिया गया था।

प्रश्न 3.
विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर-
विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया तथा अन्य लोगों को मारा और वहाँ से हटा दिया।

प्रश्न 4.
लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर किस बात का संकेत देना चाहते थे?
उत्तर-
लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर झंडा फहराकर इस बात का संकेत देना चाहते थे कि वे भी अपने देश । की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय झंडे का पूर्ण सम्मान करते हैं।

प्रश्न 5.
पुलिस ने बड़े-बड़े पार्को तथा मैदानों को क्यों घेर लिया था?
उत्तर-
पुलिस ने बड़े-बड़े पार्को तथा मैदानों को इसलिए घेर लिया था ताकि लोग वहाँ एकत्रित न हो सकें। पुलिस नहीं। चाहती थी कि लोग एकत्र होकर पार्को तथा मैदानों में सभा करें तथा राष्ट्रीय ध्वज फहराएँ। पुलिस पूरी ताकत से गश्त लगा रही थी। प्रत्येक मोड़ पर गोरखे तथा सार्जेंट मोटर-गाड़ियों में तैनात थे। घुड़सवार पुलिस का भी प्रबंध था।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की गईं?
उत्तर-
26 जनवरी, 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए निम्नलिखित तैयारियाँ की गईं :

  1. कलकत्ता के लोगों ने अपने-अपने घरों को खूब सजाया।
  2. अधिकांश मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया।
  3. कुछ मकानों और बाज़ारों को ऐसे सजाया गया कि मानो स्वतंत्रता ही प्राप्त हो गई हो।
  4. कलकत्ते के प्रत्येक भाग में झंडे लहराए गए।
  5. लोगों ने ऐसी सजावटे पहले नहीं देखी थी।

प्रश्न 2.
‘आज जो बात थी वह निराली थी’-किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
26 जनवरी का दिन अपने-आप में निराला था। कलकत्तावासी पूरे उत्साह पूरी नवीनता के साथ इस दिन को यादगार दिन बनाने की तैयारी में जुटे थे। अंग्रेज़ी सरकार के कड़े सुरक्षा प्रबंधों के बाद भी हज़ारों की संख्या में लोग लाठी खाकर भी जुलूस में भाग ले रहे थे। सरकार द्वारा सभा भंग करने की कोशिशों के बावजूद भी बड़ी संख्या में आम जनता और कार्यकर्ता संगठित होकर मोनुमेंट के पास एकत्रित हो रहे थे। स्त्रियों ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस दिन अंग्रेज़ी कानून को खुली चुनौती देकर कलकत्तावासियों ने देश-प्रेम और एकता का अपूर्व प्रदर्शन किया।

प्रश्न 3.
पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर था?
उत्तर-
दोनों में यह अंतर था कि पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकल चुका था कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती और जो लोग सभा में भाग लेंगे, वे दोषी समझे जाएँगे; जबकि कौंसिल के नोटिस में था कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडी फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। इसमें सर्व-साधारण की उपस्थिति होनी चाहिए।

प्रश्न 4.
धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?
उत्तर-
सुभाष बाबू के नेतृत्व में जुलूस पूरे जोश के साथ आगे बढ़ रहा था। थोड़ा आगे बढ़ने पर पुलिस ने सुभाष बाबू को पकड़ लिया और गाड़ी में बिठाकर लाल बाज़ार के लॉकअप में भेज दिया। जुलूस में भाग लेनेवाले आंदोलनकारियों पर पुलिस ने लाठियाँ बरसानी शुरू कर दी थीं। बहुत से लोग बुरी तरह घायल हो चुके थे। पुलिस की बर्बरता के कारण जुलूस बिखर गया था। मोड़ पर पचास साठ स्त्रियाँ धरना देकर बैठ गईं थीं। पुलिस ने उन्हें पकड़कर लालबाज़ार भेज दिया था।

