NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 15 Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale

Class 10 Chapter 15 – कक्षा 10 पाठ 15

Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale –
अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale Class 10 Hindi Chapter 15 – Summary, Explanation, Question Answers (अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले)

Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale summary of CBSE Class 10 Hindi Lesson with detailed explanation of the lesson ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary and all the exercises, Question and Answers given here.

Author Introduction – लेखक परिचय

लेखक – निदा फ़ाज़ली
जन्म – 12 अक्तूबर 1938 (दिल्ली)

Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale Chapter Introduction – पाठ प्रवेश

प्रकृति ने यह धरती उन सभी जीवधारियों के लिए दान में दी थी जिन्हें खुद प्रकृति ने ही जन्म दिया था। लेकिन समय के साथ-साथ हुआ यह कि आदमी नाम के प्रकृति के सबसे अनोखे चमत्कार ने धीरे-धीरे पूरी धरती को अपनी जायदाद बना दिया और अन्य दूसरे सभी जीवधारियों को इधर -उधर भटकने के लिए छोड़ दिया।

इसका अन्जाम यह हुआ कि दूसरे जीवधारियों की या तो नस्ल ही ख़त्म हो गई या उन्हें अपने ठिकानों से कहीं दूसरी जगह जाना पड़ा जहाँ आदमी ना पहुँचा हो। कुछ जीवधारी तो आज भी अपने लिए ठिकानों की तलाश कर रहे हैं।

अगर इतना ही हुआ होता तो भी संतोष किया जा सकता था लेकिन आदमी नाम का यह जीव सब कुछ समेटना चाहता था और उसकी यह भूख इतना सब कुछ करने के बाद भी शांत नहीं हुई। अब वह इतना स्वार्थी हो गया है कि दूसरे प्राणियों को तो पहले ही बेदखल कर चुका था परन्तु अब वह अपनी ही जाति अर्थात मनुष्यों को ही बेदखल करने में जरा भी नहीं हिचकिचाता। परिस्थिति यह हो गई है कि न तो उसे किसी के सुख-दुःख की चिंता है और न ही किसी को सहारा या किसी की सहायता करने का इरादा। यदि आपको भरोसा नहीं है तो इस पाठ को पढ़ लीजिए और पाठ को पढ़ते हुए अपने आस पास के लोगों को याद भी कीजिए और ऐसा जरूर होगा कि आपको कोई न कोई ऐसे व्यक्ति याद आयेंगे जिन्होंने किसी न किसी के साथ ऐसा बर्ताव किया होगा।

Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale Summary – पाठ सार

इस पाठ में वर्णन किया गया है कि किस तरह आदमी नाम का जीव सब कुछ समेटना चाहता है और उसकी यह भूख कभी भी शांत होने वाली नहीं है। वह इतना स्वार्थी हो गया है कि दूसरे प्राणियों को तो पहले ही बेदखल कर चुका था परन्तु अब वह अपनी ही जाति अर्थात मनुष्यों को ही बेदखल करने में जरा भी नहीं हिचकिचाता। परिस्थिति यह हो गई है कि न तो उसे किसी के सुख-दुःख की चिंता है और न ही किसी को सहारा या किसी की सहायता करने का इरादा।

लेखक पाठ में ऐसे व्यक्तिओं के उदाहरण देते हैं जो सभी तरह के प्राणधारियों की रक्षा करना अपना कर्तव्य मानते थे। इनमे सबसे पहला उदाहरण सुलेमान का है।सुलेमान ईसा से 1025 वर्ष पहले एक बादशाह थे। वह सभी पशु-पक्षियों की भाषा भी जानते थे। एक बार सुलेमान अपनी सेना के साथ एक रास्ते से गुज़र रहे थे। रास्ते में कुछ चींटियों ने जब रास्ते से गुजरते हुए घोड़ों के चलने की आवाज़ सुनी तो वे डर गई और एक दूसरे से कहने लगी कि जल्दी से सभी अपने-अपने बिलों में चलो। सुलेमान ने उनकी बातें सुन ली, वे चींटियों से बोले कि तुम में से किसी को भी घबराने की जरुरत नहीं है, सुलेमान को खुदा ने सबकी रक्षा करने के लिए बनाया है। सुलेमान की नेक दिली की तरह एक और उसी तरह की घटना का वर्णन सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाज़ ने अपनी जीवन कथा में किया है। एक दिन शेख अयाज़ के पिता कुँए से नहाकर लौटे। अभी उनके पिता ने रोटी का पहला टुकड़ा तोड़ा ही था कि उनकी नज़र उनके बाजू पर धीरे-धीरे चलते हुए एक काले च्योंटे पर पड़ी। जैसे ही उन्होंने कीड़े को देखा वे भोजन छोड़ कर खड़े हो गए। इस पर माँ ने पूछा कि क्या भोजन अच्छा नहीं लगा? इस पर शेख अयाज़ के पिता ने जवाब दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है। उन्होंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है वे उसी को उसके घर यानि कुँए के पास छोड़ने जा रहें हैं। बाइबिल और जितने भी दूसरे पवित्र ग्रन्थ हैं उनमें नूह नाम के एक ईश्वर के सन्देश वाहक का वर्णन मिलता है। उनका असली नाम नूह नहीं था उनका नाम लश्कर था, लेकिन अरब के लोग उनको इस नाम से याद करते हैं क्योंकि वे सारी उम्र रोते रहे अर्थात दूसरों के दुःख में दुखी रहते थे।

लेखक कहता है कि जब पृथ्वी अस्तित्व में आई थी, उस समय पूरा संसार एक परिवार की तरह रहा करता था लेकिन अब इसके टुकड़ें हो गए हैं और सभी एक-दूसरे से दूर हो गए हैं। वातावरण में इतना अधिक बदलाव हो गया है कि गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, बरसात का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है, भूकम्प, सैलाब, तूफ़ान और रोज कोई न कोई नई बीमारियाँ न जाने और क्या-क्या ,ये सब मानव द्वारा किये गए प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ का नतीजा है। कहा जाता है कि जो जितना बड़ा होता है उसको गुस्सा उतना ही कम आता है परन्तु जब आता है तो उनके गुस्से को कोई शांत नहीं कर सकता। समुद्र के साथ भी वही हुआ जब समुद्र को गुस्सा आया तो एक रात वह अपनी लहरों के ऊपर दौड़ता हुआ आया और तीन जहाज़ों को ऐसे उठा कर तीन दिशाओं में फेंक दिया जैसे कोई किसी बच्चे की गेंद को उठा कर फेंकता है।

लेखक कहता है कि बचपन में उनकी माँ हमेशा कहती थी कि शाम के समय पेड़ों से पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए क्योंकि उस समय यदि पत्ते तोड़ोगे तो पेड़ रोते हैं। पूजा के समय फूलों को नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि उस समय फूलों को तोड़ने पर फूल श्राप देते हैं। नदी पर जाओ तो उसे नमस्कार करनी चाहिए वह खुश हो जाती है। कभी भी कबूतरों और मुर्गों को परेशान नहीं करना चाहिए।

ग्वालियर में लेखक का एक मकान था, उस मकान के बरामदे में दो रोशनदान थे। उन रोशनदानों में कबूतर के एक जोड़े ने अपना घोंसला बना रखा था। बिल्ली ने जब कबूतर के एक अंडे को तोड़ दिया तो लेखक की माँ ने स्टूल पर चढ़ कर दूसरे अंडे को बचाने की कोशिश की। परन्तु इस कोशिश में दूसरा अंडा लेखक की माँ के हाथ से छूट गया और टूट गया। कबूतरों की आँखों में उनके बच्चों से बिछुड़ने का दुःख देख कर लेखक की माँ की आँखों में आँसू आ गए। इस पाप को खुदा से माफ़ कराने के लिए लेखक की माँ ने पुरे दिन का उपवास रखा। अब लेखक समय के साथ मनुष्यों की बदलती भावनाओं के लिए एक उदाहरण देते हैं -दो कबूतरों ने लेखक के फ्लैट में एक ऊँचे स्थान पर आपने घोंसला बना रखा था। उनके बच्चे अभी छोटे थे। उनके पालन-पोषण की जिम्मेवारी उन बड़े कबूतरों की थी। लेकिन उनके आने-जाने के कारण लेखक और लेखक के परिवार को बहुत परेशानी होती थी। कभी कबूतर किसी चीज़ से टकरा जाते थे और चीज़ों को गिराकर तोड़ देते थे। कबूतरों के बार-बार आने-जाने और चीज़ों को तोड़ने से परेशान हो कर लेखक की पत्नी ने जहाँ कबूतरों का घर था वहाँ जाली लगा दी थी, कबूतरों के बच्चों को भी वहाँ से हटा दिया था। जहाँ से कबूतर आते-जाते थे उस खिड़की को भी बंद किया जाने लगा था। अब दोनों कबूतर खिड़की के बाहर रात-भर चुप-चाप और दुखी बैठे रहते थे। मगर अब न तो सोलोमेन है जो उन कबूतरों की भाषा को समझ कर उनका दुःख दूर करे और न ही लेखक की माँ है जो उन कबूतरों के दुःख को देख कर रत भर प्रार्थना करती रहे। अर्थ यह हुआ कि समय के साथ-साथ व्यक्तियों की भावनाओं में बहुत अंतर आ गया है।

अंत में लेखक हमें बताना चाहता है कि हमें नदी और सूरज की तरह दुसरो के हित के कार्य करने चाहिए और तोते की तरह सभी को सामान समझना चाहिए तभी संसार के सभी जीवधारी प्रसन्न और सुखी रह सकते हैं।

Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale Explanation – पाठ व्याख्या

