NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 16 patajhar mein tootee pattiyaan

हिंदी कक्षा 10 – Hindi Class 10

पाठ – 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ – Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ

पतझर में टूटी पत्तियाँ Class 10 Hindi Lesson Summary, Explanation, Question Answers (पतझर में टूटी पत्तियाँ)

पतझर में टूटी पत्तियाँ summary of CBSE Class 10 Hindi Lesson with detailed explanation of the lesson ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary and all the exercises, Question and Answers given below

Author Introduction (लेखक परिचय)

लेखक – रविंद्र केलेकर
जन्म – 7 मार्च 1925 (कोंकण)

Chapter Introduction for पतझर में टूटी पत्तियाँ पाठ प्रवेश

ऐसा माना जाता है कि कम शब्दों में अधिक बात कहना एक कविता का सबसे महत्वपूर्ण गुण होता है। जब कभी इस गुण का प्रयोग कवियों के साथ-साथ लेखक भी करे अर्थात जब कभी कविताओं के साथ-साथ गद्य में भी इस गुण (कम शब्दों में अधिक बात कहने) का प्रयोग हो, तो उस गद्य को पढ़ने वाले को यह मुहावरा याद आ ही जाता है – ‘सार-सार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय’ अर्थात सही और सार्थक (जिनका कोई अर्थ हो)शब्दों का प्रयोग करके और निरर्थक (जिनका कहीं कोई अर्थ न हो) शब्दों का प्रयाग नहीं करना चाहिए।

आसान शब्दों का प्रयोग करना और कम शब्दों में अधिक शब्दों का अर्थ निकलने वाले वाक्यों का प्रयोग करना बहुत कठिन कम है। फिर भी लेखक इस काम को करते आए हैं। सूक्ति कथाएँ, आगम कथाएँ, जातक कथाएँ, पंचतंत्र की कहानियाँ इसी तरह से लिखी गई कथाएँ और कहानियाँ हैं। यही काम प्रस्तुत पाठ के लेखक रविंद्र केलेकर ने भी किया है।
लेखक ने प्रस्तुत पाठ में जो प्रसंग प्रस्तुत किए गए हैं उनमें भी लेखक पढ़ने वालों से उम्मीद कर रहे हैं कि वे उनके द्वारा कहे गए काम शब्दों में अधिक अर्थों को निकाले। ये प्रसंग केवल पढ़ने के ही लिए नहीं हैं ,बल्कि एक जागरूक और सक्रीय नागरिक बनने की प्रेरणा भी देते हैं।
पहले प्रसंग (गिन्नी का सोना) जीवन में अपने लिए सुख-साधन जुटाने वालों से नहीं बल्कि उन लोगो से परिचित करवाता है जो इस संसार को सब के लिए जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं।

दूसरा प्रसंग (झेन की देन) बौद्ध दर्शन में वर्णित ध्यान की उस पद्धति की याद दिलाता है जिसके कारण जापान के लोग आज भी अपनी व्यस्ततम दिन भर के कामों के बीच भी कुछ चैन भरे या सुकून के पल हासिल कर ही लेते हैं।

पतझर में टूटी पत्तियाँ Summary Class 10 Hindi Chapter – पाठ सार

लेखक ने प्रस्तुत पाठ में जो प्रसंग प्रस्तुत किए हैं, उनमें पहले प्रसंग (गिन्नी का सोना) जीवन में अपने लिए सुख-साधन जुटाने वालों से नहीं बल्कि उन लोगो से परिचित करवाता है जो इस संसार को सब के लिए जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं।
लेखक कहते हैं कि शुद्ध सोने में और सोने के सिक्के में बहुत अधिक फर्क होता है, सोने के सिक्के में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया जाता है, जिस कारण अधिक चमक आ जाती है और यह अधिक मज़बूत भी होता है। औरतें अकसर उन्हीं सोने के सिक्कों के गहनें बनवाती हैं। लेखक कहते हैं कि किसी व्यक्ति का जो उच्च चरित्र होता है वह भी शुद्ध सोने की तरह होता है उसमें कोई मिलावट नहीं होती। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने चरित्र में ताँबा अर्थात मिलावटी व्यवहार मिला देते हैं, उन्ही लोगों को सभी लोग व्यावहारिक आदर्शवादी कह कर उनका गुणगान करते हैं। लेखक हम सभी को ये बताना चाहते हैं कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वर्णन कभी भी आदर्शों का नहीं होता, बल्कि आपके व्यवहार का होता है। कुछ लोग कहते हैं कि गाँधी जी भी व्यावहारिक आदर्शवादियों में से एक थे। यदि गाँधी जी अपने आदर्शो को महत्त्व नहीं देते तो पूरा देश उनके साथ हर समय कंधे-से-कन्धा मिला कर खड़ा न होता। जो लोग केवल अपने व्यवहार पर ही ध्यान देते हैं, केवल वैज्ञानिक ढंग से ही सोचते हैं, वे व्यवहारवादी लोग कहे जाते हैं और ये लोग हमेशा चौकाने रहते हैं कि कहीं इनसे कोई ऐसा काम न हो जाए जिसके कारण इनको हानि उठानी पड़े। सबसे महत्पूर्ण बात तो यह है कि खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है। हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ आदर्शवादी लोगो के कारण ही बच पाए हैं।
दूसरा प्रसंग (झेन की देन) बौद्ध दर्शन में वर्णित ध्यान की उस पद्धति की याद दिलाता है जिसके कारण जापान के लोग आज भी अपनी व्यस्ततम दिन भर के कामों के बीच भी कुछ चैन भरे या सुकून के पल हासिल कर ही लेते हैं।
लेखक ने जब अपने जापानी मित्र से वहाँ की सबसे खतरनाक बीमारी के बारे में पूछा तो उसने कहा कि जापान के लोगों को सबसे अधिक मानसिक बीमारी का शिकार होना पड़ता है। लेखक के इस मानसिक बिमारी की वजह पूछने पर लेखक के मित्र ने उत्तर दिया कि उनके जीवन की तेजी औरों से अधिक है। जापान में कोई आराम से नहीं चलता, बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं। कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता, वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। जापान के लोग अमेरिका से प्रतियोगिता में लग गए जिसके कारण वे एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही ख़त्म करने की कोशिश करने लगे। यही कारण है कि जापान के लोगो में मानसिक बिमारी फैल गई है।
लेखक कहते हैं कि एक शाम को उनका जापानी दोस्त उन्हें चा-नो-यू अर्थात जापान के चाय पीने के एक विशेष आयोजन में ले गया। लेखक और उनका मित्र चाय पिने के आयोजन के लिए जहाँ गए थे वह एक छः मंजिल की इमारत थी। उसकी छत पर एक सरकने वाली दीवार थी जिस पर चित्रकारी की गई थी और पत्तों की एक कुटिया बनी हुई थी जिसमें जमीन पर चटाई बिछी हुई थी। उसके बाहर बैडोल-सा मिट्टी का एक पानी भरा हुआ बरतन था। लेखक और उनके मित्र ने उस पानी से हाथ-पाँव धोकर अंदर गए। अंदर चाय देने वाला एक व्यक्ति था जिसे चानीज कहा जाता है। उन्हें देखकर वह खड़ा हो गया। कमर झुका कर उसने उन्हें प्रणाम किया और बैठने की जगह दिखाई। अँगीठी को जलाया और उस पर चाय बनाने वाला बरतन रख दिया। वह साथ वाले कमरे में गया और कुछ बरतन ले कर आया। फिर तौलिए से बरतन साफ किए। ये सारा काम उस व्यक्ति ने बड़े ही सलीके से पूरा किया और उसकी हर एक मुद्रा या काम करने के ढंग से लगता था कि जैसे जयजयवंती नाम के राग की धुन गूँज रही हो। उस जगह का वातावरण इतना अधिक शांत था कि चाय बनाने वाले बरतन में उबलते हुए पानी की आवाज़ें तक सुनाई दे रही थी।
लेखक कहते हैं कि चाय बनाने वाले ने चाय तैयार की और फिर उन प्यालों को लेखक और उनके मित्रों के सामने रख दिया। जापान में इस चाय समारोह की सबसे खास बात शांति होती है। इसलिए वहाँ तीन से ज्यादा व्यक्तियों को नहीं माना जाता। वे करीब डेढ़ घंटे तक प्यालों से चाय को धीरे-धीरे पीते रहे। पहले दस-पंद्रह मिनट तो लेखक को बहुत परेशानी हुई। लेकिन धीरे -धीरे लेखक ने महसूस किया कि उनके दिमाग की रफ़्तार कम होने लेगी है। और कुछ समय बाद तो लगा कि दिमाग बिलकुल बंद ही हो गया है।
लेखक हमें बताना चाहते हैं कि हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। जो समय अभी चल रहा है वही सच है। और यह समय कभी न ख़त्म होने वाला और बहुत अधिक फैला हुआ है। लेखक कहते हैं कि जीना किसे कहते यह उनको चाय समारोह वाले दिन मालूम हुआ। जापानियों को ध्यान लगाने की यह परंपरा विरासत में देन में मिली है।