प्रश्न 5.
डॉ० दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख तो कर ही रहे थे, उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के
फ़ोटो खींचने की क्या वजह हो सकती थी ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
डॉ० दास गुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख के साथ उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे, ताकि पूरा देश अंग्रेज़ प्रशासकों के जुल्मों से अवगत होकर उनका विरोध करके उन्हें देश से बाहर निकालने के लिए तैयार हो जाए।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?
उत्तर-
सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री-समाज ने एक अहम भूमिका निभायी थी। स्त्री समाज ने जगह-जगह से जुलूस निकालने की तथा ठीक स्थान पर पहुँचने की तैयारी और कोशिश की थी। स्त्रियों ने मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फहरा करे घोषणा-पत्र पढ़ा था तथा पुलिस के बहुत-से अत्याचारों का सामना किया था। विमल प्रतिभा, जानकी देवी और मदालसा आदि ने जुलूस का सफल नेतृत्व किया था।

प्रश्न 2.
जुलूस के लालबजार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?
उत्तर-
जुलूस के लालबाज़ार आने पर पुलिस ने एकत्रित भीड़ पर लाठियों से प्रहार किया। सुभाष बाबू को पकड़कर लॉकअप में भेज दिया गया। स्त्रियों का नेतृत्व करनेवाली मदालसा भी पकड़ी गई थी। उसको थाने में मारा भी गया । इस जुलूस में लगभग 200 व्यक्ति घायल हुए जिसमें से कुछ की हालत गंभीर थी।

प्रश्न 3.
जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर कौन से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है? क्या कानून भंग करना उचित था? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर-
जब पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकला कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती और सभा में भाग लेने वालों को दोषी समझा जाएगा, तो कौंसिल की तरफ़ से भी नोटिस निकाला गया कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। इस तरह से पुलिस कमिश्नर द्वारा सभा स्थगित करने जैसे लागू कानून को कौंसिल की तरफ़ से भंग किया गया था; जोकि उचित था, क्योंकि इसके बिना आज़ादी की आग प्रज्वलित न होती।

प्रश्न 4.
बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत-सी स्त्रियाँ जेल गईं, फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
हमारे विचार में 26 जनवरी 1931 का दिन अद्भुत था क्योंकि इस दिन कलकतावासियों को अपनी देशभक्ति, एकता व साहस को सिद्ध करने का अवसर मिला था। उन्होंने देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया। अंग्रेज़ प्रशासकों ने इसे उनका अपराध मानते हुए उनपर और विशेष रूप से महिला कार्यकर्ताओं पर अनेक अत्याचार किए लेकिन पुलिस द्वारा किया गया क्रूरतापूर्ण व्यवहार भी उनके इरादों को बदल नहीं सका और न ही उनके जोश कम कर पाया । एकजुट होकर राष्ट्रीय झंडा फहराने और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा करने का जो संकल्प उन सबने मिलकर लिया था उसे उन्होंने यातनाएँ सहकर भी उस दिन पूरा किया।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया।
उत्तर-
इसका आशय है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए इतना बड़ा आंदोलन बंगाल या कलकत्ता में नहीं हुआ था। यहाँ के विषय में लोगों के मन में जोश नहीं था, यह बात कलकत्ता के माथे पर कलंक थी। लेकिन इसे 26 जनवरी, 1931 को हुई स्वतंत्रता संग्राम की पुनरावृत्ति ने धो दिया। इस संग्राम में लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था और लोग जेल भी गए। लोगों के अंदर देशभक्ति की भावना का संचार हो चुका था।

प्रश्न 2.
खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति का यह आशय है कि जब 26 जनवरी सन् 1931 के दिन कलकत्ता में स्थान-स्थान पर झंडोत्सव मनाए गए तो ब्रिटिश सरकार को यह बात मान्य नहीं थी इसलिए उन्होंने भारतीयों पर अनेक जुल्म किए। कलकत्ता के इतिहास में यह पहली बार हुआ था कि पुलिस कमिश्नर दूद्वारा निकाले गए नोटिस के बावजूद भी कौंसिल द्वारा उन्हें खुली चुनौती दी गई कि न केवल एकजुट होकर झंडा फहराया जाएगा अपितु स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा भी पढ़ी जाएगी। पुलिस द्वारा यह नोटिस भी जारी किया गया कि इन सभाओं में भाग लेनेवालों को दोषी समझा जाएगा तब भी बड़ी संख्या में न केवल पुरुषों ने बल्कि स्त्रियों ने भी जुलूस में भाग लिया और सरकार द्वारा बनाए गए कानून को भी भंग किया। आजादी के इतिहास में ऐसी खुली चुनौतियाँ देकर पहले कभी कोई सभा आयोजित नहीं हुई थी।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
रचना की दृष्टि से वाक्य तीन प्रकार के होते हैं-
सरल वाक्य – सरल वाक्य में कर्ता, कर्म, पूरक, क्रिया और क्रिया विशेषण घटकों या इनमें से कुछ घटकों का योग होता है। स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होने वाला उपवाक्य ही सरल वाक्य है।
उदाहरण- लोग टोलियाँ बनाकर मैदान में घूमने लगे।