बाइबिल के सोलोमेन जिन्हें कुरआन में सुलेमान कहा गया है, ईसा से 1025 वर्ष पूर्व एक बादशाह थे। कहा गया है, वह केवल मानव जाति के ही राजा नहीं थे, सारे छोटे-बड़े पशु-पक्षी के भी हाकिम थे। वह इन सबकी भाषा भी जानते थे। एक दफा सुलेमान अपने लश्कर के साथ एक रास्ते से गुज़र रहे थे। रास्ते में कुछ चींटियों ने घोड़ों के टापों की आवाज़ सुनी तो डर कर एक दूसरे से कहा,’आप जल्दी से अपने-अपने बिलों में चलो, फ़ौज आ रही है। ‘सुलेमान उनकी बातें सुनकर थोड़ी दूर पर रुक गए और चींटियों से बोले, घबराओ नहीं, सुलेमान को खुदा ने सबका रखवाला बनाया है। मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ, सबके लिए मुहब्बत हूँ। चींटियों ने उसके लिए ईश्वर से दुआ की और सुलेमान अपनी मंज़िल की ओर बढ़ गए।

बाइबिल – ईसाईयों का पवित्र ग्रन्थ
कुरआन – इस्लाम का पवित्र ग्रन्थ
हाकिम- राजा /मालिक
एक दफा – एक बार

लश्कर – सेना
दुआ – प्रार्थना

(यहाँ लेखक ने सुलेमान की नेक -दिली का उदाहरण दिया है)

ईसाईयों के पवित्र ग्रन्थ बाइबिल में जिसे सोलोमेन कहा जाता है, उन्हीं को इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन में सुलेमान कहा गया है। सुलेमान ईसा से 1025 वर्ष पहले एक बादशाह थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे केवल मानव जाति के ही राजा नहीं थे, बल्कि जितने भी छोटे-बड़े पशु-पक्षी थे वे सभी के राजा या मालिक कहे जाते थे। वह सभी पशु-पक्षियों की भाषा भी जानते थे। एक बार सुलेमान अपनी सेना के साथ एक रास्ते से गुज़र रहे थे।

रास्ते में कुछ चींटियों ने जब रास्ते से गुजरते हुए घोड़ों के चलने की आवाज़ सुनी तो वे डर गई और एक दूसरे से कहने लगी कि जल्दी से सभी अपने-अपने बिलों में चलो, फौज आ रही है। सुलेमान ने उनकी बातें सुन ली और वे थोड़ी दुरी पर रुके और चींटियों से बोले कि तुम में से किसी को भी घबराने  की जरुरत नहीं है, सुलेमान को खुदा ने सबकी रक्षा करने के लिए बनाया है। सुलेमान किसी के लिए भी मुसीबत नहीं है बल्कि वह तो सबसे मुहब्बत अर्थात प्यार करता है। उसकी बातों को सुन कर चींटियों ने उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना की और सुलेमान अपनी मंज़िल की ओर चल पड़ा।

ऐसी एक घटना का जिक्र सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाज़ ने अपनी आत्मकथा में किया है। उन्होंने लिखा है – ‘एक दिन उनके पिता नहाकर लौटे। माँ ने भोजन परोसा। उन्होंने जैसे ही रोटी का कौर तोड़ा। उनकी नज़र अपनी बाजू पर पड़ी। वहाँ एक काला च्योंटा रेंग रहा था। वह भोजन छोड़ कर उठ खड़े हुए। ‘माँ ने पूछा,’क्या बात है? भोजन अच्छा नहीं लगा?’ शेख अयाज़ के पिता बोले,’नहीं यह बात नहीं है। मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुँए पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।’

जिक्र – वर्णन करना

आत्मकथा – जीवनी /अपने बारे में लिखना
कौर – ग्रास /टुकड़ा
च्योंटा – एक प्रकार का कीड़ा
रेंगना – धीरे-धीरे चलना
बेघर – जिसका घर न हो

(यहाँ लेखक ने शेख अयाज़ के पिता की अच्छाई का वर्णन किया है)

सुलेमान की नेक दिली की तरह एक और उसी तरह की घटना का वर्णन सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाज़ ने अपनी जीवन कथा में किया है। उन्होंने लिखा है कि एक दिन उनके पिता कुँए से नहाकर लौटे। उनकी माँ ने भोजन परोसा। अभी उनके पिता ने रोटी का पहला टुकड़ा तोड़ा ही था कि उनकी नज़र उनके बाजू पर धीरे-धीरे चलते हुए एक कीड़े पर पड़ी। जैसे ही उन्होंने कीड़े को देखा वे भोजन छोड़ कर खड़े हो गए। उनको खड़ा देख कर शेख अयाज़ा की माँ ने पूछा कि क्या बात है? क्या भोजन अच्छा नहीं लगा? इस पर शेख अयाज़ के पिता ने जवाब दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है। उन्होंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है वे उसी को उसके घर यानि कुँए के पास छोड़ने जा रहें हैं।

बाइबिल और दूसरे पावन ग्रंथों में नूह नाम के एक पैगंबर का ज़िक्र मिलता है। उनका असली नाम लश्कर था, लेकिन अरब ने उनको नूह के लक़ब से याद किया है। वह इसलिए कि आप सारी उम्र रोते रहे। इसका कारण एक ज़ख़्मी कुत्ता था। नूह के सामने से एक बार एक ज़ख़्मी कुत्ता गुजरा। नूह ने उसे दुत्कारते हुए कहा, ‘दूर हो जा गन्दे कुत्ते !’ इस्लाम में कुत्तों को गन्दा समझा जाता है। कुत्ते ने उसकी दुत्कार सुन कर जवाब दिया……’न मैं अपनी मर्जी से कुत्ता हूँ, न तुम अपनी पसंद से इंसान हो। बनाने वाला सबका तो वही एक है।’

पावन – पवित्र
पैगंबर – ईश्वर का सन्देश वाहक
दुत्कार – अपमान, तिरस्कार
लक़ब – ख़िताब, ऐसा नाम जिससे व्यक्ति के गुणों का पता चले

(यहाँ लेखक ने नूह नाम के ईश्वर के सन्देश वाहक का उदाहरण दिया है)

बाइबिल और जितने भी दूसरे पवित्र ग्रन्थ हैं उनमें नूह नाम के एक ईश्वर के सन्देश वाहक का वर्णन मिलता है। उनका असली नाम नूह नहीं था उनका नाम लश्कर था, लेकिन अरब के लोग उनको इस नाम से याद करते हैं क्योंकि वे सारी उम्र रोते रहे। इसका कारण एक जख्मी कुत्ता था। नूह के सामने से एक दिन एक जख्मी कुत्ता गुजर रहा था, उस कुत्ते को देख कर नूह ने उसे अपमानित करते हुए  कहा कि गंदे कुत्ते तू दूर हो जा। ऐसा नूह ने इसलिए कहा क्योकि इस्लाम में कुत्तों को गन्दा समझा जाता है। कुत्ते ने उसकी अपमान जनक बात को सुन कर जवाब दिया कि न तो वह अपनी मर्जी से कुत्ता बना है और न ही नूह अपनी मर्जी से इंसान बना है। जिसने भी हमें बनाया है वो सबका मालिक तो एक ही है।

मिट्टी से मिट्टी मिले,
खो के सभी निशान।

किसमें कितना कौन है,

कैसे हो पहचान।।

नूह ने जब उसकी बात सुनी और दुखी हो मुद्दत तक रोते रहे। ‘महाभारत’ में युधिष्ठिर का जो अंत तक साथ निभाता नज़र आता है, वह भी प्रतीकात्मक रूप में एक कुत्ता ही था। सब साथ छोड़ते गए तो केवल वही उनके एकांत को शांत कर रहा था।

मुद्दत – बहुत अधिक लम्बा समय
प्रतीकात्मक – प्रतिक के रूप में
एकांत – अकेला

(यहाँ लेखक ने अपने थोड़े शब्दों में अधिक कहने की कला को दर्शाया है)

लेखक इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहता है कि उस ईश्वर ने हम सभी प्राणधारियों को एक ही मिट्टी से बनाया है। यदि सभी से प्राण निकल कर वापिस मिट्टी बना दिया जाए तो किसी का कोई निशान नहीं रहेगा जिससे पहचना जा सके कि कौन सी मिट्टी किस प्राणी की है। भाव यह हुआ की लेखक कहना चाहता है व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व पर घमण्ड नहीं करना चाहिए क्योंकि यह कोई नहीं जानता की उसमें कितनी मनुष्यता है और कितनी पशुता।

नूह ने जब कुत्ते की यह बात सुनी कि जिसने भी हमें बनाया है वो सबका मालिक तो एक ही है।तो वह लम्बे समय तक अपनी मूर्खता पर रोते रहे। उन्हें महाभारत का वह दृश्य याद आ गया जहाँ एक कुत्ता (जो यमराज  थे) युधिष्ठिर का अंतिम समय तक साथ निभाता नजर आता है जबकि बाकी सभी पाण्डवों और द्रौपदी ने उनका साथ छोड़ दिया था।

दुनिया कैसे वजूद में आई? पहले क्या थी? किस बिन्दु से इसकी यात्रा शुरू हुई? इन प्रश्नों के उत्तर विज्ञान अपनी तरह से देता है, धार्मिक ग्रन्थ अपनी-अपनी तरह से। संसार की रचना भले ही कैसे हुई हो लेकिन धरती किसी एक की नहीं है। पंछी, मानव, पशु, नदी, पर्वत, समंदर आदि की इसमें बराबर की हिस्सेदारी है। यह और बात है कि इस हिस्सेदारी में मानव जाति ने अपनी बुद्धि से बड़ी-बड़ी दीवारे खड़ी कर दी हैं।