पतझर में टूटी पत्तियाँ Chapter Explanation पाठ व्याख्या

प्रसंग 1- गिन्नी का सोना

शुद्ध सोना अलग है और गिन्नी सोना अलग। गिन्नी के सोने में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया हुआ होता है, इसलिए वह ज्यादा चमकता है और शुद्ध सोने से मज़बूत भी होता है। औरतें अकसर इसी सोने के गहने बनवा लेती हैं।
फिर भी होता तो वह है गिन्नी का ही सोना।
शुद्ध आदर्श भी शुद्ध सोने के जैसे ही होते हैं। चंद लोग उनमें व्यवहारिकता का थोड़ा-सा ताँबा मिला देते हैं और चलाकर दिखाते हैं। तब हम लोग उन्हें ‘प्रेक्टिकल आइडियलिस्ट’ कहकर उनका बखान करते हैं।

गिन्नी – सिक्का
आदर्श – उच्चतम चरित्र
व्यवहारिकता – व्यावहारिक रूप में होने वाली स्थितियाँ
बखान – वर्णन

(यहाँ लेखक यह बताना चाहते हैं कि किस तरह लोग अपने चरित्र में बनावटी पन लाते हैं)

लेखक कहते हैं कि शुद्ध सोने में और सोने के सिक्के में बहुत फर्क होता है। जो सोने का सिक्का होता है उसमें थोड़ा-सा ताँबा मिलाया जाता है, जिस कारण उसमें शुद्ध सोने से अधिक चमक आ जाती है और यह शुद्ध सोने से ज्यादा अधिक मज़बूत भी होता है। औरतें अकसर उन्हीं सोने के सिक्कों के गहनें बनवाती हैं। चाहे औरतें इस सोने के सिक्के के गहने बनवाती हों परन्तु होता तो यह सोने का सिक्का ही है कोई शुद्ध सोना नहीं।  

लेखक कहते हैं कि किसी व्यक्ति का उच्च चरित्र भी शुद्ध सोने की तरह होता है उसमें कोई मिलावट नहीं होती। उसमें चमक नहीं होती जिस वजह से व्यक्ति शुद्ध चरित्र को शुद्ध सोने की तरह कम प्रयोग में लाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने चरित्र में ताँबा अर्थात मिलावटी व्यवहार मिला देते हैं और लोगो के बीच अपने आप को अच्छा साबित कर देते हैं। उन्ही लोगों को सभी लोग व्यावहारिक आदर्शवादी कह कर उनका गुणगान करते हैं।

ये बात न भूलें कि बखान आदर्शों का नहीं होता, बल्कि व्यावहारिकता का होता है। और जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रेक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यवहारिक सूझबूझ ही आने लगती है।

सोना पीछे रहकर ताँबा ही आगे आता है।
चंद लोग कहते हैं, गाँधी जी ‘प्रेक्टिकल आइडियालिस्टों’ थे। व्यावहारिकता को पहचानते थे। उसकी कीमत जानते थे। इसलिए वे अपने विलक्षण आदर्श चला सके। वरना हवा में ही उड़ते रहते। देश उनके पीछे न जाता।

सूझबूझ – सोचने समझने की शक्ति
विलक्षण – अत्यंत लक्षणों वाला

लेखक हम सभी को ये बताना चाहते हैं कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वर्णन कभी भी आदर्शों का नहीं होता, बल्कि आपके व्यवहार का होता है। और जब किसी के व्यवहार का वर्णन होना शुरू होता है तो जिन्हें व्यावहारिक आदर्शवादी लोग समझते हैं उन आदर्शवादी लोगों के जीवन से आदर्श व्यावहारिक वर्णन के कारण कम होने लगते हैं और उनकी सोचने की शक्ति बढ़ने लगती है। कुछ लोग कहते हैं कि गाँधी जी भी व्यावहारिक आदर्शवादियों में से एक थे। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। वरना वे हवा में ही उड़ते रहते अर्थात उनके पास धन-दौलत, शिक्षा सब कुछ था उन्हें किसी भी चीज़ की आवश्यकता नहीं थी। यदि गाँधी जी अपने आदर्शो को महत्त्व नहीं देते तो पूरा देश उनके साथ हर समय कंधे-से-कन्धा मिला कर खड़ा न होता।

हाँ, पर गाँधी जी कभी आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर उतरने नहीं देते थे। बल्कि व्यवहारिकता को आदर्शों के स्तर पर चढ़ाते थे। वे सोने में ताँबा नहीं बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे।
इसलिए सोना ही हमेशा आगे आता रहता था।
व्यवहारवादी लोग हमेशा सजग रहते हैं। लाभ-हानि का हिसाब लगाकर ही कदम उठाते हैं। वे जीवन में सफल होते हैं, अन्यों से आगे भी जाते हैं पर क्या वे ऊपर चढ़ते हैं। खुद ऊपर चढ़ें और अपने साथ दूसरों को भी ऊपर लें चलें, यही महत्व की बात है। यह काम तो हमेशा आदर्शवादी लोगों ने ही किया है। समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है। व्यवहारवादी लोगों ने तो समाज को गिराया ही है।

सजग – सतर्क, सावधान

हिसाब – लेखा-जोखा
शाश्वत – सदा रहने वाला

(लेखक ने यहाँ व्यवहारवादी लोगों के बारे में वर्णन किया है)

लेखक कहते हैं कि गाँधी जी कभी भी अपने आदर्शों को अपने व्यवहार पर हावी नहीं होने देते थे । बल्कि वे अपने व्यवहार में ही अपने आदर्शों को रखने की कोशिश करते थे। वे किसी भी तरह के आदर्शों में कोई भी व्यावहारिक मिलावट नहीं करते थे बल्कि व्यव्हार में आदर्शों को मिलाते  थे जिससे आदर्श ही सबको दिखे और सब आदर्शों का ही पालन करे और आदर्शों की कीमत बढ़े। जो लोग केवल अपने व्यवहार पर ही ध्यान देते हैं, केवल वैज्ञानिक ढंग से ही सोचते हैं, वे व्यवहारवादी लोग कहे जाते हैं और ये लोग हमेशा चौकन्ने रहते हैं कि कहीं इनसे कोई ऐसा काम न हो जाए जिसके कारण इनको हानि उठानी पड़े। वे अपने जीवन में बहुत सफल होते हैं, दूसरों से आगे भी बढ़ जाते हैं, पर क्या वे लोग सही मायने में आगे बढ़ते हैं या इज़्ज़त हासिल करते हैं ?