संयुक्त वाक्य – जिस वाक्य में दो या दो से अधिक स्वतंत्र या मुख्य उपवाक्य समानाधिकरण योजक से जुड़े हों, वह संयुक्त वाक्य कहलाता है। योजक शब्द-और, परंतु, इसलिए आदि।
उदाहरण- मोनुमेंट के नीचे झंडा फहराया जाएगा और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी।

मिश्र वाक्य – वह वाक्य जिसमें एक प्रधान उपवाक्य हो और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हों, मिश्र वाक्य कहलाता है।
उदाहरण- जब अविनाश बाबू ने झंडा गाड़ा तब पुलिस ने उनको पकड़ लिया।

निम्नलिखित वाक्यों को सरल वाक्यों में बदलिए-
I. (क) दो सौ आदमियों का जुलूस लाल बाजार गया और वहाँ पर गिरफ्तार हो गया।
(ख) मैदान में हजारों आदमियों की भीड़ होने लगी और लोग टोलियाँ बना-बनाकर मैदान में घूमने लगे।
(ग) सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठाकर लाल बाजार लॉकअप में भेज दिया गया।
II. बड़े भाई साहब’ पाठ में से भी दो-दो सरल, संयुक्त और मिश्र वाक्य छाँटकर लिखिए।
उत्तर-
I. (क) दो सौ आदमियों का जुलूस लाल बाज़ार जाकर गिरफ्तार हो गया।
(ख) मैदान में हजारों आदमियों की भीड़ टोलियाँ बना-बनाकर घूमने लगी।
(ग) सुभाष बाबू को पकड़ कर गाड़ी में बिठाकर लालबाज़ार लॉकअप में भेज दिया गया।

II. सरल वाक्य- (क) वह स्वभाव से बड़े अध्ययनशील थे।
(ख) उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह बड़ी बात थी।

संयुक्त वाक्य- (क) मैं पास हो गया और दरजे में प्रथम आया।
(ख) भाई साहब ने मानो तलवार खींच ली और मुझ पर टूट पड़े।

मिश्र वाक्य- (क) मेरी शालीनता इसी में थी कि उनके हुक्म को कानून समझें।
(ख) मैं इरादा करता कि आगे से खूब जी लगाकर पढ़ेगा।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और समझिए कि जाना, रहना और चुकना क्रियाओं का प्रयोग किस प्रकार किया गया है।
(क) 1. कई मकान सजाए गए थे।
2. कलकत्ते के प्रत्येक भाग में झंडे लगाए गए थे।
(ख) 1. बड़े बाज़ार के प्रायः मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था।
2. कितनी ही लारियाँ शहर में घुमाई जा रही थीं।
3. पुलिस भी अपनी पूरी ताकत से शहर में गश्त देकर प्रदर्शन कर रही थीं।
(ग) 1. सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था, वह प्रबंध कर चुका था।
2. पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकल चुका था।
उत्तर-
उपरिलिखित वाक्यों को पढ़ने और समझने से पता चलता है कि इनमें ‘जाना’, ‘रहना’ और ‘चुकना’ क्रियाओं का प्रयोग मुख्य क्रिया के रूप में न करके रंजक क्रिया के रूप में किया गया है। इससे इनकी मुख्य क्रियाएँ संयुक्त क्रिया बन गई हैं।

प्रश्न 3.
नीचे दिए गए शब्दों की संरचना पर ध्यान दीजिए-
विद्या + अर्थी – विद्यार्थी
‘विद्या’ शब्द का अंतिम स्वर ‘आ’ और दूसरे शब्द ‘अर्थी’ की प्रथम स्वर ध्वनि ‘अ’ जब मिलते हैं तो वे मिलकर दीर्घ स्वर ‘आ’ में बदल जाते हैं। यह स्वर संधि है जो संधि का ही एक प्रकार है।