वजूद – अस्तित्व
हिस्सेदारी – अपने- अपने हिस्से पर अधिकार

दुनिया कैसे अस्तित्व में आई? पहले यह दुनिया क्या थी? किस बिन्दु से दुनिया के बनने की यात्रा शुरू हुई? इन सभी प्रश्नों के उत्तर विज्ञान अपनी तरह से देता है और सभी जितने भी धार्मिक ग्रंथ हैं वो अपनी-अपनी तरह से देते हैं। इन प्रश्नों के सही उत्तर किसी को पता चले या न चले लेकिन ये बात सही है कि ये धरती किसी एक की नहीं है। जितने भी जीवधारी इस धरती पर रहते हैं जैसे पंछी, मानव, पशु, नदी, पर्वत, समंदर – इन सभी का धरती पर बराबर का अधिकार है। परन्तु ये अलग बात है की अपने आप को बुद्धिमान बताने वाला मनुष्य धरती को अपनी निजि जायदाद समझ कर दूसरों के लिए बड़ी- बड़ी दीवारे खड़ी कर रहा है।

पहले पूरा संसार एक परिवार की समान था अब टुकड़ों में बँटकर एक-दूसरे से दूर हो चूका है। पहले बड़े-बड़े दालानों-आँगनों में सब मिल-जुलकर रहते थे अब छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में जीवन सिमटने लगा है। बढ़ती हुई आबादियों ने समंदर के पीछे सरकाना शुरू कर दिया है, पेड़ों को रास्तों से हटाना शुरू कर दिया है , फैलते हुए प्रदुषण ने पंछियों को बस्तियों से भगाना शुरू कर दिया है। बारूदों की विनाशलीलायों ने वातावरण को सताना शुरू कर दिया। अब गरमी में ज्यादा गरमी, बेवक्त की बरसातें, ज़लज़ले, सैलाब, तूफ़ान, और नित नए रोग, मानव और प्रकृति के इसी असंतुलन के प्रमाण हैं। नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई (मुंबई ) में देखने को मिला था और यह नमूना इतना डरावना था कि बम्बई निवासी डरकर अपने-अपने पूजा-स्थल में अपने खुदाओं से प्रार्थना करने लगे थे।

दालान – बरामदा

सिमटने – संकुचित /सिकुड़ना
सरकाना – धकेलना
बेवक्त – जिसका कोई समय न हो
ज़लज़ले – भूकंप
नेचर – प्रकृति

(यहाँ पर लेखक बढ़ती हुई आबादी के कारण होने वाले प्राकृतिक बदलावों का वर्णन किया है)

लेखक कहता है कि जब पृथ्वी अस्तित्व में आई थी, उस समय पूरा संसार एक परिवार की तरह रहा करता था लेकिन अब इसके टुकड़ें हो गए हैं और सभी एक-दूसरे से दूर हो गए हैं। पहले सभी बड़े-बड़े बरामदों और आंगनों में मिल-जुलकर रहा करते थे परन्तु आज के समय में सभी का जीवन छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में सिकुड़ने लगा है।

जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वैसे-वैसे समुद्र अपनी जगह से पीछे हटने लगा है, लोगों ने पेड़ों को काट कर रास्ते बनाना शुरू कर दिया है। प्रदुषण इतना अधिक फैल रहा है कि उससे परेशान हो कर पंछी बस्तियों को छोड़ कर भाग रहे हैं। बारूद से होने वाली मुसीबतों ने सभी को परेशान कर रखा है। वातावरण में इतना अधिक बदलाव हो गया है कि गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, बरसात का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है, भूकम्प, सैलाब, तूफ़ान और रोज कोई न कोई नई बीमारियाँ न जाने और  क्या-क्या ,ये सब मानव द्वारा प्रकृति के साथ किये गए छेड़-छाड़ का नतीजा है। प्रकृति एक सीमा तक ही सहन कर सकती है। प्रकृति को जब गुस्सा आता है तो क्या होता है इसका एक नमूना कुछ साल पहले मुंबई में आई सुनामी के रूप में देख ही चुके हैं। ये नमूना इतना डरावना था कि मुंबई के निवासी डर कर अपने-अपने देवी-देवताओं से उस मुसीबत से बचाने के लिए प्रार्थना करने लगे थे।

कई सालों से बड़े-बड़े बिल्डर समंदर को पीछे धकेल कर उसकी जमीन को हथिया रहे थे। बेचारा समंदर लगातार सिमटता जा रहा था। पहले उसने अपनी फैली हुई टाँगे समेटीं, थोड़ा सिमटकर बैठ गया। फिर जगह कम पड़ी तो उकड़ूं  बैठ गया। फिर खड़ा हो गया…. जब खड़े रहने की जगह काम पड़ी तो उसे गुस्सा आ गया। जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है। परन्तु आता है तो रोकना मुश्किल हो जाता है ,और यही हुआ, उसने एक रात अपनी लहरों पर दौड़ते हुए तीन जहाज़ों को उठा कर बच्चों की गेंद की तरह तीन दिशाओं में फेंक दिया। एक वर्ली के समंदर के किनारे पर आ कर गिरा। दूसरा बांद्रा के कार्टर रोड के सामने औंधे मुँह और तीसरा गेट-वे-ऑफ इंडिया पर टूटफूट कर सैलानियों का नजारा बना बावजूद कोशिश, वे फिर से चलने फिरने के काबिल नहीं हो सके।  

हथियाना – कब्ज़ा करना

उकड़ूं – घुटने मोड़ कर बैठना
औंधे मुँह – मुँह के बल
काबिल – योग्य /लायक

(यहाँ लेखक ने प्रकृति के भयानक गुस्से का वर्णन किया है)

कई सालों से बड़े-बड़े मकानों को बनाने वाले बिल्डर मकान बनाने के लिए समुद्र को पीछे धकेल कर उसकी जमीन पर कब्ज़ा कर रहे थे। बेचारा समुद्र लगातार सिकुड़ता जा रहा था। पहले तो समुद्र ने अपनी फैली हुई टांगों को इकठ्ठा किया और सिकुड़ कर बैठ गया। फिर भी बिल्डर नहीं माने तो समुद्र जगह कम होने के कारण घुटने मोड़ कर बैठ गया। अब भी बिल्डर नहीं माने तो समुद्र खड़ा हो गया…..  इतनी जगह देने पर भी जब बिल्डर नहीं माने तो समुद्र के पास खड़े रहने की जगह भी कम पड़ने लगी और समुद्र को गुस्सा आ गया। कहा जाता है कि जो जितना बड़ा होता है उसको गुस्सा उतना ही कम आता है परन्तु जब आता है तो उनके गुस्से को कोई शांत नहीं कर सकता है।

समुद्र के साथ भी वही हुआ – जब समुद्र को गुस्सा आया तो एक रात वह अपनी लहरों के ऊपर दौड़ता हुआ आया और तीन जहाज़ों को ऐसे उठा कर तीन दिशाओं में फेंक दिया जैसे कोई किसी बच्चे की गेंद को उठा कर फेंकता है। एक को वर्ली के समुद्र के किनारे फेंका तो दूसरे को बांद्रा के कार्टर रोड के सामने मुँह के बल गिरा दिया और तीसरे को गेट-वे-ऑफ इंडिया के पास पटक दिया जो अब  घूमने आये लोगों का मनोरंजन का साधन बना हुआ है। समुद्र ने तीनों को इस तरह फेंका की कोशिश करने पर भी उन्हें चलने लायक नहीं बनाया जा सका।

मेरी माँ कहती थी, सूरज ढले आँगन के पेड़ों से पत्ते मत तोड़ो, पेड़ रोएँगे। दिया-बत्ती के वक्त फूलों को मत तोड़ो, फूल बद्दुआ देते हैं। दरिया पर जाओ तो उसे सलाम किया करो, वह खुश होता है। कबूतरों को मत सताया करो, वो हज़रत मुहम्मद के अज़ीज़ हैं। उन्होंने उन्हें अपनी मज़ार के नीले गुम्बद पर घोंसले बनाने की इज़ाज़त दे रखी है। मुर्गे को परेशान नहीं किया करो, वह मुल्ला जी से पहले मोहल्ले में अज़ान देकर सबको सवेरे जगाता है –
सब की पूजा एक-सी, अलग-अलग है रीत।

मस्जिद जाए मौलवी, कोयल गाए गीत।।

बद्दुआ – श्राप
दरिया – नदी

सलाम – नमस्कार
अज़ीज़ – प्यारा
मज़ार – दरगाह
गुम्बद – गोलकार शिखर
इज़ाज़त – आज्ञा

(यहाँ लेखक बचपन में दी गई अपनी माँ की सीख का वर्णन कर रहा है)

लेखक कहता है कि बचपन में उनकी माँ हमेशा कहती थी कि जब भी सूरज ढले अर्थात शाम के समय पेड़ों से पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए क्योंकि उस समय यदि पत्ते तोड़ोगे तो पेड़ रोते हैं। दिया-बत्ती के समय अर्थात पूजा के समय फूलों को नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि उस समय फूलों को तोड़ने पर फूल श्राप देते हैं। नदी पर जाओ तो उसे नमस्कार करनी चाहिए वह खुश हो जाती है। कभी भी कबूतरों को परेशान नहीं करना चाहिए क्योंकि कबूतर हज़रत मुहम्मद को बहुत प्यारे हैं। हज़रत मुहम्मद ने कबूतरों को अपनी दरगाह के गोलकार शिखर पर रहने की इज़ाज़त दी हुई है। मुर्गों को भी कभी परेशान नहीं करना चाहिए क्योंकि वह मुल्ला जी से पहले ही पूरे मोहल्ले को बांग दे कर जगाता है –