सबसे महत्वपूर्ण  बात तो यह है कि खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है। हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ आदर्शवादी लोगो के कारण ही बच पाए हैं। व्यवहारवादी लोग तो केवल अपने आप को आगे लाने में लगे रहते हैं । उनको कोई फर्क नहीं पड़ता अगर समाज को नुक्सान हो रहा हो।

प्रसंग 2 – झेन की देन

जापान में मैंने अपने एक मित्र से पूछा, “यहाँ के लोगों को कौन सी बीमारियाँ अधिक होती हैं ?” “मानसिक”, उसने जवाब दिया,”यहाँ के अस्सी फीसदी लोग मनोरुग्ण हैं।”
“इसकी क्या वजह है ?”
कहने लगे ,”हमारे जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं। ……. अमेरिका से हम प्रतिस्पर्धा करने लगे। एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही पूरा करने की कोशिश करने लगे। वैसे भी दिमाग की रफ़्तार हमेशा तेज़ ही रहती है। उसे ‘स्पीड’ का इंजन लगाने पर वह हजार गुना अधिक रफ्तार से दौड़ने लगता है। फिर एक क्षण ऐसा आता है जब दिमाग का तनाव बढ़ जाता है और पूरा इंजन टूट जाता है। …… यही कारण है जिससे मानसिक रोग यहाँ बढ़ गए हैं। …. “

फीसदी – प्रतिशत

मनोरुग्ण – मानसिक रोग /मानसिक बिमारी
रफ़्तार – तेज़ी
प्रतिस्पर्धा – प्रतियोगिता /मुकाबला
तनाव – द्वेष की स्थिति /टेंशन

लेखक ने जापान के अपने एक मित्र से पूछा कि वहाँ के लोगों को सबसे अधिक कौन सी बीमारियाँ होती है ।  इस पर लेखक के मित्र में जवाब दिया कि जापान के लोगों को सबसे अधिक मानसिक बीमारी का शिकार होना पड़ता है। जापान के अस्सी प्रतिशत लोग मानसिक बिमारी से ग्रस्त हैं। लेखक के इस मानसिक बिमारी के इतना अधिक होने की वजह पूछने पर लेखक के मित्र ने उत्तर दिया कि उनके जीवन की तेजी औरों से अधिक है। जापान में कोई आराम से नहीं चलता ,बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं।

जापान में कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता ,वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। यहाँ तक की जब जापान के लोग कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वे किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से ही बातें करते हैं। जापान के लोग अमेरिका से प्रतियोगिता में लग गए जिसके कारण वे एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही ख़त्म करने की कोशिश करने लगे। वैसे भी दिमाग हमेशा तेज ही रहता है और अगर उसमें स्पीड का इंजन लगा दिया जाए तो उसकी राफ्तार में कई हज़ार गुना तेजी आ सकती है और वह दौड़ने लगता है। फिर एक समय ऐसा भी आता है जब दिमाग थक जाता है और टेंशन में आ कर पूरा इंजन टूट जाता है। यही कारण है कि जापान के लोगो में मानसिक बिमारी इतनी अधिक फैल गई है।

शाम को वह मुझे एक ‘टी-सेरेमनी’ में ले गए। चाय पीने की यह एक विधि है। जापानी में उसे चा-नो-यू कहते हैं।
वह एक छः मंजिली इमारत थी जिसकी छत पर दफ़्ती की दीवारोंवाली और तातामी (चटाई) की ज़मीनवाली एक सुंदर पर्णकुटी थी। बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बर्तन था। उसमें पानी भरा हुआ था। हमने अपने हाथ-पाँव इस पानी से धोए। तौलिए से पोंछे और अंदर गए। अंदर ‘चानीज़’ बैठा था। हमें देखकर वह खड़ा हुआ। कमर झुका कर उसने हमें प्रणाम किया। दो….झो…(आइए, तशरीफ़ लाइए) कहकर स्वागत  किया। बैठने की जगह हमें दिखाई। अँगीठी सुलगाई। उस पर चायदानी रखी। बगल के कमरे में जाकर कुछ बरतन ले आया। तौलिए से बरतन साफ किए। सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों। वहाँ का वातावरण इतना शांत था कि चायदानी के पानी का खदबदाना भी सुनाई दे रहा था।  

टी-सेरेमनी – जापान में चाय पिने का विशेष आयोजन
चा-नो-यू – जापान ने टी-सेरेमनी का नाम
दफ़्ती – लकड़ी की खोखली सरकने वाली दीवार जिस पर चित्रकारी होती है
पर्णकुटी – पत्तों की बनी कुटिया
बेढब-सा – बेडौल-सा

चानीज़ – जापानी विधि में चाय पिलाने वाला
गरिमापूर्ण – सलीके से
भंगिमा – मुद्रा
जयजयवंती – एक राग का नाम
खदबदाना – उबलना  

(यहाँ लेखक जापान की चाय पिने की विशेष विधि का वर्णन कर रहे हैं)

लेखक कहते हैं कि एक शाम को उनका जापानी दोस्त उन्हें जापान के चाय पीने के एक विशेष आयोजन में ले गया। जापान में चाय पिने की इस विधि को चा-नो-यू कहा जाता है। लेखक और उनका मित्र चाय पिने के आयोजन के लिए जहाँ गए थे वह एक छः मंजिल की इमारत थी । उसकी छत पर एक सरकने वाली दीवार थी जिस पर चित्रकारी की गई थी और पत्तों की एक कुटिया बनी हुई थी जिसमें जमीन पर चटाई बिछी हुई थी। उसके बाहर बैडोल-सा मिट्टी का एक बरतन था, जिसमें पानी भरा हुआ था। लेखक और उनके मित्र ने उस पानी  से हाथ-पाँव धोए और तौलिए से हाथ-पाँव पोंछ कर अंदर गए। अंदर चाय देने वाला एक व्यक्ति था जिसे चानीज कहा जाता है। वह लेखक और उनके मित्र को देखकर खड़ा हो गया। कमर झुका कर उसने लेखक और उनके दोस्त को प्रणाम किया।

उसने दो… झो..अर्थात आइए, तशरीफ़ लाइए ऐसा कह कर उनका स्वागत किया। उसने उन्हें बैठने की जगह दिखाई। अँगीठी को जलाया और उस पर चाय बनाने वाला बरतन रख दिया। वह साथ वाले कमरे में गया और कुछ बरतन ले कर आया। फिर तौलिए से बरतन साफ किए। ये सारा काम उस व्यक्ति ने बड़े ही सलीके से पूरा किया और उसकी हर एक मुद्रा या काम करने के ढंग से लगता था कि जैसे जयजयवंती नाम के राग की धुन गूँज रही हो। उस जगह का वातावरण इतना अधिक शांत था कि चाय बनाने वाले बरतन में उबलते हुए पानी की आवाज़ें तक सुनाई दे रही थी।  

चाय तैयार हुई। उसने वह प्यालों में भरी। फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए गए। वहाँ हम तीन मित्र ही थे। इस विधि में शांति मुख्य बात होती है। इसलिए वहाँ तीन से अधिक आदमियों को प्रवेश नहीं दिया जाता। प्याले में दो घूँट से अधिक चाय नहीं थी। हम ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद चाय पीते रहे। करीब डेढ़ घंटे तक चुसकियों का यह सिलसिला चलता रहा। पहले दस-पंद्रह मिनट तो मैं उलझन में पड़ा। फिर देखा दिमाग की रफ़्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ती जा रही है। थोड़ी देर में बिलकुल बंद भी हो गई। मुझे लगा, मानो अनंतकाल में मैं जी रहा हूँ। यहाँ तक की सन्नाटा भी मुझे सुनाई देने लगा।