संधि शब्द का अर्थ है- जोड़ना। जब दो शब्द पास-पास आते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि बाद में आने वाले शब्द की पहली ध्वनि से मिलकर उसे प्रभावित करती है। ध्वनि परिवर्तन की इस प्रक्रिया को संधि कहते हैं। संधि तीन प्रकार की होती है-स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि। जब संधि युक्त पदों को अलग-अलग किया जाता है तो उसे संधि विच्छेद कहते हैं;
जैसे- विद्यालय – विद्या + आलय
नीचे दिए गए शब्दों की संधि कीजिए-

  1. श्रद्धा + आनंद = ….
  2. प्रति + एक = …….
  3. पुरुष + उत्तम = ………
  4. झंडा + उत्सव = ……..
  5. पुनः + आवृत्ति = ………
  6. ज्योतिः + मय = …….

उत्तर

  1. श्रद्धा + आनंद = श्रद्धानंद
  2. प्रति + एक = प्रत्येक
  3. पुरुष + उत्तम = पुरुषोत्तम
  4. झंडा + उत्सव = झंडोत्सव
  5. पुनः + आवृत्ति = पुनरावृत्ति
  6. ज्योतिः + मय = ज्योतिर्मय

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
भौतिक रूप से दबे हुए होने पर भी अंग्रेजों के समय में ही हमारा मन आजाद हो चुका था। अत: दिसंबर सन् 1929 में लाहौर में कांग्रेस का एक बड़ा अधिवेशन हुआ, इसके सभापति जवाहरलाल नेहरू जी थे। इस अधिवेशन में यह प्रस्ताव पास किया गया कि अब हम ‘पूर्ण स्वराज्य से कुछ भी कम स्वीकार नहीं करेंगे। 26 जनवरी 1930 को देशवासियों ने पूर्ण स्वतंत्रता के लिए हर प्रकार के बलिदान । की प्रतिज्ञा की। उसके बाद आज़ादी प्राप्त होने तक प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। आजादी मिलने के बाद 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
उत्तर-
यह छात्रों की जानकारी के लिए है।

प्रश्न 2.
डायरी-यह गद्य की एक विधा है। इसमें दैनिक जीवन में होने वाली घटनाओं, अनुभवों को वर्णित किया जाता है। आप भी अपनी दैनिक जीवन से संबंधित घटनाओं को डायरी में लिखने का अभ्यास करें।
उत्तर-
09 जनवरी, 2016
शनिवार

जनवरी महीने का पूर्वार्ध बीतने को है। लगता है इस बार दिल्ली से सरदी रूठी ही रहेगी। सरदी का बहाना करके भी बिस्तर में देर तक नहीं पड़ा रह सकता। अरे! हाँ, याद आया आज तो हमें माता-पिता के साथ चिड़ियाघर देखने जाना है। उठकर जल्दी तैयार होता हूँ। अरे! यह क्या पिता जी कार साफ़ करा रहे हैं। लगता है, वे कार से चिड़ियाघर जाना चाहते हैं। लगता है कि उन्हें याद नहीं कि आज तो दिल्ली की सड़कों पर आड (विषम) नंबर की गाड़ियाँ ही चलेंगी। हमारी कार तो इवन (सम) नंबर की है। पिता जी, उसमें समान रखवाएँ, इससे पहले यह याद दिलाता हूँ। उनसे कहता हूँ कि या तो मेट्रो से चलें या कल रविवार को। आज तो इवन नंबर की कार में चलना ठीक न रहेगा, है न।