सबकी पूजा एक सी अर्थात चाहे हिंदु हो या मुस्लिम या फिर सीख हो या ईसाई । सभी एक ही ईश्वर का गुणगान करते हैं।केवल तरीका अलग होता है।कोई मंदिर,तो कोई मस्जिद,कोई गिरजा तो कोई गुरुद्वारे जाता  है। इसलिए कहा जाता है कि रीत अलग है।उसी प्रकार मौलवी मस्जिद में जाकर लोगों को अलल्ह की इबादत सुनाकर प्रसन्न करता है वैसे ही कोयल बागों में,पेड़ों में बैठकर अपने मधुर बोल से सबको प्रसन्न करती है।

ग्वालियर में हमारा एक मकान था, उस मकान के दालान में दो रोशनदान थे। उसमें कबूतर के एक जोड़े ने घोंसला बना लिया था। एक बार बिल्ली ने उचककर दो में से एक अण्डा तोड़ दिया। मेरी माँ ने देखा तो उसे दुःख हुआ। उसने स्टूल पर चढ़ कर दूसरे अंडे को बचाने की कोशिश की। लेकिन इस कोशिश में दूसरा अंडा उसी के हाथ से गिरकर टूट गया। कबूतर परेशानी से इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे। उनकी आँखों में दुःख देख कर मेरी माँ की आँखों में आँसू आ गए। इस गुनाह को खुदा से मुआफ़ कराने के लिए उसने पुरे दिन रोज़ा रखा। दिन भर कुछ खाया पिया नहीं। सिर्फ़ रोती रही और बार बार नमाज़ पढ़-पढ़कर खुदा से इस गलती को मुआफ़ करने की दुआ माँगती रही।

दालान – बरामदा
उचककर – उछलकर
गुनाह – पाप
रोज़ा – उपवास
दुआ – प्रार्थना

(यहाँ लेखक अपने जीवन की एक घटना का वर्णन कर रहा है)

ग्वालियर में लेखक का एक मकान था, उस मकान के बरामदे में दो रोशनदान थे। उन रोशनदानों में कबूतर के  एक जोड़े ने अपना घोंसला बना रखा था। एक बार बिल्ली ने उछलकर उस घोंसले के दो अण्डों में से एक अंडे को गिरा दिया जिसके कारण वो अंडा टूट गया। जब लेखक की माँ ने ये सब देखा तो उसे बहुत दुःख हुआ। लेखक की माँ ने स्टूल पर चढ़ कर दूसरे अंडे को बचाने की कोशिश की। परन्तु इस कोशिश में दूसरा अंडा लेखक की माँ के हाथ से छूट गया और टूट गया। ये सब देख कर कबूतरों का जोड़ा परेशान हो कर इधर-उधर फड़फड़ाने लगा। कबूतरों की आँखों में उनके बच्चों से बिछुड़ने का दुःख देख कर लेखक की माँ की आँखों में आँसू आ गए। इस पाप को खुदा से माफ़ कराने के लिए लेखक की माँ ने पुरे दिन का उपवास  रखा। उसने पुरे दिन न तो कुछ खाया और न ही कुछ पिया। वह सिर्फ रो रही थी और बार-बार नमाज़ पढ़-पढ़कर खुदा से अपने द्वारा किये गए पाप को माफ़ करने की प्रार्थना कर रही थी।

ग्वालियर से बंबई की दूरी ने संसार को काफी कुछ बदल दिया है। वर्सोवा में जहाँ आज मेरा घर है, पहले यहाँ दूर तक जंगल था। पेड़ थे, परिंदे थे और दूसरे जानवर थे। अब यहाँ समंदर के किनारे लम्बी-चौड़ी बस्ती बन गई है। इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिन्दों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़ कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा दाल लिया है। इनमें से दो कबूतरों ने मेरे फ्लैट के एक मचान में घोंसला बना लिया है। बच्चे अभी छोटे हैं। उनके खिलाने-पिलाने की जिम्मेवारी अभी बड़े कबूतरों की है। वे दिन में कई-कई बार आते-जाते हैं। और क्यों न आए-जाए उनका भी घर है। लेकिन उनके आने-जाने से हमें परेशानी भी होती है। वे कभी किसी चीज़ को गिराकर तोड़ देते हैं। कभी मेरी लाइब्रेरी में घुस कर कबीर या मिर्ज़ा ग़ालिब को सताने लगते हैं।

परिंदे – पक्षी

बस्ती – गाँव
डेरा – अस्थाई घर
मचान – बाँस आदि की सहायता से बनाया गया ऊँचा स्थान /मंच

लेखक कहता है कि ग्वालियर से बंबई के बीच समय के साथ काफी बदलाव हुए हैं। वर्सोवा में जहाँ लेखक का घर है, वहाँ लेखक के अनुसार किसी समय में दूर तक जंगल ही जंगल था। पेड़-पौधे थे, पशु-पक्षी थे और भी न जाने कितने जानवर थे। अब तो यहाँ समुद्र के किनारे केवल लम्बे-चौड़े गाँव बस गए हैं। इन गाँव ने न जाने कितने पशु-पक्षियों से उनका घर छीन लिया है। इन पशु-पक्षियों में से कुछ तो शहर को छोड़ कर चले गए हैं और जो नहीं जा सके उन्होंने यहीं कहीं पर अस्थाई घर बना लिए हैं। अस्थाई इसलिए क्योंकि कब कौन उनका घर तोड़े कर चला जाये कोई नहीं जनता। इन में से ही दो कबूतरों ने लेखक के फ्लैट में  एक ऊँचे स्थान पर अपना घोंसला बना रखा है। उनके बच्चे अभी छोटे हैं। उनके पालन-पोषण की जिम्मेवारी उन बड़े कबूतरों की थी। बड़े कबूतर दिन में बहुत बार उन छोटे कबूतरों को खाना खिलाने आते जाते रहते थे। और आए-जाए क्यों न यहाँ उनका भी तो घर था। लेकिन उनके आने-जाने के कारण लेखक और लेखक के परिवार को बहुत परेशानी होती थी। कभी कबूतर किसी चीज़ से टकरा जाते थे और चीज़ों को गिराकर तोड़ देते थे। कभी लेखक की लाइब्रेरी में घुसकर कबीर और मिर्ज़ा ग़ालिब की पुस्तकों को गिरा देते थे।

इस रोज़-रोज़ की परेशानी से तंग आ कर मेरी पत्नी ने उस जगह जहाँ उनका आशियाना था, एक जाली लगा दी है, उनके बच्चों को दूसरी जगह कर दिया है। उनके आने की खिड़की को भी बंद किया जाने लगा है। खिड़की के बाहर अब दोनों कबूतर रात-भर खामोश और उदास बैठे रहते हैं। मगर अब न सोलोमन है जो उनकी जुबान को समझ कर उनका दुःख बाँटे, न मेरी माँ है, जो उनके दुःख में सारी रात नमाजो में काटे –

नदिया सींचे खेत को, तोता कुतरे आम।
सूरज ठेकेदार-सा, सबको बाँटे काम।।

आशियाना – घर
खामोश – चुप-चाप

(यहाँ लेखक समय के साथ आए व्यक्तियों के व्यवहार का वर्णन कर रहा है)

लेखक कहता है कि कबूतरों के बार-बार आने-जाने और चीज़ों को तोड़ने से परेशान हो कर लेखक की पत्नी ने जहाँ कबूतरों का घर था वहाँ जाली लगा दी थी, कबूतरों के बच्चों को भी वहाँ से हटा दिया था। जहाँ से कबूतर आते-जाते थे उस खिड़की को भी बंद किया जाने लगा था। अब दोनों कबूतर खिड़की के बाहर रात-भर चुप-चाप और दुखी बैठे रहते थे। मगर अब न तो सोलोमेन है जो उन कबूतरों की भाषा को समझ कर उनका दुःख दूर करे और न ही लेखक की माँ है जो उन कबूतरों के दुःख को देख कर रात भर प्रार्थना करती रहे। अर्थ यह हुआ कि समय के साथ-साथ व्यक्तियों की भावनाओं में बहुत अंतर आ गया है।

नदिया सींचे खेत को, तोता कुतरे आम।
सूरज ठेकेदार-सा, सबको बाँटे काम।।

इन पंक्तियों के द्वारा लेखक कहना चाहता है कि जिस तरह नदियाँ बिना किसी भेदभाव के सभी खेतों को अपना पानी देती है और तोता जिस तरह से किसी भी आम के बगीचे से आम खाने पहुँच जाता है अर्थात उसे कोई फर्क नहीं पड़ता की आम का बगीचा किस जाति के व्यक्ति ने लगाया है। उसी प्रकार सूरज भी बिना किसी भेदभाव के सभी को जागकर काम करने के लिए प्रेरित करता है। उसी तरह हमें भी नदी और सूरज की तरह दुसरो के हित के कार्य करने चाहिए और तोते की तरह सभी को सामान समझना चाहिए तभी संसार के सभी जीवधारी प्रसन्न और सुखी रह सकते हैं।

Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale Question Answers – प्रश्न अभ्यास

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) दीजिए –
प्रश्न 1 – अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं ?

उत्तर – अरब में लशकर को नूह के नाम से इसलिए याद करते हैं क्योंकि वे हमेशा रोते रहते थे अर्थात दूसरों के दुःख में दुखी रहते थे। नूह को ईश्वर का सन्देश वाहक भी कहा जाता है।

प्रश्न 2 – लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थी और क्यों ?

उत्तर – लेखक की माँ कहती थी कि जब भी सूरज ढले अर्थात शाम के समय पेड़ों से पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए क्योंकि उस समय यदि पत्ते तोड़ोगे तो पेड़ रोते हैं।

प्रश्न 3 – प्रकृति में आए असंतुलन का क्या परिणाम हुआ ?