चुसकी –  होंठों से कोई तरल पदार्थ थोड़ा-थोड़ा तथा धीरे-धीरे करके पीने की क्रिया का भाव
सिलसिला – क्रम
उलझन – असमंजस की स्थिति
अनंतकाल – कभी ख़त्म न होने वाला समय
सन्नाटा – मौन /शांति

(यहाँ लेखक जापान के चाय पिने के समारोह में अपना पहला अनुभव व्यक्त कर रहा है)

लेखक कहते हैं कि चाय बनाने वाले ने चाय तैयार की। उसने चाय को प्यालों में भरा और फिर उन प्यालों को लेखक और उनके मित्रों के सामने रख दिया। वहाँ लेखक और उनके मित्रों के अलावा कोई नहीं था वे केवल तीन ही व्यक्ति थे। जापान में इस चाय समारोह की सबसे खास बात शांति होती है। इसलिए वहाँ तीन से ज्यादा व्यक्तियों को नहीं माना जाता। उन चाय के प्यालों में दो-दो घूँट से ज्यादा चाय नहीं थी। लेखक और उनके मित्र प्यालों को अपने होठों से लगा कर एक-एक बूँद चाय पी रहे थे। लेखक कहते हैं कि वे करीब डेढ़ घंटे तक प्यालों से चाय को धीरे-धीरे पीते रहे। पहले दस-पंद्रह मिनट तो लेखक को बहुत परेशानी हुई।

लेकिन धीरे -धीरे लेखक ने महसूस किया कि उनके दिमाग की रफ़्तार कम होने लेगी है। और कुछ समय बाद तो लगा कि दिमाग बिलकुल बंद ही हो गया है। लेखक को लगा जैसे वह कभी न ख़त्म होने वाले समय में जी रहा है। यहाँ तक की लेखक का मन इतना शांत हो गया था की बाहर की शांति भी शोर लग रही थी।

अकसर हम या तो गुज़रे हुए दिनों की खट्टी-मीठी यादों में उलझे रहते हैं या भविष्य के रंगीन सपने देखते रहते हैं। हम या तो भूतकाल में रहते हैं या भविष्यकाल में। असल में दोनों काल मिथ्या हैं। एक चला गया है, दूसरा आया नहीं है। हमारे सामने जो वर्तमान क्षण है, वही सत्य है। उसी में जीना चाहिए। चाय पीते-पीते उस दिन मेरे दिमाग से भूत-भविष्य दोनों काल उड़ गए थे। केवल वर्तमान क्षण सामने था। और वह अनंतकाल जितना विस्तृत था।
जीना किसे कहते है, उस दिन मालूम हुआ।
झेन परंपरा की यह बड़ी देन मिली है जापानियों को!

मिथ्या – झूठ
विस्तृत – बहुत अधिक फैला हुआ
झेन परंपरा – ध्यान लगाने की परंपरा

लेखक हमें बताना चाहते हैं कि हम लोग या तो बीते हुए दिनों की अच्छी-बुरी यादों में उलझ कर रह जाते हैं या फिर आने वाले समय के बारे में सपने देखने लगते हैं। हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। वो इसलिए क्योंकि एक बीत चूका होता है और दूसरा अभी आया भी नहीं होता। तो बात आती है कि सच क्या है तो लेखक कहते हैं कि जो समय अभी चल रहा है वही सच है। और यह समय कभी न ख़त्म होने वाला और बहुत अधिक फैला हुआ है।
लेखक कहते हैं कि जीना किसे कहते यह उनको चाय समारोह वाले दिन मालूम हुआ। जापानियों को ध्यान लगाने की यह परंपरा विरासत में देन में मिली है।

पतझर में टूटी पत्तियाँ Question Answers प्रश्न अभ्यास

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –
(1) प्रश्न i – शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?

उत्तर – शुद्ध सोने में चमक होती है और आदर्श भी शुद्ध सोने की तरह चमकदार और महत्वपूर्ण मूल्यों से भरा होता है। ताँबे से सोना मजबूत तो होता है परन्तु उसकी शुद्धता समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार व्यवहारिकता के कारण आदर्श समाप्त हो जाते हैं परन्तु यदि सही ढंग से व्यवहारिकता और आदर्शों को मिलाया जाये तो जीवन में बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।

(2) प्रश्न ii – चानीज ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी की?

उत्तर – लेखक और उनके मित्र को देखकर चानीज खड़ा हो गया। कमर झुका कर उसने उन्हें प्रणाम किया और बैठने की जगह दिखाई। अँगीठी को जलाया और उस पर चाय बनाने वाला बरतन रख दिया। वह साथ वाले कमरे में गया और कुछ बरतन ले कर आया। फिर तौलिए से बरतन साफ किए। ये सारा काम चानीज ने बड़े ही सलीके से पूरा किया और उसकी हर एक मुद्रा या काम करने के ढंग से लगता था कि जैसे जयजयवंती नाम के राग की धुन गूँज रही हो।

प्रश्न iii – ‘टी-सेरेमनी’ में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों ?

उत्तर – जापान में ‘टी-सेरेमनी’ समारोह की सबसे खास बात शांति होती है। इसलिए वहाँ तीन से ज्यादा व्यक्तियों को नहीं माना जाता।

प्रश्न iv – चाय पिने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया ?

उत्तर – लेखक कहते हैं कि वे करीब डेढ़ घंटे तक प्यालों से चाय को धीरे-धीरे पीते रहे। पहले दस-पंद्रह मिनट तो लेखक को बहुत परेशानी हुई। लेकिन धीरे -धीरे लेखक ने महसूस किया कि उनके दिमाग की रफ़्तार कम होने लेगी है। और कुछ समय बाद तो लगा कि दिमाग बिलकुल बंद ही हो गया है। लेखक को लगा जैसे वह कभी न ख़त्म होने वाले समय में जी रहा है। यहाँ तक की लेखक का मन इतना शांत हो गया था की बाहर की शांति भी शोर लग रही थी।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50- 60 शब्दों में) लिखिए –
(1) प्रश्न i – गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदहारण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।

उत्तर – गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। गाँधी जी भी व्यावहारिक आदर्शवादियों में से एक थे। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। यदि गाँधी जी अपने आदर्शो को महत्त्व नहीं देते तो पूरा देश उनके साथ हर समय कंधे-से-कन्धा मिला कर खड़ा न होता। यह बात उनके अहिंसात्मक आंदोलन उसे स्पष्ट हो जाती है। वह अकेले चलते थे और लाखों में उनके पीछे हो जाते थे। नमक का कानून तोड़ने के लिए जब उन्होंने जनता का आह्वान किया तो उनके नेतृत्व में हजारों लोग उनके साथ पैदल ही दांडी यात्रा पर निकल पड़े थे । इसी प्रकार से असहयोग आंदोलन के समय भी उनकी एक आवाज़ पर देश के हजारों नौजवान अपनी पढ़ाई छोड़कर उनके नेतृत्व में आंदोलन के रास्ते पर चल पड़े थे।

प्रश्न ii – आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं ? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –  हमारे विचार से – सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम, भाईचारा, त्याग, परोपकार, मीठी वाणी, मानवीयता इत्यादि ये मूल्य शाश्वत हैं। वर्तमान समाज में इन मूल्यों की प्रासंगिकता अर्थात महत्व बहुत अधिक है। जहाँ- जहाँ और जब-जब इन मूल्यों का पालन नहीं किया गया है वहाँ तब-तब समाज का नैतिक पतन हुआ है। सबसे महत्पूर्ण बात तो यह है कि खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है।

प्रश्न iii – ‘शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना ‘,गांधीजी के आदर्श और व्यवहार के सन्दर्भ में यह बात किस तरह झलकती है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – गांधीजी ने जीवन भर सत्य और अहिंसा का पालन किया। वे आदर्शों को ऊंचाई तक ले कर जाते थे अर्थात वे सोने में ताँबा मिलकर उसकी कीमत कम नहीं करते थे, बल्कि ताँबे में सोना मिलकर उसकी कीमत बड़ा देते थे। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। गाँधी जी कभी भी अपने आदर्शों को अपने व्यवहार पर हावी नहीं होने देते थे। बल्कि वे अपने व्यवहार में ही अपने आदर्शों को रखने की कोशिश करते थे। वे किसी भी तरह के आदर्शों में कोई भी व्यावहारिक मिलावट नहीं करते थे बल्कि व्यव्हार में आदर्शों को मिलते थे जिससे आदर्श ही सबको दिखे और सब आदर्शों का ही पालन करे और आदर्शों की कीमत बड़े।

प्रश्न iv – ‘गिरगिट’ कहानी में अपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमेसे जीवन में किसका महत्त्व है ?