मोहित

प्रश्न 3.
जमना लाल बजाज, महात्मा गांधी के पाँचवें पुत्र के रूप में जाने जाते हैं, क्यों? अध्यापक से जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर-
जमनालाल बजाज, बजाज उद्योग घराने के संस्थापक थे। कभी वे राजस्थान के प्रसिद्ध व्यापारी हुआ करते थे। ये अपनी व्यावसायिक एवं प्रशासनिक कुशलता से अंग्रेजों के प्रिय बन गए। इन्हें राय बहादुर की उपाधि देकर अंग्रेजों ने सम्मानित किया। जमनालाल को जब गांधी जी का सान्निध्य मिला तो वे गांधी जी से अत्यंत प्रभावित हुए और गांधी जी के शिष्य बन गए। इससे उनका स्वाभिमान जाग उठा और उन्होंने अंग्रेजों का सम्मान लौटाया ही नहीं बल्कि गांधी जी अनुयायी भी बन गए। उनके द्वारा वर्धा में सेवा संघ की स्थापना की गई। वे गांधी जी के सिद्धांत सत्य और अहिंसा का पालन करते थे। अपने सिद्धांत के प्रति ऐसा समर्पण देख गांधी जी उन्हें अपना पुत्र मानने लगे। कालांतर में जमनालाल को गांधी जी के पाँचवें पुत्र के रूप में जाना जाने लगा।

प्रश्न 4.
ढाई लाख का जानकी देवी पुरस्कार जमना लाल बजाज फाउंडेशन द्वारा पूरे भारत में सराहनीय कार्य करने वाली महिलाओं
को दिया जाता है। यहाँ ऐसी कुछ महिलाओं के नाम दिए जा रहे है-
ंश्रीमती अनुताई लिमये 1993 महाराष्ट्र; सरस्वती गोरा 1996 आंध्र प्रदेश;
मीना अग्रवाल 1996 असम, सिस्टर मैथिली 1999 केरल; कुंतला कुमारी आचार्य 2001 उड़ीसा।
इनमें से किसी एक के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता आंदोलन में निम्नलिखित महिलाओं में जो होगदान दिया, उसके बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करके लिखिए-
(क) सरोजिनी नायडू
(ख) अरुणा आसफ अली
(ग) कस्तूरबा गांधी
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
इस पाठ के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में कलकलाई कोलकाता ) के योगदान का चित्र स्पष्ट होता है। आजादी के आंदोलन में आपके क्षेत्र का भी किसी न किसी प्रकार का योगदान रहा होगा पुस्तकालय, अपने परिचितों या फिर किसी दूसरे स्त्रोत से इस संबंध में जानकारी हासिल कर लिखिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
‘केवल प्रचार में दो हजार रुपया खर्च किया गया था। तत्कालीन समय को मद्देनज़र रखते हुए अनुमान लगाइए कि प्रचार-प्रसार के लिए किन माध्यमों का उपयोग किया गया होगा?
उत्तर-
तत्कालीन समय अर्थात् 1930-31 में प्रचार-प्रसार के लिए बहुत सारे झंडे बनवाए गए होंगे, प्रचार के पंपलेट (इश्तिहार) छपवाकर बाँटे गए होंगे, दीवारों पर नारे या स्लोगन लिखे गए होंगे। इसके अलावा कार्यकर्ताओं को दूर-दराज के क्षेत्रों में आने-जाने (प्रचारार्थ) के लिए कुछ नकद भी दिया गया होगा।

प्रश्न 4.
आपको अपने विद्यालय में लगने वाले पल्स पोलियो केंद्र की सूचना पूरे मोहल्ले को देनी है। आप इस बात का प्रचार बिना पैसे के कैसे कर पाएँगे? उदाहरण के साथ लिखिए।
उत्तर-
मैं अपनी कॉलोनी के आसपास स्थित झुग्गी बस्तियों में अपने मित्रों के साथ जाऊँगा और पल्स पोलियो ड्राप पिलवाने का अनुरोध करूँगा तथा पोलियो के खतरे से भी सावधान करूंगा।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
26 जनवरी, 1931 को पार्को और मैदानों में पुलिस ही पुलिस दिखती थी, क्यों?
उत्तर-
26 जनवरी, 1931 को कोलकाता में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए क्रांतिकारियों और देशभक्तों द्वारा स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। इसके अंतर्गत ध्वजारोहण और प्रतिज्ञा लेना तय किया गया था। इसे रोकने के लिए पार्क और मैदान में पुलिस ही पुलिस दिखती थी।

प्रश्न 2.
तारा सुंदरी पार्क में पुलिस ने लोगों को रोकने के लिए क्या किया?
उत्तर-
तारा सुंदरी पार्क में बड़ा बाजार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद सिंह को झंडा फहराने भीतर न जाने दिया। पुलिस ने वहाँ काफ़ी मारपीट की जिसमें दो-चार आदमियों के सिर फट गए। गुजराती सेविका संघ की ओर से निकाले गए जुलूस में शामिल लड़कियों को गिरफ्तार कर उन्हें रोकने का प्रयास किया गया।