उत्तर – प्रकृति में आए असंतुलन का बहुत अधिक भयानक परिणाम हुआ, गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, बरसात का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है, भूकम्प, सैलाब, तूफ़ान और रोज कोई न कोई नई बीमारियाँ जन्म ले लेती है और मानव का जीवन बहुत अधिक कठिन हो गया है।

प्रश्न 4 – लेखक की माँ ने पुरे दिन का रोज़ा क्यों रखा ?

उत्तर – बिल्ली ने जब कबूतर के एक अंडे को तोड़ दिया तो लेखक की माँ ने स्टूल पर चढ़ कर दूसरे अंडे को बचाने की कोशिश की। परन्तु इस कोशिश में दूसरा अंडा लेखक की माँ के हाथ से छूट गया और टूट गया। ये सब देख कर कबूतरों का जोड़ा परेशान हो कर इधर-उधर फड़फड़ाने लगा। कबूतरों की आँखों में उनके बच्चों से बिछुड़ने का दुःख देख कर लेखक की माँ की आँखों में आँसू आ गए। इस पाप को खुदा से माफ़ कराने के लिए लेखक की माँ ने पुरे दिन का उपवास रखा।

प्रश्न 5 – लेखक ने ग्वालियर से बम्बई तक किन बदलावों को महसूस किया? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – लेखक कहता है कि ग्वालियर से बंबई के बीच समय के साथ काफी बदलाव हुए हैं। वर्सोवा में जहाँ लेखक का घर है, वहाँ लेखक के अनुसार किसी समय में दूर तक जंगल ही जंगल था। पेड़-पौधे थे, पशु-पक्षी थे और भी न जाने कितने जानवर थे। अब तो यहाँ समुद्र के किनारे केवल लम्बे-चौड़े गाँव बस गए हैं। इन गाँव ने न जाने कितने पशु-पक्षियों से उनका घर छीन लिया है। इन पशु-पक्षियों में से कुछ तो शहर को छोड़ कर चले गए हैं और जो नहीं जा सके उन्होंने यहीं कहीं पर भी अस्थाई घर बना लिए हैं। अस्थाई इसलिए क्योंकि कब कौन उनका घर तोड़े कर चला जाये कोई नहीं जनता।

प्रश्न 6 – ‘डेरा ढलने ‘ से आप क्या समझते हैं?स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘डेरा’ अर्थात अस्थाई घर। अस्थाई इसलिए क्योंकि कब कौन तोड़ कर चला जाये कोई नहीं जनता। बड़ी-बड़ी इम्मारतें बन जाने के कारण कई पक्षी बेघर हो गए और जब उन्हें अपना घोंसला बनाने की जगह नहीं मिली तो उन्होंने इन इमारतों में अपना डेरा डाल लिया।

प्रश्न 7 – शेख अयाज़ के पिता अपनी बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख भोजन छोड़ कर क्यों उठ खड़े हुए?

उत्तर – एक दिन शेख अयाज़ के पिता कुँए से नहाकर लौटे। उनकी माँ ने भोजन परोसा। अभी उनके पिता ने रोटी का पहला टुकड़ा तोड़ा ही था कि उनकी नज़र उनके बाजू पर धीरे-धीरे चलते हुए एक काले च्योंटे पर पड़ी। जैसे ही उन्होंने कीड़े को देखा वे भोजन छोड़ कर खड़े हो गए। उनको खड़ा देख कर शेख अयाज़ा की माँ ने पूछा कि क्या बात है? क्या भोजन अच्छा नहीं लगा? इस पर शेख अयाज़ के पिता ने जवाब दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है। उन्होंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है वे उसी को उसके घर यानि कुँए के पास छोड़ने जा रहें हैं।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में ) दीजिए –

प्रश्न 1 – बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर – जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वैसे-वैसे समुद्र अपनी जगह से पीछे हटने लगा है, लोगों ने पेड़ों को काट कर रास्ते बनाना शुरू कर दिया है। प्रदुषण इतना अधिक फैल रहा है कि उससे परेशान हो कर पंछी बस्तियों को छोड़ कर भाग रहे हैं। बारूद से होने वाली मुसीबतों ने सभी को परेशान कर रखा है। वातावरण में इतना अधिक बदलाव हो गया है कि गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, बरसात का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है, भूकम्प, सैलाब, तूफ़ान और रोज कोई न कोई नई बीमारियाँ न जाने और क्या-क्या ,ये सब मानव द्वारा किये गए प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ का नतीजा है। इन सभी के कारण मानव जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। मानव के जीवन पर इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है।

प्रश्न 2 – लेखक की पत्नी को खिड़की पर जाली क्यों लगानी पड़ी ?

उत्तर – दो कबूतरों ने लेखक के फ्लैट में एक ऊँचे स्थान पर अपना घोंसला बना रखा है। उनके बच्चे अभी छोटे हैं। उनके पालन-पोषण की जिम्मेवारी उन बड़े कबूतरों की थी। बड़े कबूतर दिन में बहुत बार उन छोटे कबूतरों को खाना खिलाने आते जाते रहते थे। लेकिन उनके आने-जाने के कारण लेखक और लेखक के परिवार को बहुत परेशानी होती थी। कभी कबूतर किसी चीज़ से टकरा जाते थे और चीज़ों को गिराकर तोड़ देते थे। कबूतरों के बार-बार आने-जाने और चीज़ों को तोड़ने से परेशान हो कर लेखक की पत्नी ने जहाँ कबूतरों का घर था वहाँ जाली लगा थी, कबूतरों के बच्चों को भी वहाँ से हटा दिया था। जहाँ से कबूतर आते-जाते थे उस खिड़की को भी बंद किया जाने लगा था।

प्रश्न 3 – समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी ? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला ?

उत्तर – कई सालों से बड़े-बड़े मकानों को बनाने वाले बिल्डर मकान बनाने के लिए समुद्र को पीछे धकेल कर उसकी जमीन पर कब्ज़ा कर रहे थे। बेचारा समुद्र लगातार सिकुड़ता जा रहा था। पहले तो समुद्र ने अपनी फैली हुई टांगों को इकठ्ठा किया और सिकुड़ कर बैठ गया। फिर  जगह कम होने के कारण घुटने मोड़ कर बैठ गया। अब भी बिल्डर नहीं माने तो समुद्र खड़ा हो गया…. जब समुद्र के पास खड़े रहने की जगह भी कम पड़ने लगी और समुद्र को गुस्सा आ गया। कहा जाता है कि जो जितना बड़ा होता है उसको गुस्सा उतना ही कम आता है परन्तु जब आता है तो उनके गुस्से को कोई शांत नहीं कर सकता। समुद्र के साथ भी वही हुआ जब समुद्र को गुस्सा आया तो एक रात वह अपनी लहरों के ऊपर दौड़ता हुआ आया और तीन जहाज़ों को ऐसे उठा कर तीन दिशाओं में फेंक दिया जैसे कोई किसी बच्चे की गेंद को उठा कर फेंकता है। एक को वर्ली के समुद्र के किनारे फेंका तो दूसरे को बांद्रा के कार्टर रोड के सामने मुँह के बल गिरा दिया और तीसरे को गेट-वे-ऑफ इंडिया के पास पटक दिया जो अब घूमने आये लोगों का मनोरंजन का साधन बना हुआ है। समुद्र ने तीनों को इस तरह फेंका की कोशिश करने पर भी उन्हें चलने लायक नहीं बनाया जा सका।

प्रश्न 4 -मिट्टी से मिट्टी मिले,
खो के सभी निशान।
किसमें कितना कौन है,
कैसे हो पहचान।।
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – लेखक इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहता है कि उस ईश्वर ने हम सभी प्राणधारियों को एक ही मिट्टी से बनाया है। यदि सभी से प्राण निकाल कर वापिस मिट्टी बना दिया जाए तो किसी का कोई निशान नहीं रहेगा जिससे पहचाना जा सके कि कौन सी मिट्टी किस प्राणी की है। भाव यह हुआ की लेखक कहना चाहता है व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व पर घमण्ड नहीं करना चाहिए क्योंकि यह कोई नहीं जानता की उसमें कितनी मनुष्यता है और कितनी पशुता।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

(1) नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई (मुंबई ) में देखने को मिला था।

उत्तर -प्रकृति एक सीमा तक ही सहन कर सकती है। कहा जाता है कि जो जितना बड़ा होता है उसको गुस्सा उतना ही कम आता है परन्तु जब आता है तो उनके गुस्से को कोई शांत नहीं कर सकता।  प्रकृति को भी जब गुस्सा आता है तो क्या होता है इसका एक नमूना कुछ साल पहले मुंबई में आई सुनामी के रूप में देख ही चुके हैं। ये नमूना इतना डरावना था कि मुंबई के निवासी डर कर अपने-अपने देवी-देवताओं से उस मुसीबत से बचाने के लिए प्रार्थना करने लगे थे।

(2) जो जितना बड़ा होता है उसको गुस्सा उतना ही कम आता है।

उत्तर -कई सालों से बड़े-बड़े मकानों को बनाने वाले बिल्डर मकान बनाने के लिए समुद्र को पीछे धकेल कर उसकी जमीन पर कब्ज़ा कर रहे थे। जब समुद्र के पास खड़े रहने की जगह भी कम पड़ने लगी और समुद्र को गुस्सा आ गया। कहा जाता है कि जो जितना बड़ा होता है उसको गुस्सा उतना ही कम आता है परन्तु जब आता है तो उनके गुस्से को कोई शांत नहीं कर सकता। समुद्र के साथ भी वही हुआ जब समुद्र को गुस्सा आया तो एक रात वह अपनी लहरों के ऊपर दौड़ता हुआ आया और तीन जहाज़ों को ऐसे उठा कर तीन दिशाओं में फेंक दिया जैसे कोई किसी बच्चे की गेंद को उठा कर फेंकता है।