उत्तर – ‘गिरगिट’ कहानी में स्वार्थी इंस्पेक्टर समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल बदलता है। वह अवसर के साथ-साथ जहाँ उसका लाभ हो रहा हो वहाँ उसी के अनुसार अपना व्यवहार बदलता है। ‘गिन्नी का सोना’ कहानी में इस बात पर बल दिया गया है कि आदर्श शुद्ध सोने के समान हैं। उनमे व्यवहारिकता का गुण मिलाकर उन्हें और भी अधिक मजबूत किया जा सकता है। समाज में देखा गया है कि व्यवहारवादी लोग आदर्शवादी लोगो से बहुत आगे तो बढ़ जाते हैं परन्तु वे अपने जीवन के नैतिक मूल्यों को पीछे छोड़ देते हैं और स्वार्थी हो जाते हैं। सबसे महत्पूर्ण बात तो यह है कि खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है। हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ आदर्शवादी लोगो के कारण ही बच पाए हैं। व्यवहारवादी लोग तो केवल अपने आप को आगे लाने में लगे रहते हैं उनको कोई फर्क नहीं पड़ता अगर समाज को नुक्सान हो रहा हो।

(2) प्रश्न vi – लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए ?आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर – लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताते हुए कहा कि वहाँ जापान में कोई आराम से नहीं चलता, बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं।  कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता, वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। यहाँ तक की जब जापान के लोग कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वे किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से ही बातें करते हैं। जापान के लोग अमेरिका से प्रतियोगिता में लग गए जिसके कारण वे एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही ख़त्म करने की कोशिश करने लगे। ऐसा करने के कारण जब दिमाग थक जाता है और टेंशन में आ कर पूरा इंजन टूट जाता है। यही कारण है कि जापान के लोगो में मानसिक बिमारी बहुत अधिक फैल गई है। हम इन कारणों से पूरी तरह सहमत हैं।

प्रश्न vii – लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा?  स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। वो इसलिए क्योंकि एक बीत चूका होता है और दूसरा अभी आया भी नहीं होता। तो बात आती है कि सच क्या है तो इस बात पर लेखक कहते हैं कि जो समय अभी चल रहा है वही सच है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –
(1) (i) समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।

उत्तर – हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ आदर्शवादी लोगो के कारण ही बच पाए हैं। खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है। व्यवहारवादी लोग तो केवल अपने आप को आगे लाने में लगे रहते हैं उनको कोई फर्क नहीं पड़ता अगर समाज को नुक्सान हो रहा हो।

(ii) जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रेक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यवहारिक सूझबूझ ही आने लगती है।

उत्तर – जब किसी के व्यवहार का वर्णन होना शुरू होता है तो जिन्हें व्यावहारिक आदर्शवादी लोग समझते हैं उन व्यावहारिक आदर्शवादी लोगों के जीवन से आदर्श व्यावहारिक वर्णन के कारण कम होने लगते हैं क्योंकि वर्णन कभी भी आदर्शों का नहीं होता, बल्कि आपके व्यवहार का होता है। और आदर्शों के कम होते ही सोचने की शक्ति बढ़ने लगती है।

(2) (iii) जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।

उत्तर -जापान के लोगों के जीवन की तेजी औरों से अधिक है। जापान में कोई आराम से नहीं चलता, बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं। जापान में कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता, वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। यहाँ तक की जब जापान के लोग कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वे किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से ही बातें करते हैं।

(iv) सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों।

उत्तर – जापान में चाय बनाने वाले को चानीज कहते हैं और उसने लेखक और उनके मित्रों के स्वागत से ले कर चाय परोसने तक का सारा काम इतने ही सलीके से पूरा किया और उसकी हर एक मुद्रा या काम करने के ढंग से लगता था कि जैसे जयजयवंती नाम के राग की धुन गूँज रही हो। उस जगह का वातावरण इतना अधिक शांत था कि चाय बनाने वाले बरतन में उबलते हुए पानी की आवाज़ें तक सुनाई दे रही थी।  

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1.
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?
उत्तर-
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग होता है, क्योंकि गिन्नी के सोने में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया जाता है इसलिए | वह ज्यादा चमकता है और शुद्ध सोने से मज़बूत भी होता है। शुद्ध सोने में किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं होती।

प्रश्न 2.
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं?
उत्तर-
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट उन्हें कहते हैं जो आदर्शों को व्यवहारिकता के साथ प्रस्तुत करते हैं। इनका समाज पर गलत प्रभाव पड़ता है क्योंकि ये कई बार आदर्शों से पूरी तरह हट जाते हैं और केवल अपने हानि-लाभ के बारे में सोचते हैं। ऐसे में समाज का स्तर गिर जाता है।

प्रश्न 3.
पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है?
उत्तर-
पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श वे हैं, जिनमें व्यावहारिकता का कोई स्थान न हो। केवल शुद्ध आदर्शों को महत्त्व दिया जाए। शुद्ध सोने में ताँबे का मिश्रण व्यावहारिकता है, तो इसके विपरीत शुद्ध सोना शुद्ध आदर्श है।

प्रश्न 4.
लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर-
दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने से वह दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है। जापान के लोग पूर्ण रूप से प्रतिस्पर्धा में हैं, वे किसी भी तरीके से उन्नति करके अमेरिका से आगे निकलना चाहते हैं। इसलिए उनका मस्तैिष्क सदा तनावग्रस्त रहता है। इस कारण वे मानसिक रोगों के शिकार होते हैं। लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगाने की बात इसलिए कही क्योंकि वे तीव्र गति से प्रगति करना चाहते हैं। महीने के काम को एक दिन में पूरा करना चाहते हैं इसलिए उनका दिमाग भी तेज़ रफ्तार से स्पीड इंजन की भाँति सोचता है।

प्रश्न 5.
जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर-
जापानी में चाय पीने की विधि को चा-नो-यू कहते हैं।

प्रश्न 6.
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?
उत्तर-
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, वह स्थान पर्णकुटी जैसा सजा होता है। वहाँ बहुत शांति होती है। प्राकृतिक ढंग से सजे हुए इस छोटे से स्थान में केवल तीन लोग बैठकर चाय पी सकते हैं। यहाँ अत्यधिक शांति का वातावरण होता है।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर-
यह स्पष्ट है कि जीवन में आदर्शवादिता का ही अधिक महत्त्व है। अगर व्यावहारिकता को भी आदर्शों के साथ मिला दिया जाए, तो व्यावहारिकता की सार्थकता है। समाज के पास जो आदर्श रूपी शाश्वत मूल्य हैं, वे आदर्शवादी लोगों की ही देन हैं। व्यवहारवादी तो हमेशा लाभ-हानि की दृष्टि से ही हर कार्य करते हैं। जीवन में आदर्श के साथ व्यावहारिकता भी आवश्यक है, क्योंकि व्यावहारिकता के समावेश से आदर्श सुंदर व मजबूत हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?
उत्तर-
चाजीन ने टी-सेरेमनी से जुड़ी सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से की। यह सेरेमनी एक पर्णकुटी में पूर्ण हुई। चाजीन द्वारा अतिथियों का उठकर स्वागत करना आराम से अँगीठी सुलगाना, चायदानी रखना, दूसरे कमरे से चाय के बर्तन लाना, उन्हें तौलिए से पोंछना व चाय को बर्तनों में डालने आदि की सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग अर्थात् बड़े ही आराम से, अच्छे व सहज ढंग से की।