प्रश्न 3.
पुलिस कमिश्नर द्वारा निकाली गई नोटिस का कथ्य स्पष्ट करते हुए बताइए कि यह नोटिस क्यों निकाली गई होगी?
उत्तर-
पुलिस कमिश्नर द्वारा निकाली गई नोटिस का कथ्य यह था कि अमुक-अमुक धारा के अंतर्गत सभा नहीं हो सकती है। यदि आप भाग लेंगे तो दोषी समझे जाएँगे। यह नोटिस इसलिए निकाली गई होगी ताकि इस दिन झंडा फहराने और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा लेने के कार्यक्रम को विफल बनाया जा सके।

प्रश्न 4.
कौंसिल की तरफ़ से निकाली गर्ट नोटिस का प्रकट एवं उद्देश्य क्या था?
उत्तर-
कौंसिल द्वारा निकाली गई नोटिस का मूलकथ्य यह था कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सर्वसाधारण की उपस्थिति होनी चाहिए। इस नोटिस का उद्देश्य था स्वतंत्रता दिवस मनाने की पुनरावृत्ति करना तथा पूर्ण आजादी की माँग करना।

प्रश्न 5.
जुलूस को न रोक पाने की दी। पुलिस ने किस तरह उतारी ?
उत्तर-
भीड़ की अधिकता के कारण पुलिस जुलूस को जब न रोक सकी तो उसने अपनी खीझ उतारने के लिए मैदान के मोड़ पर पहुँचते ही जुलूस पर लाठियाँ चलानी शुरू कर दी। इसमें बहुत से आदमी घायल हुए। पुलिस की लाठियों से सुभाष चंद्र बोस भी न बच सके।

प्रश्न 6.
झंडा दिवस के अवसर पर पुलिस का कृर प देखने को मिला। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
झंडा दिवस अर्थात् 26 जनवरी 1931 को भारतीयों द्वारा जो कार्यक्रम मनाने का निश्चय किया गया था, उसे रोकने के प्रयास में पुलिस का क्रूरतम रूप देखने को मिला। पुलिस जुलूस में शामिल लोगों पर लाठी चार्ज कर रही थी, जिससे लोग। लहूलुहान हो रहे थे। पुलिस महिलाओं और लड़कियों के साथ भी मारपीट कर रही थी।

प्रश्न 7.
पुलिस जिस समय मोनुमेंट की मोटियाँ न हो थी, उस समय दूसरी ओर महिलाएँ किस काम में लगी थी ?
उत्तर-
मोनुमेंट के नीचे पुलिस जिस समय लोगों पर लाठियाँ भाँज रही थी और लोग लहूलुहान हो रहे थे उसी समय दूसरी ओर महिलाएँ मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फहरा रही थी और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। ऐसा करके वे झंडा दिवस कार्यक्रम को सफल एवं संपन्न करने में जुटी थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
26 जनवरी, 1937 को कोलकाता के स्तों पर उत्साह और नवीनता देखते ही बनती थी। इसके कारणों एवं नएपन का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
26 जनवरी, 1931 को कोलकाता में स्वतंत्रता दिवस मनाये जाने की पुनरावृत्ति होनी थी। इस दृष्टि से इस महत्त्वपूर्ण दिन को अत्यंत हर्षोल्लास से मनाया जाना था। इस बार का उत्साह भी देखते ही बनता था। इसके प्रचार मात्र पर ही दो हज़ारे रुपये खर्च किए गए थे। कार्यकर्ताओं को झंडा देते हुए उन्हें घर-घर जाकर समझाया गया था कि आंदोलन की सफलता उनके प्रयासों पर ही निर्भर करती है। ऐसे में आगे आकर उन्हें ही सारा इंतजाम करना था। इसे सफल बनाने के लिए घरों और रास्तों पर झंडे लगाए गए थे। इसके अलावा जुलूस में शामिल, लोगों का उत्साह चरम पर था। उन्हें पुलिस की लाठियाँ भी रोक पाने में असमर्थ साबित हो रही थीं।