(3) इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिन्दों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़ कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा दाल लिया है।

उत्तर – लेखक कहता है कि ग्वालियर से बंबई के बीच किसी समय में दूर तक जंगल ही जंगल थे। पेड़-पौधे थे, पशु-पक्षी थे और भी न जाने कितने जानवर थे। अब तो यहाँ समुद्र के किनारे केवल लम्बे-चौड़े गाँव बस गए हैं। इन गाँव ने न जाने कितने पशु-पक्षियों से उनका घर छीन लिया है। इन पशु-पक्षियों में से कुछ तो शहर को छोड़ कर चले गए हैं और जो नहीं जा सके उन्होंने यहीं कहीं पर भी अस्थाई घर बना लिए हैं। अस्थाई इसलिए क्योंकि कब कौन उनका घर तोड़े कर चला जाये कोई नहीं जनता।

(4) शेख अयाज़ के पिता बोले,’नहीं यह बात नहीं है। मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुँए पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।’ इन पंक्तियों में छिपी हुई उनकी भावना को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – शेख अयाज़ के पिता बोले,’नहीं यह बात नहीं है। मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुँए पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।’ इन पंक्तियों में शेख अयाज़ के पिता की छिपी हुई भावना यह थी कि वे पशु-पक्षियों की भावना को समझते थे। वे अपना खाना छोड़ कर केवल एक काले च्योंटे को उसके घर कुँए पर छोड़ने चल पड़े। उनका व्यक्तित्व ऐसा था जो किसी को भी तकलीफ नहीं देना चाहते थे।

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 15 अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1.
बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे क्यों धकेल रहे थे?
उत्तर-
बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को इसलिए धकेल रहे थे कि ताकि वे समुद्र के किनारे की जमीन पर कब्ज़ा कर सकें और उस पर बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ीकर लोगों को बसा सकें। ऐसा करके वे पैसा कमाना चाहते थे।

प्रश्न 2.
लेखक का घर किस शहर में था?
उत्तर-
लेखक का घर पहले ग्वालियर में था परंतु बाद में वह मुंबई के वर्सावा में रहने लगा।

प्रश्न 3.
जीवन कैसे घरों में सिमटने लगी है?
उत्तर-
पहले जनसंख्या कम थी। लोगों के हिस्से में जमीन अधिक थी। वे बड़े-बड़े घरों और खुले में रहते थे। घर की तरह ही उनका दिल भी बड़ा हुआ करता था, परंतु जनसंख्या बढ़ने के साथ ही वे छोटे-छोटे घरों में रहने को विवश हो गए।

प्रश्न 4.
कबूतर परेशानी में इधर-उधर क्यों फड़फड़ा रहे थे?
उत्तर-
कबूतर के जोड़े ने रोशनदान में दो अंडे दिए थे। उनमें से एक को बिल्ली ने फोड़ दिया और दूसरा सँभाल कर रखते हुए माँ से फूट गया। अपने अंडे फूटने से दुखी होने से कबूतर फड़फड़ा रहे थे।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं?
उत्तर-
अरब में नूह नाम के एक पैगंबर थे जिनका असली नाम लशकर था। वे अत्यंत दयालु और संवेदनशील थे। एक बार एक कुत्ते को उन्होंने दुत्कार दिया। उस कुत्ते का जवाब सुनकर वे बहुत दुखी हुए और उम्र भर पश्चाताप करते रहे। अपने करुणा भाव के कारण ही वे ‘नूह’ के नाम से याद किए जाते हैं।

प्रश्न 2.
लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं और क्यों?
उत्तर-
लेखक की माँ पशु-पक्षियों के प्रति ही नहीं पेड़-पौधों के प्रति भी संवेदनशील थीं। वे सूरज छिपने के बाद पेड़ों के पत्ते तोड़ने से मना करती थी। उनका मानना था कि ऐसा करने पर पेड़ों को दुख होगा और वे रोते हुए बद्दुआ देते हैं।

प्रश्न 3.
प्रकृति में आए असंतुलन को क्या परिणाम हुआ?
उत्तर-
प्रकृति में आए असंतुलन का दुष्परिणाम बहुत ही भयंकर हुआ; जैसे-

  • विनाशकारी समुद्री तूफ़ाने आने लगे।
  • अत्यधिक गरमी पड़ने लगी।
  • असमय बरसातें होने से जन-धन और फ़सलें क्षतिग्रस्त होने लगीं।
  • आधियाँ और तूफ़ान आने लगीं।
  • नए-नए रोग उत्पन्न हो गए, जिससे पशु-पक्षी असमय मरने लगे।

प्रश्न 4.
लेखक की माँ ने पूरे दिन का रोज़ा क्यों रखा?
उत्तर-
लेखक की माँ धार्मिक विचारों वाली महिला थी। वे मनुष्य से ही नहीं पशु-पक्षियों तक से प्रेम करती थीं। उनके घर की दालान में कबूतर ने दो अंडे दिए थे। उनमें से एक अंडा बिल्ली ने गिराकर फोड़ दिया था। दूसरा अंडा सँभालते समय उनके हाथ से टूट गया। अंडा टूटने का पछतावा करने के लिए उन्होंने पूरे दिन का रोज़ा रखा।

प्रश्न 5.
लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसूस किया? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक ने ग्वालियर से मुंबई तक अनेक बदलाव देखे-

  • उसके देखते-देखते बहुत सारे पेड़ कट गए।
  • नई-नई बस्तियाँ बस गईं।
  • चौड़ी सड़कें बन गईं।
  • पशु-पक्षी शहर छोड़कर भाग गए। जो बच गए उन्होंने जैसे-तैसे यहाँ-वहाँ घोंसला बना लिया।

प्रश्न 6.
डेरा डालने से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
डेरा डालने का आशय है-अपने रहने की व्यवस्था करना। जिस तरह मनुष्य जब कहीं बाहर जाता है तो अपने रहने का ठिकाना बनाता है। इसी प्रकार पक्षी भी रहने और अंडे देने तथा बच्चों की देखभाल के लिए डेरा डालते हैं।

प्रश्न 7.
शेख अयाज़ के पिता अपने बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख भोजन छोड़कर क्यों उठ खड़े हुए?
उत्तर-
शेख अयाज़ के पिता अत्यंत दयालु और सहृदय व्यक्ति थे। एक बार वे कुएँ से स्नान करके लौटे और भोजन करने बैठ गए। अचानक उन्होंने देखा कि एक काला च्योंटा उनकी बाजू पर रेंग रहा है। उन्होंने भोजन वहीं छोड़ दिया और उसे छोड़ने उसके घर (कुएँ के पास) चल पड़े ताकि उस बेघर को उसका घर मिल सके।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
बढ़ती हुई आबादी ने पर्यावरण पर अत्यंत विपरीत प्रभाव डाला। ज्यों-ज्यों आबादी बढ़ी त्यों-त्यों मनुष्य की आवास और भोजन की जरूरत बढ़ती गई। इसके लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की गई ताकि लोगों के लिए घर बनाया जा सके। इसके अलावा सागर के किनारे अतिक्रमण कर नई बस्तियाँ बसाई गईं । इन दोनों ही कार्यों से पर्यावरण असंतुलित हुआ। इससे असमय वर्षा, बाढ़, चक्रवात, भूकंप, सूखा, अत्यधिक गरमी एवं आँधी-तूफ़ान के अलावा तरह-तरह के नए-नए रोग फैलने लगे। इस प्रकार बढ़ती आबादी ने पर्यावरण में जहर भर दिया।

प्रश्न 2.
लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली क्यों लगवानी पड़ी?
उत्तर-
पक्षियों का प्राकृतिक आवास नष्ट होने से पक्षी यहाँ-वहाँ शरण लेने को विवश हुआ। लेखक के फ्लैट के रोशनदान में दो कबूतरों ने अपना डेरा जमा लिया और उसमें अंडे दे दिए उन अंडों से बच्चे निकल आए थे। छोटे बच्चों की देखभाल के लिए कबूतर वहाँ बार-बार आया-जाया करते थे। इस आवाजाही में कई वस्तुएँ गिरकर टूट जाती थीं। इसके अलावा वे लेखक की पुस्तकें और अन्य वस्तुएँ गंदी कर देते थे। कबूतरों से होने वाली परेशानी से बचने के लिए लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली लगवानी पड़ी।

प्रश्न 3.
समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला?
उत्तर-
समुद्र के गुस्से की वजह थी-बिल्डरों की लालच एवं स्वार्थपरता। बिल्डरों ने लालच के कारण सागर के किनारे की भूमि पर बस्तियाँ बसाने के लिए ऊँची-ऊँची इमारतें बनानी शुरू कर दीं। इससे समुद्र का आकार घटता गया और वह सिमटता जा रहा था। मनुष्य के स्वार्थ एवं लालच से समुद्र को गुस्सा आ गया। उसने अपने सीने पर दौड़ती तीन जहाजों को बच्चों की गेंद की भाँति उठाकर फेंक दिया जिससे वे औंधे मुँह गिरकर टूट गए। ये जहाज़ पहले जैसे चलने योग्य न बन सके।