प्रश्न 3.
‘टी-सेरेमनी में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?
उत्तर-
‘टी-सेरेमनी’ में केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता है। ऐसा शांति बनाए रखने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 4.
चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?
उत्तर-
चाय पीने के बाद लेखक ने महसूस किया कि जैसे उसके दिमाग की गति मंद हो गई हो। धीरे-धीरे उसका दिमाग चलना बंद हो गया हो उसे सन्नाटे की आवाजें भी सुनाई देने लगीं। उसे लगा कि मानो वह अनंतकाल से जी रहा है। वह भूत और भविष्य दोनों का चिंतन न करके वर्तमान में जी रहा हो। उसे वह पल सुखद लगने लगे।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
गांधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
वास्तव में गांधी जी के नेतृत्व में अद्भुत क्षमता थी। वे व्यावहारिकता को पहचानते थे, उसकी कीमत पहचानते थे, और उसकी कीमत जानते थे। वे कभी भी आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर उतरने नहीं देते थे, बल्कि व्यावहारिकता को आदर्शों पर चलाते थे। वे सोने में ताँबा नहीं, बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, असहयोग आंदोलन व दांडी मार्च जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया तथा सत्य और अहिंसा जैसे शाश्वत मूल्य समाज को दिए। भारतीयों ने गांधी जी के नेतृत्व से आश्वस्त होकर उन्हें पूर्ण सहयोग दिया। इसी अद्भुत क्षमता के कारण ही गांधी जी देश को आज़ाद करवाने में सफल हुए थे।

प्रश्न 2.
आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
आज व्यावहारिकता का जो स्तर है, उसमें आदर्शों का पालन नितांत आवश्यक है। व्यवहार और आदर्श दोनों का संतुलन व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है। ‘कथनी और करनी’ के अंतर ने समाज को आदर्श से हटाकर स्वार्थ और लालच की ओर धकेल दिया है। सत्य, अहिंसा, परोपकार जैसे मूल्य शाश्वत मूल्य हैं। शाश्वत मूल्य वे होते हैं, जो पौराणिक समय से चले आ रहे हों, वर्तमान में भी जो महत्त्वपूर्ण हों तथा भविष्य में भी जो उपयोगी हों। ये प्रत्येक काल में समान रहे। युग, स्थान तथा साल का इन पर कोई प्रभाव न पड़े। वर्तमान समय में भी इन शाश्वत मूल्यों की प्रासंगिकता बनी हुई है। सत्य और अहिंसा के बिना राष्ट्र का कल्याण नहीं हो सकता। शांतिपूर्ण जीवन बिताने के लिए परोपकार, त्याग, एकता, भाईचारा तथा देश-प्रेम की भावना का होना अत्यंत आवश्यक है। ये शाश्वत मूल्य युगों-युगों तक कायम रहेंगे।

प्रश्न 3.
अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब

  1. शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
  2. शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।

उत्तर-
इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी अपने अनुभव के आधार पर स्वयं लिखें।

प्रश्न 4.
शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधी जी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
शुद्ध सोना आदर्शों का प्रतीक है और ताँबा व्यावहारिकता का प्रतीक है। गाँधी जी व्यावहारिकता को ऊँचा स्तर देकर आदर्शों के स्तर तक लेकर जाते थे अर्थात् ताँबे में सोना मिलाते थे। वे नीचे से ऊपर उठाने का प्रयास करते थे न कि ऊपर से नीचे गिराने का। इसलिए कई लोगों ने उन्हें प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ भी कहा । वास्तव में वे व्यावहारिकता से परिचित थे, लोगों की भावनाओं को पहचानते थे इसलिए वे अपने विलक्षण आदर्श चला सके और पूरे देश को अपने पीछे चलाने में कामयाब रहे।

प्रश्न 5.
‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्त्व है?
उत्तर-
‘गिन्नी को सोना’ पाठ के आधार पर यह स्पष्ट है कि जीवन में आदर्शवादिता का ही अधिक महत्त्व है। अगर व्यावहारिकता को भी आदर्शों के साथ मिला दिया जाए, तो व्यावहारिकता की सार्थकता है। समाज के पास जो आदर्श रूपी शाश्वत मूल्य हैं, वे आदर्शवादी लोगों की ही देन हैं। व्यवहारवादी तो हमेशा लाभ-हानि की दृष्टि से ही हर कार्य करते हैं।

प्रश्न 6.
लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर-
लेखक के मित्र ने मानसिक रोग का कारण बताया कि जापानियों ने अमरीका की आर्थिक गति से प्रतिस्पर्धा करने के कारण अपनी दैनिक दिनचर्या की गति बढ़ा दी । यहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। वे एक महीने का काम एक दिन में करने का प्रयास करते हैं, इस कारण वे शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार रहने लगे हैं। लेखक के ये विचार सत्य हैं क्योंकि शरीर और मन मशीन की तरह कार्य नहीं कर सकते और यदि उन्हें ऐसा करने के लिए विवश किया गया तो उनकी मानसिक संतुलन बिगड़ जाना अवश्यंभावी है।

प्रश्न 7.
लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इसका आशय है कि लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है। वर्तमान में जीना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि ऐसा करने से स्वास्थ्य ठीक रहता है और जीवन में उन्नति होती है। यदि हम भूतकाल के लिए पछताते रहेंगे या भविष्य की योजनाएँ ही बनाते रहेंगे, तो दोनों बेमानी या निरर्थक हो जाएँगे। हम भूतकाल से शिक्षा लेकर तथा भविष्य की योजनाओं को वर्तमान में ही परिश्रम करके कार्यान्वित कर सकते हैं। भगवान कृष्ण ने ‘गीता’ में भी वर्तमान में ही जीने का संदेश दिया है ताकि मनुष्य तनाव रहित मुक्त रहकर स्वस्थ तथा खुशहाल जीवन बिता सके।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
उतर-
इसका आशय है कि समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है, तो वास्तव में यह धरोहर आदर्शवादी लोगों की ही दी हुई है। जैसे-गांधी जी का अहिंसा और सत्याग्रह का संदेश, राजा हरीशचंद्र की सत्यवादिता तथा भगतसिंह की शहादत आदि अनेक हमारे प्रेरणा स्रोत हैं। हम इनके दिखाए रास्ते पर चलते हैं और इनके गुणों को आचरण में लाते हैं।