प्रश्न 2.
26 जनवरी, 1931 को सुभाषचंद्र ४ का एक नया रूप एवं सशक्त नेतृत्व देखने को मिला। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
26 जनवरी, 1931 को कोलकाता में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाना था। गतवर्ष इसी दिन पूर्ण स्वराज्य पाने के लिए झंडा तो फहराया गया था पर इसका आयोजन भव्य न बन सका था। आज झंडा फहराने और प्रतिज्ञा लेने के इस कार्यक्रम में सुभाषचंद्र के क्रांतिकारी रूप का दर्शन हो रहा था। वे जुलूस के साथ असीम उत्साह के साथ मोनुमेंट की ओर बढ़ रहे थे। उन्हें रोकने के लिए पुलिस ने लाठियाँ भाँजनी शुरू कर दी थी फिर भी वे चोट की परवाह किए बिना निडरता से आगे ही आगे बढ़ते जा रहे थे और ज़ोर-ज़ोर से ‘वंदे मातरम्’ बोलते जा रहे थे। पुलिस की लाठियाँ उन पर भी पड़ी।
यह देख ज्योतिर्मय गांगुली ने उन्हें पुलिस से दूर अपनी ओर आने के लिए कहा पर सुभाषचंद्र ने कहा, आगे बढ़ना है। उनका यह कथन जुलूस को भी प्रेरित कर रहा था।

प्रश्न 3.
वृजलाल गोयनका कौन थे? झंडा दिवस को सफल बनाने में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
वृजलाल गोयनका स्वतंत्रता सेनानी थे, जो कई दिनों से लेखक के साथ काम कर रहे थे। वे दमदम जेल में भी लेखक के साथ थे। वे झंडा दिवस 26 जनवरी, 1931 को सभास्थल की ओर जाते हुए पकड़े गए। पहले तो वे झंडा लेकर ‘वंदे मातरम्’ बोलते हुए इतनी तेज गति से भागे कि अपने आप गिर गए। एक अंग्रेज घुड़सवार ने उन्हें लाठी मारी और पकड़ा परंतु थोड़ी दूर जाने के बाद छोड़ दिया। इस पर वे स्त्रियों के झुंड में शामिल हो गए, तब पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया। तब वे दो सौ आदमियों का जुलूस लेकर लालबाजार गए जहाँ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

प्रश्न 4.
‘डायरी का एक पन्ना’ नामक पाठ के माध्यम से क्या संदेश दिया गया है?
उत्तर
‘डायरी का एक पन्ना’ नामक पाठ स्वतंत्रता का मूल्य समझाने एवं देश प्रेम व राष्ट्रभक्ति को जगाने तथा प्रगाढ़ करने का संदेश छिपाए हुए है। पाठ में सन् 1931 के गुलाम भारत के लोगों की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत की गई है कि किस प्रकार निहत्थे किंतु संगठित भारतवासियों के मन में स्वतंत्रता पाने की भावना बलवती हुई और इसे पाने के लिए लोगों ने न लाठियों की चिंता की और न जेल जाने की। वे आत्मोत्सर्ग के लिए तैयार रहते थे। यह पाठ हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा । करने की जहाँ प्रेरणा देता है, वहीं यह संदेश भी देता है कि संगठित होकर काम करने से कोई काम असाध्य नहीं रह जाता है।

 

पूर्व वर्षों के प्रश्नोत्तर
2015
निबंधात्मक प्रश्न

Question 1.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 1
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 1a

Question 2.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 2
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 2a

2014
अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 3.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 3
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 3a

लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 4.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 4
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 4a

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 5.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 5
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 5a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 5b
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 5c

2013
निबंधात्मक प्रश्न

Question 6.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 6
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 6a

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 7.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 7
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 7a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 7b
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 7c

2012
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 8.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 8
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 8a

Question 9.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 9
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 9a

2011
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 10.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 1`0
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 1`0a

Question 11.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 11
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 11a

Question 12.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 12
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 12a

निबंधात्मक प्रश्न

Question 13.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 13
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 13a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 13b

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 14.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 14
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 14a

Question 15.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 15
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 15a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 15b

2010
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 16.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 16
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 16a

Question 17.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 17
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 17a

2009
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 18.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 18
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 18a

Question 19.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 19
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 19a

Question 20.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 20
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - डायरी का एक पन्ना 20a

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