प्रश्न 4.
‘मट्टी से मट्टी मिले,
खो के सभी निशान,
किसमें कितना कौन है,
कैसे हो पहचान’
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि सब प्राणियों की रचना अनेक तरह की मिट्टियों से हुई है, पर ये मिट्टियाँ आपस में मिलकर अपनी स्वाभाविकता रंग-गंध आदि खो चुकी हैं। अब वे सब मिलकर एक हो चुकी हैं। अब किस व्यक्ति में कौन-सी किस्म की मिट्टी कितनी है, इसकी पहचान कैसे की जाए। इसी तरह मनुष्य में भी सद्गुणों और दुर्गुणों का मेल है। किसमें कितना सद्गुण है और कितना दुर्गुण है यह कह पाना कठिन है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई में देखने को मिला था।
उत्तर-
प्रकृति अत्यंत सहनशील और उदार स्वभाववाली है। वह मनुष्य की ज्यादतियों और छेड़छाड़ को एक सीमा तक सहन करती है पर जब पानी सिर के ऊपर हो जाता है तब प्रकृति अपनी विनाशलीला दिखाना शुरू करती है। इस क्रोध में जो भी उसके सामने आता है, वह किसी को नहीं छोड़ती है। प्रकृति ने समुद्री तूफ़ान का रूप धारण कर अपने सीने पर तैरते तीन जहाजों को उठाकर समुद्र से बाहर फेंक दिया।

प्रश्न 2.
जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।
उत्तर-
इतिहास गवाह रहा है कि बड़े लोग प्रायः शांत स्वभाव वाले उदार और महान होते हैं। वे क्रोध से दूर ही रहते हैं। उनकी सहनशीलता भी अधिक होती है परंतु जब उन्हें क्रोध आता है तो यह क्रोध विनाशकारी होता है। यही स्थिति विशालाकार समुद्र की होती है जो पहले तो सहता जाता है, सहता जाता है परंतु क्रोधित होने पर भारी तबाही मचाता है।

प्रश्न 3.
इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा डाल लिया है।
उत्तर-
लेखक देखता है कि दिनों दिन जंगलों की सफ़ाई होती जा रही है। समुद्र के किनारे ऊँचे-ऊँचे भवन बनाए जा रहे हैं। इन स्थानों पर मानवों की बस्ती बन जाने से वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट हुआ है। इस कारण पक्षी एवं जानवर दोनों ही अन्यत्र जाने को विवश होकर शहर से कोसों दूर चले गए हैं। कुछ पक्षी प्राकृतिक आवास के अभाव में इधर-उधर भटक रहे हैं। वे मनुष्य के घरों की दालानों और छज्जों पर घोंसला बनाने को विवश हैं।

प्रश्न 4.
शेख अयाज़ के पिता बोले, ‘नहीं, यह बात नहीं है। मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।’ इन पंक्तियों में छिपी हुई उनकी भावना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
शेख अयाज़ के पिता जीवों के प्रति दया भाव रखते थे। एक बार वे कुएँ से नहा करके वापस आए और खाना खाने बैठ गए। अभी वे पहला कौर उठाए ही थे कि उन्हें अपनी बाँह पर एक च्योंटा दिखाई दिया। वे भोजन छोड़कर उठ गए और च्योंटे को उसके घर (कुएँ के पास) छोड़ने चल पड़े। उन्होंने पत्नी से कहा कि इस बेघर को उसके घर छोड़कर भोजन करूंगा। उनके इस कथन में जीवों के प्रति संवेदनशीलता और दयालुता का भाव छिपा है।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित वाक्यों में कारक चिह्नों को पहचानकर रेखांकित कीजिए और उनके नाम रिक्त स्थानों में लिखिए; जैसे-

उत्तर-

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए-
चींटी, घोड़ा, आवाज, बिल, फ़ौज, रोटी, बिंदु, दीवार, टुकड़ा।
उत्तर-
चींटियाँ, घोड़े, आवाजें, बिलें, फ़ौजें, रोटियाँ, बिंदुओं, दीवारें, टुकड़े।

प्रश्न 3.
ध्यान दीजिए नुक्ता लगाने से शब्द के अर्थ में परिवर्तन हो जाता है। पाठ में दफा’ शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ होता है-बार (गणना संबंधी), कानून संबंधी। यदि इस शब्द में नुक्ता लगा दिया जाए तो शब्द बनेगा ‘दफ़ा’ जिसका अर्थ होता है-दूर करना, हटाना। यहाँ नीचे कुछ नुक्तायुक्त और नुक्तारहित शब्द दिए जा रहे हैं उन्हें ध्यान से देखिए और अर्थगत अंतर को समझिए।
सजा – सज़ा
नाज – नाज़
जरा – ज़रा
तेज – तेज
निम्नलिखित वाक्यों में उचित शब्द भरकर वाक्य पूरे कीजिए-

  1. आजकल ……….. बहुत खराब है। (जमाना/जमाना)
  2. पूरे कमरे को ………… दो। (सजा/सजा)
  3. ………… चीनी तो देना। (जरा/जरा)
  4. माँ दही ………. भूल गई। (जमाना/जमाना)
  5. दोषी को ……….. दी गई। (सजा/सज़ा)
  6. महात्मा के चेहरे पर …………. था। (तेज/तेज़)

उत्तर-

  1. जमाना
  2. सजा
  3. जरा
  4. जमाना
  5. सज़ा
  6. तेज

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
पशु-पक्षी एवं वन्य संरक्षण केंद्रों में जाकर पशु-पक्षियों की सेवा-सुश्रूषा के संबंध में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
अपने आसपास प्रतिवर्ष एक पौधा लगाइए और उसकी समुचित देखभाल कर पर्यावरण में आए असंतुलन को रोकने में अपना योगदान दीजिए।
उत्तर-
अपने जन्मदिन पर पौधे लगाएँ तथा पर्यावरण संतुलन में योगदान दें।

प्रश्न 2.
किसी ऐसी घटना का वर्णन कीजिए जब अपने मनोरंजन के लिए मानव द्वारा पशु-पक्षियों का उपयोग किया गया हो।
उत्तर-
ग्रामीण क्षेत्रों विशेषकर पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में मेले मनोरंजन का उत्तम साधन माने जाते हैं। इस साल मुझे दीपावली की
छुट्टियों में अपने एक सहपाठी के साथ उसके गाँव जाने का अवसर मिला जो महोबा उत्तर प्रदेश में है। इस गाँव में दीपावली के एक दिन पूर्व मेला लगता है, जहाँ लोग दीपावली की खरीददारी करते हैं। इसी मेले में मैंने देखा कि कुछ लोग नर भेड़ों को लड़ा रहे थे। ये भेड़े एक-दूसरे पर उछल-उछल कर सीगों से हमलाकर रहे थे जिससे उनके सिर टकराने से उत्पन्न टक की आवाज़ साफ़ सुनी जा सकती थी। करीब आधे घंटे बाद जब उनमें एक गिर गया तो दूसरे को उसके मालिक ने पकड़ लिया। उसकी जीत हो गई थी। यह मेरे लिए अद्भुत अवसर था जब मैंने मनुष्य को अपने मनोरंजन हेतु नर भेड़ों को लड़ाते देखा।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सुलेमान बादशाह अन्य बादशाहों से किस तरह अलग थे?
उत्तर-
सुलेमान जिन्हें बाइबिल में सोलोमन कहा गया है, वे केवल मानवजाति के ही राजा नहीं थे, बल्कि सारे छोटे-बड़े पशु-पक्षी के भी हाकिम थे। वह इन सबकी भाषा भी जानते थे, जबकि अन्य राजाओं के पास ऐसी संवेदनशीलता और मानवता न होने से सुलेमान अन्य बादशाहों से अलग थे।

प्रश्न 2.
सुलेमान ने चींटियों का भय किस तरह दूर किया?
उत्तर-
सुलेमान के लश्कर के साथ गुज़रते हुए जब चींटियों ने उनके घोड़ों के टापों की आवाजें सुनीं तो वे भयभीत हो गईं। उनका भय दूर करने के लिए सुलेमान ने कहा, “घबराओ नहीं, सुलेमान को खुदा ने सबका रखवाला बनाया है। वह सबके लिए मुहब्बत है। ऐसा कहकर सुलेमान ने चींटियों का भय दूर किया।”

प्रश्न 3.
नूह के लकब जिंदगी भर क्यों रोते रहे?
उत्तर-
नूह के लकब जिंदगी भर इसलिए रोते रहे क्योंकि एक बार उन्होंने जखमी कुत्ते को देखकर दुत्कारते हुए कह दिया, ‘दूर हो जा गंदे कुत्ते !’ दुत्कार सुनकर उस घायल कुत्ते ने उनसे कहा, ‘न मैं अपनी मर्जी से कुत्ता हूँ और न तुम अपनी मर्जी से इनसान। बनाने वाला वही सबका एक है।’ उसकी बात सुनकर वे आजीवन रोते रहे।

प्रश्न 4.
‘महाभारत’ में युधिष्ठिर का एकांत कुत्ते ने किस तरह शांत किया?
उत्तर-
‘महाभारत’ में पांडवों के जीवन का जब अंतिम समय आया तो पाँचों पांडव द्रौपदी समेत हिमालय की ओर चले। उनके साथ एक कुत्ता भी चल रहा था। ज्यों-ज्यों पांडव ऊँचाई की ओर बढ़ते जा रहे थे त्यों-त्यों एक-एक कर पांडव युधिष्ठिर साथ छोड़ते जा रहे थे। अंत में कुत्ता ही था जिसने युधिष्ठिर के अकेलेपन को दूर किया और उनके साथ चलता रहा।

प्रश्न 5.
दुनिया के बारे में लेखक और आज के मनुष्य के विचारों में क्या अंतर है?
उत्तर-
दुनिया के बारे में लेखक का विचार उदारतापूर्ण था। उसका मानना था कि धरती किसी एक की नहीं है। इसमें मानव के साथ-साथ पशु, नदी, पर्वत, समंदर आदि की बराबर हिस्सेदारी है पर आज के मनुष्यों में इतनी आत्मकेंद्रितता और स्वार्थपरता आ गई है कि वे समूची दुनिया पर सिर्फ अपना हक समझ बैठते हैं।