प्रश्न 2.
जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी त्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
उतर-
जब आदर्श और व्यवहार में से लोग व्यावहारिकता को प्रमुखता देने लगते हैं और आदर्शों को भूल जाते हैं तब आदर्शों पर व्यावहारिकता हावी होने लगती है। “प्रैक्टिकल आइडियालिस्टक” लोगों के जीवन में स्वार्थ व अपनी लाभ-हानि की भावना उजागर हो जाती है। ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसमें आदर्श एवं व्यवहार का संतुलन होता है लेकिन यदि आज के समाज को ध्यान में रखे तो इस शब्द में व्यावहारिकता को इतना महत्त्व दे दिया जाता है कि उसकी आदर्शवादी विचारधारा अदृश्य होकर केवल व्यावहारिकता के रूप में ही दिखाई देने लगती है। आदर्श व्यवहार के उस स्तर पर जाकर अपनी गुणवत्ता खो देता है और धीरे-धीरे आदर्श मूल व्यवहार के हाथों समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 3.
हमारे जीका की रफ्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
उतर-
जापान के लोगों के जीवन की गति बहुत अधिक बढ़ गई है इसलिए वहाँ लोग चलते नहीं, बल्कि दौड़ते हैं। कोई बोलता नहीं है, बल्कि जापानी लोग बकते हैं और जब ये अकेले होते हैं, तो स्वयं से ही बड़बड़ाने लगते हैं अर्थात् स्वयं से ही बातें करते रहते हैं।

प्रश्न 4.
अभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूंज रहे हों।
उतर-
लेखक जब अपने मित्रों के साथ जापान की ‘टी-सेरेमनी में गया तो चाजीन ने झुककर उनका स्वागत किया। लेखक को वहाँ का वातावरण बहुत शांतिमय प्रतीत होता है। लेखक देखता है कि वहाँ की सभी क्रियाएँ अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से की गईं। चाजीन द्वारा लेखक और उसके मित्र का स्वागत करना, अँगीठी जलाना, चायदानी रखना, बर्तन लगाना, उन्हें तौलिए से पोंछना, चाय डालना आदि सभी क्रियाएँ मन को भाने वाली थीं। यह देखकर लेखक भाव-विभोर हो गया। वहाँ की गरिमा देखकर लगता था कि जयजयवंती राग का सुर गूंज रहा हो।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-
व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत
उतर-
शब्द – वाक्य प्रयोग
व्यावहारिकता – सिद्धांत और व्यावहारिकता के मेल से व्यक्ति का व्यवहार अच्छा बन जाता है।
आदर्श – गांधी जी अपने आदर्श बनाए रखते थे।
सूझबूझ – सूझबूझ से काम करने पर मुश्किल आसान हो जाती है।
विलक्षण – सुभाषचंद्र बोस विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।
शाश्वत – प्रकृति परिवर्तनशील है, यह शाश्वत नियम है।

प्रश्न 2.
लाभ-हानि’ का विग्रह इस प्रकार होगा-लाभ और हानि
यहाँ द्वंद्व समास है जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों के बीच योजक शब्द का लोप करने के लिए योजक चिह्न लगाया जाता है। नीचे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए-

  1. माता-पिता = ……..
  2. पाप-पुण्य = …….
  3. सुख-दुख = ………
  4. रात-दिन = ……….
  5. अन्न-जल = ……….
  6. घर-बाहर = ………..
  7. देश-विदेश = ………..

उत्तर-

  1. माता-पिता = माता और पिता
  2. पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
  3. सुख-दुख = सुख और दुख
  4. रात-दिन = रात और दिन
  5. अन्न-जल = अन्न और जल
  6. घर-बाहर = घर और बाहर
  7. देश-विदेश = देश और विदेश

प्रश्न 3.
नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए-

  1. सफल = ………
  2. विलक्षण = ………….
  3. व्यावहारिक = …………………
  4. सजग = ………..
  5. आदर्शवादी = ……….
  6. शुद्ध = ………….

उत्तर-

  1. सफल = सफलता
  2. विलक्षण = विलक्षणता
  3. व्यावहारिक = व्यावहारिकता
  4. सजग = सजगता
  5. आदर्शवादी = आदर्शवादिता
  6. शुद्ध = शुद्धता

प्रश्न 4.
नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए-
(क) शुद्ध सोना अलग है।
(ख) बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।

ऊपर दिए गए वाक्यों में सोना” का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में ‘सोना” का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दूसरे वाक्य में ‘सोना’ को अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भो में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
उत्तर, कर, अंक, नग
उत्तर-
उत्तर- सड़क की उत्तर दिशा में डाकखाना है।
मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं मालूम है।
कर – हमें आय कर चुका कर देश की प्रगति में योगदान देना चाहिए।
अध्यापक को दखते ही मैंने कर बद्ध प्रणाम किया।
अंक – माँ ने सोते बच्चे को अंक में उठा लिया।
एक अंक की कुल 4 संख्याएँ हैं।
नग – हिमालय को नग राज कहा जाता है।
उसके घर में कीमती नग जड़ा है।

प्रश्न 5.
नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए-
(क) 1. अँगीठी सुलगायी।
2. उस पर चायदानी रखी।
(ख) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
2. तौलिये से बरतन साफ़ किए।
उत्तर-
(क) अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया और तौलिये से बरतन साफ़ किए।

प्रश्न 6.
नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए-
(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।
2. जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।
2. उसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।
उत्तर-
(क) चाय पीने की यह एक विधि है जिसे जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) उस बर्तन में पानी भरा था जो बाहर बेढब-सा मिट्टी का बना था।
(ग) जब चाय तैयार हुई तब वह प्यालों में भर कर हमारे सामने रखी गई।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
गांधी जी के आदर्शों पर आधारित पुस्तकें पढ़िए; जैसे- महात्मा गांधी द्वारा रचित ‘सत्य के प्रयोग’ और गिरिराज किशोर द्वारा रचित उपन्यास ‘गिरमिटिया’।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
पाठ में वर्णित ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
‘टी-सेरेमनी’ का शब्द चित्र- एक छह मंजिली इमारत की छत पर झोपड़ीनुमा कमरा है, जिसकी दीवारें दफ़्ती की बनी है। फ़र्श पर चटाई बिछी है। वातावरण अत्यंत शांतिपूर्ण है। बाहर ही एक बड़े से बेडौल मिट्टी के बरतन में पानी रखा है। लोग यहाँ हाथ-पाँव धोकर अंदर जाते हैं। अंदर बैठा चाजीन झुककर सलाम करता है। बैठने की जगह की ओर इशारा करता है और चाय बनाने के लिए अँगीठी जलाता है। उसके बर्तन अत्यंत साफ़-सुथरे और सुंदर हैं। वातावरण इतना शांत है कि चायदानी में उबलते पानी की आवाज साफ़ सुनाई दे रही है। वह बिना किसी जल्दबाजी के चाय बनाता है। वह कप में दो-तीन घूट भर ही चाय देता है जिसे लोग धीरे-धीरे चुस्कियाँ लेकर एक डेढ़ घंटे में पीते हैं।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
भारत के नक्शे पर वे स्थान अंकित कीजिए जहाँ चाय की पैदावार होती है। इन स्थानों से संबंधित भौगोलिक स्थितियों और अलग-अलग जगह की चाय की क्या विशेषताएँ हैं, इनका पता लगाइए और परियोजना पुस्तिका में लिखिए।
उत्तर-
मानचित्र

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
शुद्ध सोने का उपयोग कम किया जाता है, क्यों?
उत्तर-
शुद्ध सोना मिलावट रहित होता है। इसमें किसी अन्य धातु की मिलावट नहीं होती है। यह नरम लचीला तथा कम कठोर | होता है। इसमें चमक भी कम होती है। इसकी शुद्धता 24 कैरेट होती है तथा इससे आभूषण नहीं बनाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
गिन्नी के सोने का अधिक उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर-
गिन्नी का सोना शुद्ध सोने से अलग होता है। इसमें कुछ अंश तक ताँबे की मिलावट होती है जिससे यह अधिक चमकदार और मज़बूत बन जाता है। इसकी शुद्धता 22 कैरेट होती है। इसका उपयोग आभूषण बनवाने के लिए होता है।

प्रश्न 3.
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ किन्हें कहा गया है?
उत्तर-
प्रैक्टिकल आइडियालस्टि वे हैं, जो अपने आदर्शों में व्यावहारिकता रूपी ताँबे का मेल करते हैं और चलाकर दिखाते हैं। वे आदर्श और व्यावहारिकता का समन्वय करके चलते हैं।

प्रश्न 4.
गांधी जी प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
गांधी जी भली-भाँति जानते थे कि शुद्ध आदर्शों को आचरण में नहीं लगाया जा सकता है फिर भी उनकी दृष्टि आदर्श से हटी नहीं। उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता किए बिना व्यावहारिक आदर्शवाद को अपनाया तथा मर्यादित एवं श्रेष्ठ व्यवहार करते हुए जीवन बिताया।

प्रश्न 5.
व्यवहारवादी लोगों की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर-
व्यवहारवादी लोग अपनी उन्नति और अपने लाभ-हानि को अधिक महत्त्व देते हैं। वे आदर्शों और मानवीय मूल्यों को महत्त्व नहीं देते हैं। यही नहीं वे समाज के अन्य लोगों की उन्नति या कल्याण की चिंता नहीं करते हैं। उनका व्यवहार लाभ-हानि की गणना से प्रभावित रहता है।

प्रश्न 6.
समाज के उत्थान में आदर्शवादियों का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
हर समाज के कुछ शाश्वत मूल्य होते हैं। इनमें सत्य, त्याग, प्रेम, सहभागिता परोपकार आदि प्रमुख हैं। आदर्शवादी लोग ही अपने व्यवहार द्वारा इन मूल्यों को बनाए रखते हैं और आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित कर जाते हैं जिससे समाज में ये मूल्य बने रहते हैं।

प्रश्न 7.
‘व्यवहारवाद’ समाज के लिए किस प्रकार हानिकारी है?
उत्तर-
‘व्यवहारवाद’ अर्थात् ‘लाभ-हानि’ की गणना करके किया गया व्यवहार। इसे अवसरवादिता भी कहा जा सकता है। मनुष्य जब अपने लाभ, उन्नति और भलाई के लिए आदर्शों को त्याग दे तब मानवीय मूल्यों का पतन हो जाता है। ऐसा व्यवहारवाद समाज को पतनोन्मुख बनाता है।

प्रश्न 8.
लेखक के मित्र के अनुसार जापानी किस रोग से पीड़ित हैं और क्यों?
उत्तर-
लेखक के मित्र के अनुसार जापानी मानसिक रुग्णता से पीड़ित हैं। इसका कारण उनकी असीमित आकांक्षाएँ, उनको पूरा करने के लिए किया गया भागम-भाग भरा प्रयास, महीने का काम एक दिन में करने की चेष्टा, अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र से प्रतिस्पर्धा आदि है।

प्रश्न 9.
‘टी-सेरेमनी’ की चाय का लेखक पर क्या असर हुआ?
उत्तर-
‘टी-सेरेमनी’ में चाय पीते समय लेखक पहले दस-पंद्रह मिनट उलझन में पड़ा। फिर उसके दिमाग की रफ्तार धीमी होने लगी। जो कुछ देर में बंद-सी हो गई। अब उसे सन्नाटा भी सुनाई दे रहा था। उसे लगने लगा कि वह अनंतकाल में जी रहा है।

प्रश्न 10.
‘जीना इसी का नाम है’ लेखक ने ऐसा किस स्थिति को कहा है?
उत्तर-
‘जीना इसी का नाम है’ लेखक ने ऐसा उस स्थिति को कहा है जब वह भूतकाल और भविष्य दोनों को मिथ्या मानकर उन्हें भूल बैठा। उसके सामने जो वर्तमान था उसी को उसने सच मान लिया था। टी-सेरेमनी में चाय पीते-पीते उसके दिमाग से दोनों काले उड़ गए थे। वह अनंतकाल जितने विस्तृत वर्तमान में जी रहा था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत में भी लोगों की जिंदगी की गतिशीलता में खूब वृद्धि हुई है। इसके कारण और परिणाम का उल्लेख ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर कीजिए।
उत्तर-
अत्यधिक सुख-सुविधाएँ पाने की लालसा, भौतिकवादी सोच और विकसित बनने की चाहत ने भारतीयों की जिंदगी की गतिशीलता में वृधि की है। भारत विकास के पथ पर अग्रसर है। गाँव हो या महानगर, प्रगति के लिए भागते दिख रहे हैं। विकसित देशों की भाँति जीवन शैली अपनाने के लिए लोगों की जिंदगी में भागमभाग मची है। लोगों के पास अपनों के लिए भी समय नहीं बचा है। यहाँ के लोगों की स्थिति भी जापानियों जैसी हो रही है जो चलने की जगह दौड़ रहे हैं, बोलने की जगह बक रहे हैं और इससे भी दो कदम आगे बढ़कर मनोरोगी होने लगे हैं।

प्रश्न 2.
‘झेन की देन’ पाठ से आपको क्या संदेश मिलता है?
उत्तर-
‘झेन की देन’ पाठ हमें अत्यधिक व्यस्त जीवनशैली और उसके दुष्परिणामों से अवगत कराता है। पाठ में जापानियों की व्यस्त दिनचर्या से उत्पन्न मनोरोग की चर्चा करते हुए वहाँ की ‘टी-सेरेमनी’ के माध्यम से मानसिक तनाव से मुक्त होने का संकेत करते हुए यह संदेश दिया है कि अधिक तनाव मनुष्य को पागल बना देता है। इससे बचने का उपाय है मन को शांत रखना। बीते दिनों और भविष्य की कल्पनाओं को भूलकर वर्तमान की वास्तविकता में जीना और वर्तमान का भरपूर आनंद लेना। इसके मन से चिंता, तनाव और अधिक काम की बोझिलता हटाना आवश्यक है ताकि शांति एवं चैन से जीवन कटे।

पूर्व वर्षों के प्रश्नोत्तर

2016
अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 1.
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Answer:
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लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 2.
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Answer:
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Question 3.
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Answer:
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Question 4.
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Answer:
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Question 5.
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Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 4a

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 6.
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Answer:
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Question 7.
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Answer:
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अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 8.
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Answer:
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Question 9.
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Answer:
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Question 10.
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Answer:
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Question 11.
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Answer:
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गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 12.
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Answer:
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Question 13.
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Answer:

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2014
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 14.
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Answer:
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Question 15.
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Answer:
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Question 16.
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Answer:
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गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 17.
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Answer:
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Question 18.
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Answer:
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2013
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 19.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 19
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 16a
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Question 20.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 20
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 20a

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Question 21.
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Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 21a

Question 22.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 22
Answer:
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Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 16b

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 23.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 23
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 23a
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Question 24.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 24
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 24a

Question 25.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 25
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 25a
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लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 26.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 26
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 26a

Question 27.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 27
Answer:
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Question 28.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 28
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 28a

Question 29.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 29
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 29a

Question 30.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 30
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 30a

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Question 31.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 31
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 31a

Question 32.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 32
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 32a
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Question 33.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 33
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 33a

Question 34.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 34
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 3a

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 35.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 35
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 35a

Question 36.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 36
Answer:
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Question 37.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 37
Answer:
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Question 38.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 38
Answer:
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Question 39.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 39
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 39a
Answer:
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2011
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 40.
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Answer:
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Question 41.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 41
Answer:
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गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 42.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 42
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 42a
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 42b

Question 43.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 43
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 43a

लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 44.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 44
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 44a

Question 45.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 45
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 45a

Question 46.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 46
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 3a

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

Question 47.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 47
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 47a

Question 48.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 48
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 48a

2010
लघुत्तरात्मक प्रश्न

Question 49.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 49
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 3a

Question 50.
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 50
Answer:
Chapter Wise Important Questions CBSE Class 10 Hindi B - पतझर में टूटी पत्तियाँ 4a

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