प्रश्न 6.
मानव-जाति ने किस तरह अपनी बुद्धि से दीवारें खड़ी की हैं?
उत्तर-
मानव-जाति ने अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण अपनी बुद्धि का प्रयोग अपने व्यक्तिगत हित के लिए किया है। उसने भेदभाव की नीति अपनाते हुए संसार को देशों में बाँट दिया। उसने स्वयं को सर्वोपरि समझते हुए सारी धरती पर अपना अधिकार करना चाहा। उसने समुद्र से ज़मीन छीनी, जंगलों का सफाया किया और पशु-पक्षियों को बेघर करके प्रकृति में दीवारें खड़ी की।

प्रश्न 7.
बढ़ती आबादी पर्यावरण के लिए हानिकारक सिद्ध हो रही है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ की जाती है। आवास के लिए जमीन चाहिए इसके लिए वनों को काटा जाता है। इससे पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न होता है। इसी प्रकार मुंबई के पास समुद्र के किनारे को ऊँचा बनाकर उस पर बहुमंजिली इमारतें बनाई गईं, जिससे समुद्र को सिमटने पर विवश होना पड़ा और उसका प्राकृतिक सौंदर्य नष्ट हो गया।

प्रश्न 8.
मनुष्य के अत्याचार से क्रोधित प्रकृति किस तरह अपना भयंकर रूप दिखाती है?
उत्तर-
मनुष्य अपनी लालच और स्वार्थ को पूरा करने के लिए वनों का विनाश करता है, नदियों का वेग रोकता है, समुद्र के किनारे पर कब्जा करके उसे पीछे ढकेलता है। पहले तो प्रकृति मनुष्य के अत्याचार को सहती है पर सीमा पार होने पर वह अपना भयंकर रूप अत्यधिक गरमी, बेवक्त की बरसातें, आधियाँ, तूफ़ान, बाढ़ और नए-नए रोगों के रूप में दिखाती है, जिससे जनधन की अपार हानि होती है।

प्रश्न 9.
बिल्डरों द्वारा समुद्र को पीछे ढकेलने से समुद्र को क्या परेशानी हुई ?
उत्तर
बिल्डरों द्वारा समुद्र को पीछे ढकेलने से समुद्र को निम्नलिखित परेशानी हुई-

  • समुद्र का फैला रेतीला किनारा सिमटकर छोटा हो गया।
  • समुद्र को हाथ-पैर फैलाने की जगह न बची। अब उसकी लहरें किनारे तक खेलने नहीं आ सकती थी।
  • समुद्र का प्राकृतिक सौंदर्य नष्ट हो गया।
  • उसके किनारे प्रदूषण बढ़ने लगा।

प्रश्न 10.
लेखक की माँ उसे प्रकृति संबंधी उपदेश क्यों दिया करती थी?
उत्तर-
लेखक की माँ प्रकृति से घनिष्ठ लगाव रखती थीं। वे दयालु स्वभाव की प्रकृति प्रेमी थीं। वे मनुष्य के साथ ही पशु-पक्षी एवं पेड़-पौधों से प्रेम करती थीं तथा मनुष्य के लिए इनकी महत्ता समझती थीं। वे प्रकृति के प्रति सम्मान भाव रखती थी। वे चाहती थी कि लेखक भी प्रकृति के प्रति आदरभाव रखे, पेड़-पौधों की महत्ता समझे, नदी के जल का सम्मान करे। और पशु-पक्षियों से प्रेम करे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक के देखते-देखते वर्सावा में क्या-क्या बदलाव आए?
उत्तर-
लेखक और उसका परिवार ग्वालियर से वर्सावा जाकर बस गया। उस समय वहाँ दूर-दूर तक जंगल था। बहुत सारे पेड़ थे जहाँ परिंदे और जानवर भी रहते थे। वर्सावा में जैसे-जैसे जनसंख्या का दबाव बढ़ता गया वैसे-वैसे उन वनों को काट दिया गया। इससे पशु-पक्षियों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो गया और वे इधर-उधर भागने पर विवश हो गए। वर्सावा में ही समुद्र के किनारे मनुष्य की लंबी-चौड़ी बस्तियाँ बसा दी गईं। इससे समुद्र के किनारे गायब हो गए। उसे पीछे हटने पर विवश होना पड़ा। समुद्र का दूर-दूर तक फैला रेतीला किनारा कहीं गायब हो गया।

प्रश्न 2.
मनुष्य के हस्तक्षेप से गुस्साए समुद्र ने अपना गुस्सा किस तरह प्रकट किया?
उत्तर-
मनुष्य के हस्तक्षेप को पहले तो समुद्र सहता रहा। मनुष्य ने जब उसके किनारे बस्ती बसाकर उसका दूर-दूर तक फैला रेतीला किनारा कब्ज़ाया तो वह शांत रहा पर मनुष्य के लोभ का अंत कहाँ। उसने जब हद कर दिया तो समुद्र को गुस्सा आया। उसने भीषण चक्रवात के रूप में अपना क्रोध प्रकट किया और अपने सीने पर तैरते तीन जहाज़ों को उठाकर बाहर अलग-अलग स्थानों पर फेंक दिया। इनमें से एक वर्ली के समुद्र के किनारे आ गिरा। दूसरा जहाज़ बांद्रा के कार्टर रोड के सामने आ गिरा और तीसरा जहाज़ गेट-वे-ऑफ़ इंडिया पर आ गिरा और इतना टूट-फूट गया कि फिर समुद्र के सीने पर चलने लायक न हो सका। अब यह पर्यटकों को देखने की वस्तु मात्र बनकर रह गया है।

प्रश्न 3.
पशु-पक्षियों के प्रति संवेदनशीलता में लेखक ने अपनी माँ और पत्नी के दृष्टिकोण में क्या अंतर अनुभव किया?
अथवा
लेखक की माँ और पत्नी के दृष्टिकोण में प्रकृति और पशु-पक्षियों के प्रति क्या अंतर दिखाई देता है, अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
लेखक की माँ प्रकृति और पशु-पक्षियों के प्रति संवेदनशील थीं। वे प्रकृति के प्रति आदर भाव रखती थीं। पशु-पक्षियों के प्रति उनका विशेष लगाव था। वे अपने बच्चों को भी पेड़-पौधों, नदियाँ और मुर्गे तक से प्रेम करने की सीख देती थी ताकि उनकी संतान भी ऐसा ही कार्य-व्यवहार करे। लेखक की माँ ने तो एक बार एक कबूतर का अंडा सँभालते समय टूट जाने पर दिन भर रोजा रखा और खुदा से प्रार्थना करती रही कि उसकी यह गलती माफ़ कर दें। लेखक की पत्नी का दृष्टिकोण इससे हटकर था क्योंकि एक बार जब दो कबूतरों ने उसके फ्लैट में दो अंडे दे दिए और उसमें से बच्चे निकल आए तो कबूतरों का आना-जाना बढ़ गया। इससे परेशान होकर लेखक की पत्नी ने उनके आने-जाने वाला रोशनदान बंद कर दिया, इससे कबूतर उदास होकर बाहर बैठे रहे। लेखक की माँ ऐसा कभी न कर पाती।

प्रश्न 4.
‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ नामक पाठ ‘निदा फ़ाज़ली’ द्वारा लिखा गया है। इस पाठ का प्रतिपाद्य है-मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ निरंतर की जा रही छेड़छाड़ की ओर ध्यानाकर्षित कराना, प्रकृति के क्रोध का परिणाम दर्शाना तथा प्रकृति के गुस्से का परिणाम बताते हुए प्रकृति, सभी प्राणियों, पशु-पक्षियों समुद्र पहाड़ तथा पेड़ों के प्रति सम्मान एवं आदर का भाव प्रकट करना। इतना ही नहीं इस धरती पर अन्य जीवों की हिस्सेदारी समझते हुए इसे केवल मनुष्य की ही जागीर न समझना।

लेखक यह बताना चाहता है कि मनुष्य नदी, समुद्र, पहाड़, पेड़-पौधों आदि को अपनी जागीर समझकर उनका मनचाहा उपभोग करता है। इससे प्राकृतिक असंतुलन पैदा होता है। इसके अलावा सभी जीव चाहे मनुष्य हों या कुत्ता उसी एक ईश्वर की रचनाएँ हैं। हमें इनके साथ उदार व्यवहार करना चाहिए।

पूर्व वर्षों के प्रश्नोत्तर

2016
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 1.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 1
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 1a

Question 2.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 2
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 2a

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Question 3.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 3
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 3a

Question 4.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 4
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 4a

Question 5.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 5
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 5a

Question 6.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 6
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 6a

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 7.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 7
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 7a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 7b

2015
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 8.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 8
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 1a

निबंधात्मक प्रश्न

Question 9.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 9
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 9a

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 10.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 10
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 3a

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 11.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 11
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 11a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 11b

Question 12.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 12
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 12a

2014
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 13.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 13
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 1a

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Question 14.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 14
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 3a

Question 15.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 15
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 15a

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 16.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 16
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 16a

Question 17.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 17
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 17a
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 17b

2013
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 18.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 18
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 4a

Question 19.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 19
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 19a

Question 20.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 20
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 20a

Question 21.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 21
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 21a

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 22.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 22
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 22a

Question 23.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 23
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 23a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 23b
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 23c

2012
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 24.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 24
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 3a

Question 25.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 25
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 1a

Question 26.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 26
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 40a

Question 27.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 27
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 27a

Question 28.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 28
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 15a

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Question 29.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 29
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 29a

Question 30.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 30
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 30a
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 30b

Question 31.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 31
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 31a

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 32.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 32
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 32a

Question 33.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 33
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 33a

Question 34.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 34
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 34a

2011
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 35.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 35
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 1a

Question 36.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 36
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 36a

Question 37.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 37
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 15a

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Question 38.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 38
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 38a

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 39.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 39
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 39a

2010
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 40.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 40
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले 15a

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